सर्दियों में दिल्ली और आसपास के बड़े इलाकों में वायु प्रदूषण की दशा बेहद ख़तरनाक बन जाती है। इस माहौल के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों की ओर से धान की पराली के जलाये जाने को (Stubble Burning) ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है। ऐसे प्रदूषण के लिए केन्द्र सरकार ने किसानों पर ज़ुर्माना लगाने की भी नीति बनायी। किसानों ने इस नीति का ज़ोरदार विरोध किया तो सरकार ने इसे वापस ले लिया। इसके बाद ही किसान आन्दोलन के ख़त्म होने का रास्ता साफ़ हो पाया। इस बीच, पराली जलाने की समस्या से बचाव के लिए 2018 में नरेन्द्र मोदी सरकार ने जो ख़ास योजना बनायी थी, उसके उत्साहजनक नतीज़े अब ज़मीन पर दिखने लगे हैं। केन्द्र सरकार की इस योजना के तहत फ़सल अवशेष प्रबन्धन करने वाली मशीनों की खरीदारी के लिए लागत का 50% से 80% तक अनुदान दिया जाता है।
कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने 14 दिसम्बर 2021 को लोकसभा को बताया कि कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण को बढ़ावा देने वाली केन्द्र सरकार की योजना का फ़ायदा उठाते हुए अब तक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के 2 लाख से ज़्यादा किसानों को फसल अवशेष प्रबन्धन मशीनें सुलभ करवायी गयी हैं। इसके लिए केन्द्र सरकार की ओर से अब तक 2,440 करोड़ रुपये से ज़्यादा की सब्सिडी जारी हुई है तथा बीते तीन साल (2018-21) के दौरान 39 हज़ार से ज़्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) स्थापित हो चुके हैं। ये उपलब्धि इस लिहाज़ से ख़ास है कि कृषि मंत्री ने इससे पहले 23 मार्च 2021 को लोकसभा को बताया था कि तब तक कुल 30,961 कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) स्थापित हुए थे और 1.5 लाख से अधिक किसानों को फसल अवशेष प्रबन्धन मशीनें सुलभ करवायी गयी थीं।
5.5 लाख हेक्टेयर में इस्तेमाल हुआ पूसा डीकम्पोजर
कृषि मंत्री ने बताया कि पराली के निपटारे के लिए साल 2020-21 में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारों ने पूसा कृषि संस्थान की ओर से विकसित ‘पूसा डीकम्पोजर’ का भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है। राज्यों से मिले आँकड़ों के अनुसार, 5.5 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा के खेतों में पराली का अपघटन यानी डीकम्पोजर करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने का काम भी हुआ है। ‘पूसा डीकम्पोजर’ (Pusa Decomposer) से ज़मीन के उपजाऊपन पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि ये तो अगली फ़सल के लिए उसे और उपजाऊ बनाता है। इसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR), नई दिल्ली के मार्गदर्शन में विकसित किया गया है। लेकिन इसका व्यावसायिक उत्पादन ख़ुद ICAR नहीं करता है।
कृषि मंत्री तोमर ने ही अगस्त 2021 में लोकसभा को बताया था कि तब तक 25 राज्यों के किसानों को पराली को जैविक खाद में बदलने वाली कैप्सूल ‘पूसा डीकम्पोजर’ की किट मुहैया करवायी गयी थी। इसके अलावा, 12 ग़ैर सरकारी कम्पनियों को कैप्सूल का बड़े पैमाने पर उत्पादन और प्रचार करने का लाइसेंस दिया गया है। बता दें कि साल 2019 में IARI ने इस कैप्सूल की शुरुआती क़ीमत 20 रुपये तय की थी। लेकिन अभी इसका दाम क़रीब 100 रुपये है।
कैसे करें पूसा डीकम्पोजर का उपयोग?
पूसा डीकम्पोजर के एक पाउच में लाल और हरे रंग के 4 कैप्सूल होते हैं। चारों कैप्सूल को थोड़े से बेसन और गुड़ में मिलाकर इसे 25 लीटर पानी में घोलते हैं। इतने घोल के छिड़काव से एक हेक्टेयर में फैली पराली क़रीब तीन हफ़्ते में उपजाऊ खाद में तब्दील हो जाती है और किसानों को पराली की समस्या से निज़ात मिल जाती है। पूसा डीकम्पोजर के उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। बल्कि उसका उपजाऊपन बढ़ जाता है।
क्या है कृषि यंत्र अनुदान योजना?
कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण को बढ़ावा देने वाली केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की इस योजना का नाम है – ‘Promotion of Agricultural Mechanization for In-Situ Management of Crop Residue in the States of Punjab, Haryana, Uttar Pradesh and NCT of Delhi’. ये योजना Sub-Mission on Agricultural Mechanization (SMAM) का ही एक हिस्सा है। इसके तहत किसानों और उनकी सहकारी समितियों को कृषि यंत्रों की खरीदारी के लिए भारी अनुदान दिया जाता है। योजना के तहत केन्द्र सरकार की सब्सिडी राज्यों के ज़रिये किसानों तक पहुँचती है। बदले में राज्यों को धन के उपयोग का ब्यौरा केन्द्र सरकार को भेजना पड़ता है।
यदि मशीनों की खरीदारी किसान उत्पादक संगठन (FPO) की सहकारी समितियाँ या पंचायत समितियाँ करती हैं तो अनुदान की सीमा बढ़कर 80% तक हो जाती है। क्योंकि यही समितियाँ अवशेष के रूप में इक्कठा होने वाली पराली के निपटारे का काम भी अपने कस्टम हायरिंग केन्द्रों (CHCs) के ज़रिये करती हैं। इन्हीं कस्टम हायरिंग केन्द्रों पर किसानों से पराली की उस पराली की खरीदारी भी की जाती है, जिसे वो फसल अवशेष प्रबन्धन मशीनों की मदद से खेतों से निकालकर लाते हैं। इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी होती है। बता दें कि 2019-20 में देश के कुल धान उत्पादन में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी क्रमशः 9.91, 4.06 और 13.05 प्रतिशत रही है।
SMAM के दायरे में आने वाली खेती की मशीनें
आइए लगे हाथ आपको बताते चलें कि खेती-बाड़ी में मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिए बनाये गये Sub-Mission on Agricultural Mechanization (SMAM) के तहत केन्द्र सरकार की ओर से जिन मशीनों की खरीदारी पर अनुदान मिलता है वो कौन-कौन सी हैं –
- सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (Super Straw Management System (SMS) for Combine Harvesters),
- हैप्पी सीडर्स(Happy Seeders),
- हाइड्रॉलिकली रिवर्सेबल एमबी प्लो(Hydraulically Reversible MB Plough),
- पैडी स्ट्रॉ चॉपर / श्रेडर(Paddy Straw Chopper/Shredder),
- मुल्चर(Mulcher),
- श्रब मास्टर(Shrub Master),
- रोटरी स्लेशर(Rotary Slasher),
- ज़ीरो टिल सीड ड्रिल(Zero Till Seed Drill),
- रोटावेटर (Rotavator),
- सुपर सीडर (Super Seeder),
- क्रॉप रीपर / रीपर बाइंडर (Crop Reaper/Reaper Binder),
- स्ट्रॉ बेलर और रेक (Straw Baler and Rakes).
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