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गन्ना एक ऐसी फ़सल है जिसे तैयार होने में बहुत समय लगता है और इसमें लागत भी अधिक आती है, जिससे छोटे किसानों को कई बार आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर किसान वैज्ञानिक विधि अपनाकर लाइन में गन्ने की बुवाई करें और साथ में मौसम के हिसाब से सह फ़सल उगाने लगे, तो न सिर्फ़ उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, बल्कि इससे गन्ने की पैदावार भी बढ़ेगी।
उत्तर प्रदेश के अयोध्या के रहने वाले प्रगतिशील किसान राज बहादुर भी गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) यानी सह फ़सल उगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता अक्षय दुबे के साथ बातचीत में उन्होंने गन्ने की कुछ उन्नत किस्मों के साथ ही ये भी बताया कि गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) किसानों के लिए कैसे फ़ायदेमंद है।
गन्ने की उन्नत किस्में और गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग के लाभ (Improved sugarcane varieties and benefits of intercropping with sugarcane)
अयोध्या जिले के प्रगतिशील किसान राज बहादुर फ़सलों के साथ ही बागवानी और सब्ज़ी फ़सल भी उगाते हैं, उनकी कृषि का दायरा बहुत विस्तृत है। उन्होंने बताया कि उनके खेत में गन्ने की 27 किस्में लगी हुई हैं। इनमें 16202 एक ऐसी किस्म है जो पिछले साल ही रिलीज हुई है और इसकी कीमत भी अधिक है, मगर उन्हें इससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि उनकी अतिरिक्त लागत गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) यानी सहफ़सली खेती से पूरी हो जाती है। उन्होंने गन्ने के साथ चना लगाया है, तो उनकी लागत आराम से निकल जाती है और गन्ने की पैदावार से उन्हें मुनाफ़ा ही होता है।
उन्होंने गन्ने की कुछ और भी उन्नत किस्में लगाई हैं, जिसमें शामिल हैं- 13235, 3102, 14201, सुपर 118, सुपर 238, 8005 आदि। उनका काफी सारा गन्ना जो निकलता है वो बीज में चला जाता है, जिससे कटाई का खर्च भी बच जाता है। तो उनके लिए गन्ने की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। राज बहादुर का कहना है कि गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) से किसानों की खेती की लागत आसानी से निकल जाती है, जिससे गन्ने की फ़सल से उन्हें कभी नुकसान नहीं होगा।
कब होती है गन्ने की बुवाई? (When is sugarcane sown?)
राज बहादुर बताते हैं कि गन्ने की बुवाई साल में दो बार बसंत और शरद काल में होती है। बसंत यानी फरवरी-मार्च और शरदकालीन गन्ने की बुवाई अक्टूबर-नवंबर में होती है। इस समय लगाए जाने वाले गन्ने में मौसम के हिसाब से सह फ़सल लगानी चाहिए, जैसे उन्होंने गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) के रूप में चना-मटर की खेती की है। जबकि बसंत काल में उड़द और मक्के को सहफ़सल के रूप में वो उगाते हैं। उनका कहना है कि किसानों को मौसम को ध्यान में रखकर ही सह फ़सलों का चुनाव करना चाहिए, ताकि गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) से अधिक लाभ मिल सके और खेती की लागत भी कम हो।
कैसे फ़ायदेमंद है सहफ़सली खेती और गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग? (How is mixed crop farming and intercropping with sugarcane beneficial?)
राज बहादुर का कहना है कि गन्ने के लिए सहफ़सल लगाना वरदान है। जैसे मटर लगाया तो मटर में राइजोबियम कल्चर बनता है, जो गन्ने के लिए अच्छा है। इसी तरह जब उड़द की खेती करते हैं तो यह गन्ने की जड़ों में जाता है, जिससे फ़सल और अच्छी होती है। गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) करने से खरपतवार और रोग भी नहीं लगते हैं, जिससे गन्ने की पैदावार बढ़ती है। राज बहादुर का कहना है कि इस तरह खेती करने से उनकी आय तीन गुना बढ़ चुकी है।
किन रोगों से बचाव है ज़रूरी? (From which diseases is prevention necessary?)
