कमलेश चौबे की सफलता की कहानी: जैविक खेती और नयी फ़सलों की क्रांति

कमलेश चौबे ने जैविक खेती अपनाकर पारंपरिक तरीकों को छोड़ा और रंग-बिरंगी फ़सलों से कृषि में नया आयाम गढ़ा, जो किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।

जैविक खेती Organic Farming

कृषि के क्षेत्र में बिहार में आजकल काफी बदलाव देखे जा रहे हैं। पहले के समय में यहां के किसान मुख्य रूप से पारंपरिक फ़सलों जैसे धान, गेहूं और मक्का की खेती करते थे, लेकिन अब किसान धीरे-धीरे इन पारंपरिक तरीकों से हटकर नयी और लाभकारी फ़सलों की खेती में रुचि दिखा रहे हैं। इस बदलाव का कारण खेती में हो रहे तकनीकी विकास और नये प्रयोगों को अपनाना है। ख़ासकर जैविक खेती की ओर बढ़ता हुआ रुझान यह दर्शाता है कि किसान अब अपने उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए भी कदम उठा रहे हैं।

आज हम आपको एक ऐसे किसान की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने जैविक खेती के जरिए अपनी किस्मत को पूरी तरह से बदल दिया है और कृषि के क्षेत्र में एक नया आयाम गढ़ा है। हम बात कर रहे हैं पश्चिम चंपारण जिले के किसान कमलेश चौबे की, जिन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर नयी और रंग-बिरंगी फ़सलों की खेती को अपनाया और उसमें ज़बरदस्त सफलता हासिल की। कमलेश ने काली मूली, सफेद मक्का और अन्य रंग-बिरंगी फ़सलों की खेती की, जो न केवल किसानों के लिए एक प्रेरणा बन गई, बल्कि इनकी खेती ने कृषि क्षेत्र में एक नई दिशा भी दिखायी है।

जैविक खेती की ओर कदम (Move towards organic farming)

कमलेश चौबे ने साल 2015 से जैविक खेती की शुरुआत की। उन्होंने धान की नई किस्मों के साथ-साथ औषधीय फ़सलों जैसे काली हल्दी, सामान्य हल्दी, काली मूली, काला टमाटर, लंबी मिर्च, लाल प्याज, और काले आलू की खेती शुरू की। इसके अलावा, उन्होंने दलहन, तिलहन और गोभी जैसी फ़सलों को भी जैविक तरीके से उगाना शुरू किया।

कमलेश का मानना है कि Organic Farming से न केवल भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है, बल्कि यह किसानों को ज़्यादा लाभ भी देती है। जैविक खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे उत्पादन में भी वृद्धि होती है और स्वास्थ्य पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ता।

काली मूली की सफलता (Success of black radish)

कमलेश चौबे ने अपनी खेती में काली मूली की एक नई किस्म की शुरुआत की, जिसे उन्होंने नागालैंड से मंगवाए बीज से उगाया। इस फ़सल की ख़ास बात यह है कि यह सफेद मूली से कहीं ज़्यादा महंगी बिकती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार काली मूली में एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है, जो दिल को स्वस्थ रखने में मदद करती है।

कमलेश ने बताया कि काली मूली की खेती के बाद उन्होंने बिहार के अन्य किसानों को इस फ़सल के बीज की सप्लाई शुरू की। इसके साथ ही, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटका, असम, मणिपुर, और अरुणाचल प्रदेश के किसानों ने भी काली मूली के बीजों की मांग की। ख़ास बात यह है कि नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के किसानों ने भी उनसे काली मूली के बीज खरीदे।

सफेद मक्का: नयी शुरुआत (White Corn: A New Beginning)

कमलेश चौबे ने सफेद मक्का की भी सफल खेती की है। सफेद मक्का को ‘मिल्की मक्का’ कहा जाता है, जो दूध की तरह सफेद होता है और इसका स्वाद भी दूध जैसा होता है। कमलेश ने इस मक्का के बीज को महाराष्ट्र से 3500 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मंगवाया था। एक कट्ठे में इसकी खेती करने के बाद उन्हें 300 किलो सफेद मक्का की पैदावार हुई।

सफेद मक्का की ख़ासियत यह है कि इसके पौधे में 5-6 भुट्टे निकलते हैं, जबकि पीले मक्के में केवल 2-3 भुट्टे ही निकलते हैं। इससे पैदावार काफी बढ़ जाती है। सफेद मक्का से कई खाद्य उत्पाद जैसे लड्डू, केक, हलवा और इडली बनाई जा सकती है, जो लोगों में लोकप्रिय हो रही हैं।

जैविक खेती से लाभ (benefits of organic farming)

कमलेश चौबे की खेती से यह साबित हो गया है कि जैविक खेती से किसान न केवल अपनी आय को बढ़ा सकते हैं, बल्कि वे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते। जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है, और इसमें रसायनिक खादों का इस्तेमाल न होने के कारण यह स्वास्थ्य के लिए भी फ़ायदेमंद है।

कमलेश ने बताया कि उन्होंने जो फ़सलें उगाई हैं, वे सभी जैविक तरीके से उगाई गई हैं। इस कारण उनकी फ़सलों में न केवल गुणवत्ता है, बल्कि वे बाज़ार में भी अच्छी क़ीमत पर बिकती हैं।

जैविक खेती में निवेश और भविष्य की योजनाएं (Investment in organic farming and future plans)

कमलेश का कहना है कि जैविक खेती में निवेश ज़्यादा नहीं होता है, लेकिन इसमें समय और मेहनत की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि यदि किसान सही तरीके से Organic Farming अपनाएं तो उन्हें अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है। कमलेश अब अपने अनुभवों को अन्य किसानों तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं ताकि वे भी जैविक खेती के लाभों का लाभ उठा सकें।

निष्कर्ष (Conclusion)

कमलेश चौबे की सफलता की कहानी यह दर्शाती है कि यदि किसान जैविक खेती को अपनाते हैं और नयी तकनीकों का उपयोग करते हैं, तो वे अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं। काली मूली, सफेद मक्का और अन्य रंग-बिरंगी फ़सलों की खेती ने यह साबित कर दिया कि Organic Farming का भविष्य बहुत उज्जवल है। कमलेश की तरह यदि अधिक किसान जैविक खेती को अपनाएं, तो यह न केवल उनके लिए बल्कि समग्र कृषि क्षेत्र के लिए भी फ़ायदेमंद साबित होगा।

जैविक खेती में आगे बढ़ने के लिए यह ज़रूरी है कि किसान अपने पुराने तरीके छोड़कर नए और प्रभावी उपायों को अपनाएं।

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