Tribal communities: आदिवासी उत्थान के लिए कृषि प्रौद्योगिकियां, स्मार्ट और एडवांस खेती संग बढ़ते कदम

भारत में आदिवासी समुदाय (Tribal communities) वर्षों से प्रकृति पर निर्भर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनकी आजीविका मुख्य रूप से जंगलों, पारंपरिक खेती और पशुपालन पर निर्भर रही है। लेकिन बदलते समय के साथ उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग ज़रूरी हो गया है। नई कृषि तकनीकों के ज़रीये से आदिवासी समुदायों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है और उनकी आय में वृद्धि की जा सकती है।  

Tribal communities: आदिवासी उत्थान के लिए कृषि प्रौद्योगिकियां, स्मार्ट और एडवांस खेती संग बढ़ते कदम

भारत में आदिवासी समुदाय (Tribal communities) वर्षों से प्रकृति पर निर्भर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनकी आजीविका मुख्य रूप से जंगलों, पारंपरिक खेती और पशुपालन पर निर्भर रही है। लेकिन बदलते समय के साथ उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग ज़रूरी हो गया है। नई कृषि तकनीकों के ज़रीये से आदिवासी समुदायों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है और उनकी आय में वृद्धि की जा सकती है।  

आदिवासी खेती की वर्तमान स्थिति (Current Status Of Tribal Farming)

भारत के आदिवासी (Tribal communities) इलाकों में खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से झूम खेती (शिफ्टिंग कल्टिवेशन), बारिश आधारित खेती, और पारंपरिक बीजों का इस्तेमाल होता है। हालांकि, कम उत्पादन और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के कारण इन समुदायों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, और अरूणाचल प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (Tribal communities) क्रमश: कुल जनसंख्या का 94.4 प्रतिशत, 86 फीसदी, 86.1 प्रतिशत और 68.79 प्रतिशत है। उत्तर पूर्वी जनजातियों (Tribal communities) का प्राथमिक व्यवसाय कृषि है। यहां कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका सामने आती है। वे मुख्य रूप से खेतों पर परीक्षण और प्रथम पंक्ति प्रदर्शन के माध्यम से किसी भी कृषि प्रौद्योगिकी की स्थान विशिष्टता की जांच करने के दायित्व का निर्वहन करते हैं।

आधुनिक कृषि तकनीकों की आवश्यकता (The Need For Modern Agricultural Techniques)

आधुनिक कृषि तकनीकों के इस्तेमाल से आदिवासी किसानों की उत्पादकता और जीवन स्तर को बढ़ाया जा सकता है। कुछ प्रमुख तकनीकें हैं-

1. जैविक खेती और स्थायी कृषि (Organic Farming And Sustainable Agriculture)

आदिवासी क्षेत्रों (Tribal communities) में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का कम उपयोग किया जाता है, जिससे जैविक खेती को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। जैविक खेती के ज़रीये से न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।

2. जल संरक्षण तकनीकें (Water Conservation Techniques)

अधिकांश आदिवासी क्षेत्र वर्षा पर निर्भर होते हैं, इसलिए जल संरक्षण बहुत ही ज़रूरी है। जल संरक्षण की कुछ आधुनिक तकनीकें इस प्रकार हैं- 

वाटर हार्वेस्टिंग: वर्षा जल संग्रहण कर सूखे के समय उपयोग किया जा सकता है।

ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम: कम पानी में अधिक उत्पादन संभव बनता है।

तालाब और चेक डैम: भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायक होते हैं।

3. स्मार्ट और उन्नत बीजों का उपयोग (Use of Smart And Improved Seeds)

पारंपरिक बीजों की तुलना में उच्च गुणवत्ता वाले और जलवायु अनुकूल बीजों का उपयोग करने से पैदावार बढ़ाई जा सकती है। वैज्ञानिक रूप से विकसित बीज अधिक रोग प्रतिरोधी और उत्पादन में वृद्धि करने वाले होते हैं।

