शकुंतला देवी की अनोखी जैविक खेती: एक प्रेरणादायक सफर

शकुंतला देवी ने जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ शक्ति को बचाया और रसायन मुक्त, पोषक तत्वों से भरपूर कृषि को बढ़ावा दिया।

जैविक खेती Organic Farming

शकुंतला देवी, उत्तर प्रदेश की एक समर्पित महिला किसान हैं, जिन्होंने जैविक खेती को अपनाकर न केवल अपनी भूमि की उपजाऊ शक्ति को बचाया है, बल्कि अपने समुदाय में भी जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया है। उनकी खेती में प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल, जैसे वर्मी कंपोस्ट और देसी कीट नियंत्रक, कृषि को रसायन मुक्त और पोषक तत्वों से भरपूर बनाता है।

प्राकृतिक खेती के अनूठे पहल (Unique initiative of natural farming)

शकुंतला देवी के फ़ार्म की ख़ासियत यह है कि वे वर्मी कंपोस्ट और देसी विधियों से बने कीटनाशकों का प्रयोग करती हैं। उनके खेतों में वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाए गए हैं, जहां केंचुओं से बनी उच्च गुणवत्ता वाली खाद का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, वे जैविक कीटनाशकों के रूप में नीम, पीली सरसों, और अन्य औषधीय पौधों का इस्तेमाल करती हैं, जो फ़सलों को स्वस्थ और रसायन मुक्त रखते हैं।

वे हर फ़सल के लिए फ़सल चक्र का पालन करती हैं, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है। साथ ही, जल संरक्षण की तकनीकों का भी उपयोग करती हैं ताकि पानी की खपत कम हो और सिंचाई अधिक प्रभावी हो। इन सभी प्रयासों से उनकी उपज की गुणवत्ता और पोषण स्तर में भी वृद्धि होती है। 

पारिवारिक प्रयास और जागरूकता (Family efforts and awareness)

शकुंतला देवी का परिवार उनके इस प्रयास में पूरी तरह से शामिल है। उनके पति और बच्चे भी खेती में हाथ बंटाते हैं। उन्होंने अपने परिवार और आस-पास के किसानों को यह समझाया है कि रसायनिक खेती से भूमि की उर्वरता धीरे-धीरे कम हो जाती है, जबकि जैविक विधि से फ़सलें लंबे समय तक उत्पादक रहती हैं। वे लगातार अपने खेतों को प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल कर रही हैं, जहां परंपरागत विधियों को आधुनिक विज्ञान से मिलाकर फ़सल उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।

प्रशिक्षण और ज्ञान का विस्तार (Training and expansion of knowledge)

शकुंतला देवी ने बरेली स्थित केंद्रीय मृदा अनुसंधान केंद्र (ICAR) से जैविक खेती में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इस प्रशिक्षण में उन्होंने सीखा कि किस प्रकार जैविक खेती में लागत कम करके मुनाफा बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने किसानों को यह भी सिखाया कि जैविक उत्पाद का स्वाद, पोषण और बाज़ार मूल्य, पारंपरिक खेती से प्राप्त फ़सलों से कहीं बेहतर होता है।

इसके अलावा, उन्हें मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए फ़सल चक्र और प्राकृतिक उर्वरकों के महत्व की जानकारी दी गई। उन्होंने यह भी जाना कि किस तरह कीटनाशकों के बिना फ़सल सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता बढ़ती है। उनके द्वारा प्राप्त यह ज्ञान, आज उनके खेतों को एक सफल जैविक मॉडल बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। 

चुनौतियां और संभावनाएं (Challenges and opportunities)

शकुंतला देवी को शुरुआत में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जैसे जैविक उत्पादों का बाज़ार में सही मूल्य न मिल पाना और जागरूकता की कमी। परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास करती रहीं। आज वे अपने उत्पादों को आस-पास के किसानों और कृषि संस्थानों के माध्यम से बेच रही हैं। हालांकि, अभी भी उनके उत्पादों का सरकारी स्तर पर पंजीकरण नहीं हुआ है, जो एक बड़ी चुनौती है।

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और खेती की पारंपरिक आदतें बदलने में भी समय लगता है, जिससे किसानों को जैविक खेती में शिफ्ट करने में कठिनाई होती है। लेकिन शकुंतला देवी का मानना है कि जैविक खेती अपनाने से पर्यावरणीय लाभ और दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है। 

आने वाले समय की योजना (Plans for the future)

शकुंतला देवी भविष्य में अपने खेतों में फलों की जैविक खेती का भी विस्तार करना चाहती हैं। उनका सपना है कि वे अपने खेत को एक ऐसा मॉडल फ़ार्म बनाएं, जहां किसान आकर जैविक खेती की तकनीकों को समझें और अपने खेतों में इन्हें लागू करें। वे कहती हैं कि जैविक खेती ही आने वाले समय में किसानों की आमदनी बढ़ाने और पर्यावरण को बचाने का रास्ता है। इसके साथ ही वे फ़सलों की विविधता बढ़ाकर मौसम की अनिश्चितताओं का सामना करने की योजना बना रही हैं और अपने फ़ार्म को एक शैक्षणिक केंद्र के रूप में विकसित करना चाहती हैं, जहां नवाचारों का आदान-प्रदान हो सके। 

सरकारी योजनाएं और समर्थन (Government schemes and support)

भारत सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जैसे “परंपरागत कृषि विकास योजना” और “राष्ट्रीय जैविक खेती मिशन”। शकुंतला देवी जैसी किसान इन योजनाओं का लाभ उठाकर अपनी खेती को और भी प्रभावी बना सकती हैं। हालांकि, उन्हें अभी इन योजनाओं का सीधा लाभ नहीं मिल पाया है, पर वे आशान्वित हैं कि आने वाले समय में सरकारी सहायता से उनका काम और भी बेहतर होगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

शकुंतला देवी की यह कहानी सिर्फ़ एक किसान की नहीं है, बल्कि उस आत्मविश्वास, समर्पण, और मेहनत की कहानी है जो हमारे ग्रामीण भारत में हर रोज़ देखने को मिलती है। जैविक खेती के प्रति उनका समर्पण और उनकी सतत जागरूकता अभियान ने न केवल उनके खेत को उपजाऊ बनाया है, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी एक मिसाल कायम की है। जैविक खेती को अपनाने की उनकी यात्रा से यह स्पष्ट होता है कि सही दृष्टिकोण और दृढ़ संकल्प के साथ हर किसान अपने खेत को न केवल लाभदायक बना सकता है, बल्कि एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण के निर्माण में भी योगदान दे सकता है।

शकुंतला देवी जैसी किसानों के प्रयास भविष्य में कृषि का नया चेहरा हो सकते हैं, जहां परंपरा और आधुनिकता का सही मिश्रण होगा। उनकी कहानी प्रेरणा देती है कि आत्मनिर्भरता और सतत विकास के लिए हमें जैविक खेती को प्राथमिकता देनी होगी। 

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