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असम (Assam), अपनी समृद्ध कृषि विरासत के साथ कई दुर्लभ और मूल्यवान फलों का घर रहा है। इन्हीं में से एक है असम नींबू (Assam Lemon), जिसे स्थानीय रूप से ‘काजी नेमू’ (‘Kaji Nemu’) के नाम से जाना जाता है। अपनी ख़ास सुगंध, स्वाद और औषधीय गुणों के कारण ये नींबू (Lemon)असम राज्य संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। हालांकि, कीट संक्रमण, कम पैदावार और रासायनिक कीटनाशकों की अधिक निर्भरता जैसी चुनौतियों के कारण इसके प्रोडक्शन और मार्केटिंग में कई कठिनाइयां आईं।
काजी नेमू की खेती में चुनौतियां
काजी नेमू (‘Kaji Nemu’) की खेती करने वाले किसानों को कई प्रकार के कीटों और बीमारियों का सामना करना पड़ा, जिसमें ट्रंक बोरर, फल-चूसने वाले पतंगे, एफिड्स और साइट्रस कैंकर जैसी समस्याएं शामिल थीं। इसके अलावा, किसानों के बीच पर्यावरण के अनुकूल कीट प्रबंधन तकनीकों की जानकारी का अभाव इस समस्या को और गहरा बना रहा था। इन सभी कारणों से असम नींबू का उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी, जिससे किसानों की आय भी प्रभावित हुई।
आईपीएम रणनीति: एक परिवर्तनकारी पहल
2017 में, इन चुनौतियों से निपटने और असम नींबू (Assam Lemon) की खेती को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन अनुसंधान केंद्र (NRIIPM) ने असम कृषि विश्वविद्यालय के साइट्रस अनुसंधान स्टेशन (AAU-CRS) के सहयोग से एक महत्वपूर्ण पहल शुरू की।
ये कार्यक्रम भारत सरकार की जनजातीय उप-योजना (TSP) के तहत चलाया गया, जिसका उद्देश्य आदिवासी किसानों को पर्यावरण के अनुकूल एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तकनीकों से पहचान कराना था।
इस परियोजना की शुरुआत असम के तिनसुकिया ज़िले के डिराक मैथोंग गांव से हुई, जो बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है और लगभग 418 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।
परियोजना के पहले चरण में 34 लाभार्थी परिवारों को शामिल किया गया, जिन्होंने 12.7 हेक्टेयर में काजी नेमू की खेती की। इसके बाद दूसरे चरण में 40 और परिवारों को जोड़ा गया, जिससे कुल खेती का क्षेत्रफल 19.6 हेक्टेयर बढ़ गया।
तकनीकी हस्तक्षेप और सामुदायिक भागीदारी
ICAR-NRIIPM और AAU-CRS ने किसानों के साथ मिलकर IPM मॉडल डेवलप किया। इस योजना के तहत-
1.किसानों को उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYV) से परिचित कराया गया।
2.जैविक कीट नियंत्रण तकनीकों को अपनाने पर जोर दिया गया।
3.किसानों को आधुनिक खेती की तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया।
इस पहल का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा एक सहकारी समिति ‘सीआरएस-ना दिहिंग नेमू टेंगा उन्नयन समिति’ की स्थापना था। इस समिति का उद्देश्य बिचौलियों को हटाकर किसानों को सीधे बाजार से जोड़ना और उनकी आय में सुधार लाना था।
समिति ने असम नींबू के लिए भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त करने का प्रोसेस भी शुरू किया। , जिससे इस फल की अंतरराष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा मिला।
परियोजना के प्रभाव और सफलता
इस पहल के प्रभाव से काजी नेमू (‘Kaji Nemu’) की खेती में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई। पहले जहां कुल खेती क्षेत्र 33 हेक्टेयर था, वहीं अब ये बढ़कर 107 हेक्टेयर हो गया।
1.किसानों की आय में दो से तीन गुना वृद्धि देखी गई।
2.औसत उत्पादकता 4,421 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 7,614 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई।
3.पहल का लाभ-लागत अनुपात 3.4:1 रहा, जिससे इसके आर्थिक प्रभाव को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि ये रही कि सहकारी समिति के तहत व्यावसायिक स्तर पर असम नींबू की नर्सरी स्थापित की गई। इससे किसानों को स्वस्थ रोपण सामग्री बेचने का अवसर मिला, जिससे उनकी अतिरिक्त आय बढ़ी।
डिराक मैथोंग: एक मॉडल गांव
डिराक मैथोंग गांव को अब ‘आईपीएम गांव’ के रूप में जाना जाता है। यह गांव स्थाई नींबू की खेती के लिए एक मॉडल बन गया है, और अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। इस परियोजना की सफलता ने न केवल असम नींबू को भारतीय बाजार में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि इसे सिंगापुर, दुबई और यूनाइटेड किंगडम जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी पहचान दिलाई।
काजी नेमू: लोकल से ग्लोबल पहचान तक
आज, काजी नेमू (‘Kaji Nemu’) केवल एक लोकल फल नहीं है, बल्कि ये असम की कृषि संस्कृति और इनोवेशन का चेहरा बन गया है। ये परियोजना पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों, सामूहिक सहयोग और किसान सशक्तिकरण की शक्ति को दर्शाती है। ICAR, AAU-CRS और किसानों के संयुक्त प्रयासों ने असम नींबू को वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण उत्पाद बना दिया है।
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