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जब आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पूरी मेहनत से आगे बढ़ते हैं, तो कोई आपको सफल होने से नहीं रोक सकता। कुछ ऐसी ही कहानी है मेरठ की सना ख़ान की। जिन्होंने बीटेक करने के बाद वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost Business) का कारोबार खड़ा किया और उनकी सफलता को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अपने मन की बात कार्यक्रम (Mann ki Baat programme) में उनका ज़िक्र किया था।
सना ख़ान मेरठ के स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड एंबेस्डर भी हैं। सना ख़ान ने कैसे और क्यों शुरू किया वर्मीकंपोस्ट का व्यवसाय (Vermicompost Business) और किन चुनौतियां का उन्हें सामना करना पड़ा। इन सभी मुद्दों पर उन्होंने चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता पंकज शुक्ला के साथ।
कॉलेज के प्रोजेक्ट से मिला आइडिया
सना ख़ान बताती हैं कि उनके लिए एग्रीकल्चर सेक्टर (Agriculture Sector) अनजान था। बीटेक बायोटेक के चौथे साल में उन्हें वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost Business) से जुड़ा एक प्रोजेक्ट मिला था। तभी से उनकी इसमें थोड़ी दिलचस्पी बढ़ी और इस क्षेत्र के बारे में पता चला। पढ़ाई पूरी करने के बाद 2014 में ‘एसजे ऑर्गेनिक्स’ नामक कंपनी बनाकर उन्होंने 30 बेड के साथ वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost Business) बनाने का काम शुरू किया।
सना ख़ान कहती हैं कि क्योंकि उन्हें इस सेक्टर के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए शुरुआत में इस काम को लेकर वो बहुत एक्साइटेड थी और उन्हें लगा था कि ये बहुत अच्छा करियर ऑप्शन है।
किसान आसानी से वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost Business) खरीद लेंगे, मगर बाद में उन्हें समझ आया कि कई वजहों से किसान आसानी वर्मीकंपोस्ट की तरफ नहीं आते हैं, इसलिए जितना आसान लगा था, काम उतना आसान था नहीं।
कैसे करती हैं गोबर का इंतज़ाम
वर्मीकंपोस्ट का मतलब है केंचुआ और गोबर से खाद बनाना। ये पूरी तरह से जैविक होता है, जो मिट्टी और फसल दोनों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इस खाद को बनाने के लिए गोबर की सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है। सना ख़ान बताती हैं कि शुरू में वो घर-घर जाकर गोबर इकट्ठा करती थी, जिसमें मुश्किल तो होती ही थी, साथ ही पैसे भी ज़्यादा लग रहे थे, तो उन्होंने ठेकेदार रख लिए जो उन्हें तय कीमत पर गोबर उपलब्ध कराते हैं।
सना कहती हैं कि मेरठ एक ऐसा शहर है गोबर की भरमार है, क्योंकि यहां हर गली में एक डेयरी है और हर डेयरी में कम से कम 50-60 गाय-भैंस हैं। यही वजह बै कि बहुत सारा गोबर नालियों में बहाया जाता था यानी बरबाद हो रहा था।
ऐसे में वर्मीकंपोस्ट व्यवसाय शुरू करने के पीछे एक वजह इस बेकार होने वाले गोबर का सही इस्तेमाल करना भी था। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि सना शहर के वेस्ट यानी अपशिष्ट को पैसों में बदल रही हैं।
वर्मीकंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया
जो लोग वर्मीकंपोस्ट काम शुरू करना चाहते हैं उन्हें सना ख़ान सबसे पहले ये सलाह देती है कि किसी की गलत बातों में न आए, क्योंकि कुछ लोग किसानों को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं। साथ ही किसान अगर इसे बनाना चाहता है तो उसे सबसे पहले उद्देश्य स्पष्ट करना होगा कि क्या वो खुद के लिए वर्मीकंपोस्ट बनाना चाहता है या व्यवसायिक तौर पर इसे तैयार करना चाहते हैं।
वर्मीकंपोस्ट कितने तरीकों से बनाया जाता है ?
