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इस साल तिलहनी फसलों के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। ये क्षेत्र कृषि अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका अदा करता है। सूरजमुखी, सोयाबीन, मूंगफली, अरंडी, तिल, राई और सरसों, अलसी और कुसुम प्रमुख परंपरागत रूप से उगाए जाने वालीं तिलहनी फसलें हैं। सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये प्रति क्विंटल है। किसान अधिक उत्पादन के लिए और अपने क्षेत्र के मुताबिक सरसों की सही किस्म का चयन कर सरसों की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। आइये जानते सरसों की 10 उन्नत किस्मों के बारे में।
सरसों की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Mustard)
- पूसा सरसों आर एच 30 – सरसों की ये किस्म हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी राजस्थान क्षेत्रों के लिए सबसे बेहतर है। ये किस्म सिंचित और असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। फसल 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। अगर 15 से 20 अक्टूबर तक इस किस्म की बुवाई कर दी जाए तो उपज 16 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर मिल सकती है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 39 प्रतिशत तक होती है। इस तरह से मोयले कीट का प्रकोप फसल पर नहीं पड़ेगा।
- राज विजय सरसों-2 – सरसों की ये किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के इलाकों के लिए उपयुक्त है। फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है।अक्टूबर में बुवाई करने पर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है। इसमें तेल की मात्रा 37 से 40 प्रतिशत तक होती है।
- पूसा सरसों 27 – इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा, दिल्ली ने विकसित किया है। ये किस्म अगेती बुवाई के लिए भी उपयुक्त है यानी तय महीनों से पहले भी इस किस्म की खेती किसान कर सकते हैं। फसल 125 से 140 दिनों में पककर तैयार होती है। इसमें तेल की मात्रा 38 से 45 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- पूसा बोल्ड – ये किस्म राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र के इलाकों में ज़्यादा उगाई जाती है। फसल 130 से 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहती है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 42 प्रतिशत तक होती है।
- पूसा डबल जीरो सरसों 31 – सरसों की ये किस्म राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के मैदानी क्षेत्रों में ज़्यादातर उगाई जाती है। फसल 135 से 140 दिनों में पककर तैयार होती है। इस किस्म का 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 41 प्रतिशत होती है।
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क्षारीय क्षेत्रों के लिए सरसों की किस्म (Mustard Variety for Alkaline Areas)
- सीएस 54 – इस किस्म से कम तापमान में भी अच्छा उत्पादन मिलता है। इस किस्म को तैयार होने में 120 से 130 दिन का वक़्त लगता है। 16 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत तक होती है।
लवणीय क्षेत्रों के लिए सरसों की किस्म (Mustard Variety for Saline Areas)
- नरेंद्र राई 1 – इस किस्म की फ़सल 125 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 11 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 39 प्रतिशत तक होती है।
सरसों की संकर किस्में (Hybrid Varieties of Mustard)
- एन.आर.सी.एच.बी 101 – इस किस्म को सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर ने विकसित किया है। ये किस्म पिछेती बुवाई के लिए भी उपयुक्त है। पिछेती बुवाई यानी कि ऐसी फसलें जिनकी देरी से बुवाई करने के बाद भी उत्पादन क्षमता प्रभावित नहीं होती। फ़सल 130 से 135 दिनों में पककर तैयार होती है। इसमें तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- पीएसी–432 – सरसों की ये किस्म मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों के लिये उपयुक्त है। इसकी फसल 130 से 135 दिनों में पककर तैयार होती है। इस किस्म का 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।
- डीएमएच–11 – ये किस्म रोग और कीटों के प्रति ज़्यादा प्रतिरोधक है। 145 से 150 दिनों में तैयार हो जाने वाली इस किस्म की उत्पादन क्षमता 17 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
सरसों की खेती को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सवाल: सरसों का कौन सा बीज सबसे अच्छा होता है?
जवाब: देश के कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों की कई उन्नत बीजों की खोज की है। आज हम बात करें तो सबसे बेहतर सरसों के बीज की। हर एक बीज की अपनी एक खासियत होती है। किसान साथियों आइए नज़र डालते हैं प्रमुख बीजों पर। पहली किस्म बीज पूसा सरसों -28 ये बुवाई के 100 दिनों के अंदर 20 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है। अगर अन्य की बात करें तो पूसा महक, आरएच-1424 और आरएच 1706, । डीएमएस गोल्ड हाइब्रिड किस्म की सरसों है, जो सभी तरह की मिट्टी में और विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी पैदावार देती है. इससे प्रति एकड़ 12-12.5 क्विंटल उपज मिलती है
किसानों को अच्छी किस्म के साथ-साथ अन्य चीजों की भी ध्यान रखना चाहिए।
सवाल: सरसों में सबसे बेस्ट वैरायटी कौन सी है?
जवाब: सरसों की ये वैरायटियां सबसे ज्यादा पैदावार देने में सक्षम हैं। सरसों की वैरायटी का चुनाव करते समय आपको यह देखना चाहिए कि आपके क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से कौन सी वैरायटी सबसे ज्यादा उत्पादन दे रही है जो वैरायटी सबसे ज्यादा उत्पादन दे रही है उसी वैरायटी का चुनाव आपको करना चाहिए।राज विजय सरसों-2 किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के इलाकों के लिए उपयुक्त है। फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है।अक्टूबर में बुवाई करने पर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है। इसमें तेल की मात्रा 37 से 40 प्रतिशत तक होती है। अगर अन्य वैरायटी की बात की जाए तो पूसा बोल्ड, पूसा डबव जीरो सरसों 31, सीएस 54, एन.आर.सी.एच.बी 101 आदि किस्में बेस्ट वैरायटी में शुमार है।
सवाल: पायनियर सरसों की बुवाई कब करनी चाहिए?
जवाब: पायनियर सरसों बीज 45S46 एक हाइब्रिड बीज है, जो ज़्यादा मुनाफ़ा देता है। यह बीज ज़्यादा पैदावार देता है और इसमें बेहतर तेल प्रतिशत होता है। पायनियर सरसों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच करनी चाहिए। बुआई की विधि के लिए, सीडड्रिल या छिड़काव विधि का इस्तेमाल किया जा सकता है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बुआई के समय खेत में 100 किलोग्राम सिंगल सुपरफ़ॉस्फ़ेट, 35 किलोग्राम यूरिया, और 25 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए। सिंचित या कम पानी की स्थिति में, 500 पीपीएम थायोयूरिया या 100 पीपीएम थायोग्लाइकोलिक एसिड का घोल बनाकर दो छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव बुआई के करीब 40 दिन बाद, जब फूल 50 प्रतिशत खिल गए हों, तब करें. दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 20 दिन बाद करें।
सवाल: सरसों की बुवाई में कौन कौन सी खाद डालें?
जवाब: गोबर की खादबुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय, खेत में 60 कुन्तल सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। 30-40 किलोग्राम गंधक तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से दें. इसके लिए अमोनियम सल्फ़ेट, सुपर फ़ॉस्फ़ेट, अमोनियम फ़ॉस्फ़ेट सल्फ़ेट जैसे उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए। इनके न होने पर जिप्सम या पायराइटस का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भरपूर पैदावार के लिए फसल को बीज जनित बीमारियों से बचाने के लिये बीजोपचार आवश्यक है। श्वेत किट्ट एवं मृदुरोमिल आसिता से बचाव हेतु मेटालेक्जिल (एप्रन एस डी-35) 6 ग्राम एवं तना सड़न या तना गलन रोग से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
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