Top 10 Varieties of Mustard: सरसों की इन 10 उन्नत किस्मों से अच्छी होगी पैदावार
अपने क्षेत्र के हिसाब से चुनें सरसों की किस्म
देश में बड़ी संख्या में किसान सरसों की खेती से जुड़े हैं। आने वाले सालों में सरसों का रकबा और बढ़ने का अनुमान है। अगर किसान सरसों की सही किस्म का चुनाव करें तो उन्हें अच्छी पैदावार के साथ अच्छा मुनाफ़ा भी मिल सकता है।
इस साल तिलहनी फसलों के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। ये क्षेत्र कृषि अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका अदा करता है। सूरजमुखी, सोयाबीन, मूंगफली, अरंडी, तिल, राई और सरसों, अलसी और कुसुम प्रमुख परंपरागत रूप से उगाए जाने वालीं तिलहनी फसलें हैं। सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये प्रति क्विंटल है। किसान अधिक उत्पादन के लिए और अपने क्षेत्र के मुताबिक सरसों की सही किस्म का चयन कर सरसों की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। आइये जानते सरसों की 10 उन्नत किस्मों के बारे में।
सरसों की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Mustard)
- पूसा सरसों आर एच 30 – सरसों की ये किस्म हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी राजस्थान क्षेत्रों के लिए सबसे बेहतर है। ये किस्म सिंचित और असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। फसल 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। अगर 15 से 20 अक्टूबर तक इस किस्म की बुवाई कर दी जाए तो उपज 16 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर मिल सकती है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 39 प्रतिशत तक होती है। इस तरह से मोयले कीट का प्रकोप फसल पर नहीं पड़ेगा।
- राज विजय सरसों-2 – सरसों की ये किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के इलाकों के लिए उपयुक्त है। फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है।अक्टूबर में बुवाई करने पर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है। इसमें तेल की मात्रा 37 से 40 प्रतिशत तक होती है।
- पूसा सरसों 27 – इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा, दिल्ली ने विकसित किया है। ये किस्म अगेती बुवाई के लिए भी उपयुक्त है यानी तय महीनों से पहले भी इस किस्म की खेती किसान कर सकते हैं। फसल 125 से 140 दिनों में पककर तैयार होती है। इसमें तेल की मात्रा 38 से 45 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- पूसा बोल्ड – ये किस्म राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र के इलाकों में ज़्यादा उगाई जाती है। फसल 130 से 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहती है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 42 प्रतिशत तक होती है।
- पूसा डबल जीरो सरसों 31 – सरसों की ये किस्म राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के मैदानी क्षेत्रों में ज़्यादातर उगाई जाती है। फसल 135 से 140 दिनों में पककर तैयार होती है। इस किस्म का 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 41 प्रतिशत होती है।
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क्षारीय क्षेत्रों के लिए सरसों की किस्म (Mustard Variety for Alkaline Areas)
- सीएस 54 – इस किस्म से कम तापमान में भी अच्छा उत्पादन मिलता है। इस किस्म को तैयार होने में 120 से 130 दिन का वक़्त लगता है। 16 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत तक होती है।
लवणीय क्षेत्रों के लिए सरसों की किस्म (Mustard Variety for Saline Areas)
- नरेंद्र राई 1 – इस किस्म की फ़सल 125 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 11 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 39 प्रतिशत तक होती है।
सरसों की संकर किस्में (Hybrid Varieties of Mustard)
- एन.आर.सी.एच.बी 101 – इस किस्म को सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर ने विकसित किया है। ये किस्म पिछेती बुवाई के लिए भी उपयुक्त है। पिछेती बुवाई यानी कि ऐसी फसलें जिनकी देरी से बुवाई करने के बाद भी उत्पादन क्षमता प्रभावित नहीं होती। फ़सल 130 से 135 दिनों में पककर तैयार होती है। इसमें तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- पीएसी–432 – सरसों की ये किस्म मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों के लिये उपयुक्त है। इसकी फसल 130 से 135 दिनों में पककर तैयार होती है। इस किस्म का 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।