वैसे तो गन्ने की फ़सल में बहुत रोग नहीं लगते हैं, मगर राज बहादुर बताते हैं कि शुरुआत में जब गन्ना निकलता है तो उसके 30 दिनों बाद तना छेदक रोग लग सकता है, जो गन्ने के कल्लों नुकसान पहुंचाता है इससे फ़सल का विकास रुक जाता है। इसके अलावा कुछ पुरानी किस्मों में लाल सड़न रोग भी लग सकता है। उनका कहना है कि क्योंकि वो समय-समय पर गन्ने की किस्म को बदलते रहते हैं इसलिए उन्हें इस तरह की दिक्कत नहीं आती है, मगर दूसरे किसानों को वो सलाह देते हैं कि गन्ने की किस्म को हमेशा थोड़ा-थोड़ा करके बदलते रहना ज़रूरी है।
कब की जाती है कटाई? (When is harvesting done?)
गन्ने से गुड़ और चीनी बनती है। ऐसे में गन्ने की कटाई करके उन्हें मिल में भेज दिया जाता है। राज बहादुर बताते हैं कि नवंबर में जब मील चलती है तो गन्ने की कटाई शुरू होती है जो मई तक चलती रहती है। वैसे मील तो मार्च-अप्रैल तक ही चलती है, मगर राज बहादुर का गन्ना बीज के लिए भी जाता है तो इसकी कटाई मई तक चलती रहती है।
आम की उन्नत किस्मों का चुनाव और गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Selection of improved varieties of mango and intercropping with sugarcane)
राज बहादुर गन्ने का साथ तो सहफ़सली खेती कर ही रहे हैं, साथ ही उन्होंने कई किस्मों के आम के बगान भी बनाए हुए हैं। वो बताते हैं कि पहले तो उनके यहां देसी आम ही होते थे फिर दशहरी, चौसा, लंगड़ा आदि किस्में आई। एक बार वो अपने इलाके के किसी फार्म पर गए और वहां आम की कुछ खास किस्मों के बारे में उन्हें पता चला और ये भी कि इससे अच्छा मुनाफ़ा मिल सकता है, तो वो वहां से पौधे ले आए। उनका कहना है कि अगेती फ़सल के लिए आम की गुलाब खास और दशहरी किस्में अच्छी हैं। जबकि लेट वैरायटी में उन्होंने अरुणिमा, अरुणिका, मल्लिका, सेंसेशन लगा रखा है।
वो बताते हैं कि वैसे तो आम की फ़सल में रोग नहीं लगते हैं, मगर बीच-बीच में फंगस आदि से बचाव के लिए कुछ दवा आदि डालनी होती है, साथ ही नील गाय से बचाने के लिए उन्होंने जाली लगाई हुई है। गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) करते हुए आम की फ़सल भी उन्हें अतिरिक्त आय देने में मदद करती है।
किसानों को सलाह और गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग के फ़ायदे (Advice to farmers and benefits of intercropping with sugarcane)
राज बहादुर किसानों को सलाह देते हैं कि वो किसी एक फ़सल पर निर्भर न रहें। पारंपरिक फ़सलों की खेती के साथ ही बागवानी, सब्ज़ी फ़सल भी लगाएं, ताकि कभी एक फ़सल खराब हो जाए तब भी आमदनी होती रहे। जैसे उन्होंने गन्ने के साथ तो सब्ज़ी और दलहनी फ़सल लगाई ही हुई है, साथ ही आम के साथ भी गोभी लगाई है। उनका कहना है कि मल्टीप्लाई खेती से लाभ ये होगा कि मान लो कि भुट्टे में दाने नहीं लगे, तो उसके साथ जो फ़सल लगाई है, उससे लागत निकल जाएगी और किसानों को नुकसान नहीं होगा।
गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग (Intercropping with sugarcane) छोटे किसानों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, जिनके पास ज़्यादा ज़मीन नहीं होती है। ऐसे में वो कम ज़मीन में वैज्ञानिक तरीके से कई फ़सलें उगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं, बस इसके लिए मुख्य फ़सल के बीच उचित दूरी और जल निकासी का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखना होगा कि जो सह फ़सल वो लगा रहे हैं, वो मुख्य फ़सल को नुकसान न पहुंचाए।
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