वर्मीकंपोस्ट दो तरीकों से बनाया जाता है, विनड्रो (windrow) और पिट (Pit) विधि। अगर कोई व्यवसायिक तौर पर वर्मीकंपोस्ट बनाना चाहता है तो उसके लिए विनड्रो विधि उपयुक्त है। इसमें एक लाइन से बेड बनाया जाता है जिसमें सबसे पहले गोबर डाला जाता है, ऊपर से केंचुआ और फिर पुआल डाल दिया जाता है। उसके बाद नमी बनाए रखने के लिए ऊपर से पानी का छिड़काव किया जाता है।
वर्मीकंपोस्ट के लिए हवा, तापमान और नमी नियंत्रित करना ज़रूरी
सना ख़ान बताती हैं कि वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost )बनाने के लिए बेड में हवा, तापमान और नमी को नियंत्रित करना बहुत ज़रूरी है। जो पुआल ऊपर से डाला जाता है वो तापमान और पानी को नियंत्रित करने का काम करती है, साथ ही खाद में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है। जैसे-जैसे खाद गलती जाती है, तो नाइट्रोजन और कार्बन का अनुपात बराबर हो जाता है।
केंचुए के प्रकार
केंचुए कई तरह के होते हैं, इस बारे में सना ख़ान कहती हैं कि केंचुए तीन प्रकार के होते हैं, एपिजिक, पेरिजिक और एंडोजिक केंचुए। एंडोजिक केंचुए ज़मीन के बिल्कुल नीचे चले जाते हैं। आमतौर पर इंडियन प्रजाति जो होती हैं वो जमीन के बिल्कुल नीचे चली जाती है तो ऊपर वाली लेयर में काम नहीं कर पाती है।
वहीं एपिजिक केंचुए बेड के 4-6 इंच नीचे काम करते है, जैसे-जैसे खाद निकलता जाता है, तो ये नीचे की तरफ चले जाते है। इन्हें छाया पसंद है और ये 24 घंटे काम करते हैं। यही नहीं ये 0 से 56 डिग्री तापमान तक को सहन करने की क्षमता रखते हैं।
कितने दिनों में तैयार होती है खाद
सना ख़ान बताती है कि वैसे तो आमतौर पर 60 दिनों में खाद तैयार हो जाता है, मगर ये कई बार मौसम पर निर्भर करता है। इसलिए उन्हें भी मौसम के हिसाब से खाद बनने का काम करना होता है। किसी मौसम में खाद बनने की मात्रा धीमी हो जाती है तो कभी खाद बहुत ज्यादा मात्रा में बनती है।
आगे वो बताती हैं कि जनवरी-दिसबंर में खाद बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, क्योंकि केंचुआ ऊपर की लेयर में होता है और उनके अंडे देने का समय होता है तो उसी हिसाब से उन्हें काम तय करना होता है। खाद बनाने के लिए 15-20 दिन पुराने गोबर का इस्तेमाल होता है।
गोबर को यूनिट में लाकर 15-20 दिन के लिए खुले में छोड़ा जाता है ताकि गैस या गर्मी निकल जाए। 60 दिन बाद जब खाद तैयार हो जाती है तो ऊपरी लेयर उतार ली जाती है और जब केंचुए ऊपर आने लगते हैं तो फिर उसे छोड़ देते हैं।
इसके बाद फिर 3-4 दिनों बाद एक लेयर उतारी जाती है। इसी तरह ये प्रक्रिया चलती रहती है। जब पूरा खाद निकल जाता है तो एकदम नीचे की खाद छोड़ दी जाती है और फिर से बेड बनाकर केचुओं को दोबारा इस्तेमाल किया जाता है।
खेतों के अपशिष्ट का इस्तेमाल
सना ख़ान कहती है कि वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost Business) में गोबर के साथ खेती के और भी ऐसे अपशिष्टों को डाला जा सकता है जो आसनी से सड़ जाए। इससे दो फायदा होगा अपशिष्ट कम होंगे और अच्छी क्वालिटी की खाद बनेगा। वो बताती हैं कि वो भी सैंडिवच खाद तैयार करती है गोबर के साथ बायोडिग्रेबल वेस्ट को इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पहले गोबर डाला फिर अपशिष्ट की लेयर और फिर अपशिष्ट डाला जाता है, मगर इस खाद को तैयार होने में करीब 3 महीने का समय लगता है।सना ख़ान वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost Business) को देश के हर कोने में पहुंचाती है, साथ ही वो किसानों को केंचुए भी उपलब्ध करवाती हैं।
मिट्टी का खाना है जैविक खाद
सना ख़ान कहती हैं कि ये खाद मिट्टी का खाना है, अभी मिट्टी केमिकल पर है। ऐसे में एकदम से इसे जैविक खाद पर शिफ्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे किसानों को नुकसान होगा। धीरे-धीरे किसानों को शुरुआत करनी चाहिए। जैसे पहले 25 प्रतिशत जैविक खाद डालें, फिर धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढाएं। ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) का पूरा फायदा मिलने में कम से कम 3 साल का समय लगता है। साथ ही वो किसानों को मिट्टी की जांच कराने की भी सलाह देती हैं ताकि पता चल सके कि जो फसल वो लगाने जा रहे हैं क्या मिट्टी उसके लिए उपयुक्त है या उसमें किस चीज़ की कमी है।
छानकर होती है पैकिंग
खाद की प्रोसेसिंग के बारे में सना ख़ान बताती है कि पहले इसे इकट्ठा करके ढेरी बना ली जाती है। फिर ग्राइंडर मशीन में डालकर पीसा जाता है और फिर इसे छानकर इसकी नमी, पीएच आदि की जांच की जाती है। उसके बाद पैकिंग की जाती है।
उनका कहना है कि यदि कोई किसान अपने खेतों के लिए इसे बनाता है तो वो बिना छाने भी खाद डाल सकता है। सना ख़ान बताती हैं कि वर्मीकंपोस्ट की मार्केटिंग का सारा ज़िम्मा उनके पति उठाते हैं। उनकी खाद बल्क में पूरे देश में जाती है। सना ने जब काम शुरू किया था तो उनके पास सिर्फ एक मज़दूर था, मगर आज वो 50-60 लोगों को रोज़गार दे रही हैं।
सना ख़ान युवाओं को एग्रीकल्चर में आने की अपील करत हैं ताकि उनकी नई सोच और आइडिया से किसानों को फायदा पहुंचे।
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