- डीएमएच–11 – ये किस्म रोग और कीटों के प्रति ज़्यादा प्रतिरोधक है। 145 से 150 दिनों में तैयार हो जाने वाली इस किस्म की उत्पादन क्षमता 17 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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- कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती): बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ, क्या है तरीका?ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरत को पूरा करने के लिए सोलर एनर्जी यानी सौर ऊर्जा सबसे अच्छा विकल्प है। वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक ईज़ाद की है, जिसमें बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ होगा। इस तकनीक का नाम है कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती)।
- Biofertilizer Rhizobium: जैव उर्वरक राइज़ोबियम कल्चर दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने का जैविक तरीकादलहन भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और पूरी दुनिया में दलहन का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। किसानों के लिए भी इसकी खेती फ़ायदेमंद है। इसलिए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर किसान दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो राइज़ोबियम कल्चर उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
- Seed Production: कैसे बीज उत्पादन व्यवसाय इन किसानों की आय का अच्छा स्रोत बन रहा है?बीज खेती का आधार है, तभी तो कहते हैं कि हर बीज एक अनाज है, लेकिन हर अनाज एक बीज नहीं हो सकता क्योंकि सभी अनाज में एक समान अंकुरण क्षमता नहीं होती। बीज उत्पादन के लिए किसानों को बीज के प्रकार और उत्पादन का सही तरीका पता होना चाहिए।
- Berseem Farming: बरसीम की खेती से जुड़ी अहम बातें, जानिए कीट-रोगों से कैसे बचाएं बरसीम की फसलबरसीम एक महत्वपूर्ण दलहनी चारा फसल है जो न सिर्फ़ पशुओं के लिए बेहतरीन है, बल्कि ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है। इसका इस्तेमाल हरी खाद के रूप में किया जा सकता है। पशुओं के लिए ये चारा बहुत पौष्टिक होता है, वैसे तो बरसीम की फसल पर रोगों का बहुत गंभीर परिणाम नहीं होता है, लेकिन कुछ रोग व कीट है जिनसे बचाव करना ज़रूरी है।
- डेयरी उद्योग (Dairy Farming): क्यों दूध उत्पादन क्षेत्र में फ़ार्म रिकॉर्ड रखना ज़रूरी है?जिस तरह से ऑफ़िस या घर में काम या डॉक्यूमेंट्स का रिकॉर्ड रखा जाता है, वैसे ही डेयरी उद्योग में पशुओं का रिकॉर्ड रखना बहुत ज़रूरी है।
- Green Manure Crops: हरी खाद वाली फसलें कौन सी हैं और कितने प्रकार की होती हैं?खेती में हरी खाद का मतलब उन सहायक फसलों से है, जिन्हें खेत के पोषक तत्वों को बढ़ाने के मकसद से उगाया जाता है। ये मिट्टी की साथ-साथ फसलों को भी कई लाभ देती हैं।
- जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण: पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए फ़ायदेमंदबढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव को देखते हुए खेती में जैविक विधि के इस्तेमाल को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसे में अब बहुत से किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए भी प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- Crop Residue Management: क्यों ज़रूरी है फसल अवशेष प्रबंधन? इससे जुड़े ये आंकड़ें जानते हैं आप?फसल अवशेष जलाने से हमारी ज़मीन में उपलब्ध पोषक तत्वों को हानि होती है। धीरे-धीरे ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम होती चली जाती है। साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी कई घटनाएं हम देख भी चुके हैं।
- जानिए कैसे कंद वर्गीय फसल अरारोट की खेती से किसान ले सकते हैं लाभ, क्या हैं इसके फ़ायदे?अरारोट की खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए तापमान 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए।
- Red Rice: विलुप्त होते लाल चावल को मिल रहा जीवनदान, दोबारा शुरु हुई खेतीसेहत और किसानों के लिए फ़ायदेमंद लाल चावल की खेती हिमाचल में फिर से बड़े पैमाने पर की जा रही है। जानिए लाल चावल से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
- Carp Fish: नर्सरी तालाब में कार्प मछली उत्पादन कैसे करें? किन बातों का रखें ध्यान?मछली पालन में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है। पहले स्थान पर चीन है। हमारे देश में मछली उत्पादन में सबसे अधिक हिस्सेदारी कार्प मछलियों की है। कार्प मछली उत्पादन में मछली पालकों को इसके बीजों की गुणवत्ता पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत होती है।
- पशु उपचार में कारगर औषधीय पौधे? किन रोगों से मवेशियों को मिल सकता है आराम?खेती के साथ ही ज़्यादातर किसान पशुपालन भी करते हैं, क्योंकि इससे उन्हें कई फ़ायदे होते हैं। दूध, दही, घी के साथ ही खेती के लिए जैविक खाद मिलती है। लेकिन पशुओं के बीमार होने पर पशुपालकों को दवाओं पर काफ़ी खर्च करना पड़ जाता है, जिससे लाभ कम हो जाता है। ऐसे में औषधीय पौधे बहुत मददगार साबित हो सकते हैं।
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