4. कृषि यंत्रीकरण और आधुनिक उपकरणों का उपयोग (Agricultural Mechanization And Use Of Modern Equipment)

आदिवासी किसान (Tribal communities) प्रायः पारंपरिक उपकरणों का उपयोग करते हैं, जिससे अधिक श्रम और समय की आवश्यकता होती है। निम्नलिखित आधुनिक उपकरणों से उनकी खेती अधिक प्रभावी बन सकती है-

पावर टिलर और ट्रैक्टर: भूमि जोतने और खेती को आसान बनाने में सहायक।

थ्रेसर और रीपर: कटाई और फसल प्रबंधन को सुगम बनाते हैं।

सोलर पंप और मशीनरी: सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण खेती को सस्ता और पर्यावरण-अनुकूल बनाते हैं।

5. मिश्रित और बहुफसली खेती (Mixed And Multi-Cropping)

मोनोकल्चर (एक ही प्रकार की फसल उगाना) की तुलना में मिश्रित और बहुफसली खेती से ज़्यादा फ़ायदा मिल सकता है। आदिवासी क्षेत्रों में निम्नलिखित तरीकों से ये संभव हो सकता है-

कृषि वानिकी: खेती और वृक्षारोपण का संयोजन।

मत्स्य पालन और पशुपालन: अतिरिक्त आय के स्रोत के रूप में।

मधुमक्खी पालन: शहद उत्पादन और परागण में सहायक।

आंगन में मुर्गी पालन: आदिवासी परिवारों के लिए अतिरिक्त आय का एक सरल और प्रभावी तरीका है। इसमें कम लागत पर स्थानीय नस्लों की मुर्गियों को पाला जाता है, जिससे अंडे और मांस का उत्पादन किया जाता है।

मचान प्रकार का बकरी घर: इस तकनीक में बकरियों को एक ऊंचे लकड़ी के मचान पर रखा जाता है, जिससे उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा होती है और वे अधिक उत्पादक बनती हैं। यह पद्धति संक्रमण और कीटों से बचाव में भी सहायक होती है।

सब्जी उत्पादन के लिए वॉक गैल टनल: ये एक आधुनिक तकनीक है, जिसमें प्लास्टिक की सुरंग जैसी संरचना बनाकर उसमें सब्जी उत्पादन किया जाता है। ये टेक्निक बारिश या अधिक धूप के प्रभाव से फसलों की रक्षा करती है और पूरे वर्ष उत्पादन संभव बनाती है।

6. डिजिटल कृषि और मोबाइल तकनीक का उपयोग (Digital Agriculture And Use Of Mobile Technology)

मोबाइल एप्लिकेशन, इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके आदिवासी किसानों को कृषि संबंधी नवीनतम जानकारी प्राप्त हो सकती है। विभिन्न सरकारी और निजी ऐप किसानों को मौसम की जानकारी, उर्वरक सुझाव और बाजार मूल्य की जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

7. सहकारी समितियां और किसान उत्पादक संगठन (FPOs)

आदिवासी किसानों को संगठित करने और उनके उत्पादों को उचित बाजार तक पहुँचाने के लिए सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) की स्थापना महत्वपूर्ण है। इससे उन्हें उचित मूल्य, सब्सिडी, और सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकता है।

सरकारी योजनाएं और सहायता (Government Schemes And Assistance)

सरकार ने आदिवासी किसानों के उत्थान के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं- 

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
  • कृषि यंत्रीकरण योजना
  • मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) की सुविधा
  • कृषि विकास केंद्रों (KVKs) की स्थापना

सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों का साथ (Collaboration of Governmental And Non-Governmental Organizations)

आदिवासी किसानों की कृषि में नवाचार लाने और उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग आवश्यक है। जल संरक्षण, जैविक खेती, आधुनिक उपकरणों का उपयोग, डिजिटल कृषि और सहकारी समितियों के माध्यम से आदिवासी किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर इन क्षेत्रों में तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करने की दिशा में कार्य करना चाहिए, जिससे आदिवासी समुदायों का संपूर्ण विकास हो सके।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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