Agroforestry And Social Forestry: कैसे एग्रोफोरेस्ट्री और सोशल फॉरेस्ट्री बदल रही हैं भारत की तस्वीर

Agroforestry (वानिकी कृषि) और Social Forestry (सामाजिक वानिकी) जैसे कॉन्सेप्ट केवल ऑप्शन नहीं, बल्कि एक ज़रूरी ज़रूरत बनकर उभरी हैं। ये वो जादू की छड़ी हैं जो किसान की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ धरती को हरा-भरा बनाने का काम कर रही हैं।

Agroforestry And Social Forestry: कैसे एग्रोफोरेस्ट्री और सोशल फॉरेस्ट्री बदल रही हैं भारत की तस्वीर

भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान और भारत की पर्यावरणीय सेहत के Foundation Stone उसके जंगल हैं। लेकिन आज ये दोनों ही संकट में हैं। बढ़ती आबादी, सिकुड़ते संसाधन, क्लाइमेट चेंज के प्रभाव और आर्थिक मंदी ने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। ऐसे में, Agroforestry (वानिकी कृषि) और Social Forestry (सामाजिक वानिकी) जैसे कॉन्सेप्ट केवल ऑप्शन नहीं, बल्कि एक ज़रूरी ज़रूरत बनकर उभरी हैं। ये वो जादू की छड़ी हैं जो किसान की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ धरती को हरा-भरा बनाने का काम कर रही हैं।

एग्रोफोरेस्ट्री: कृषि में वृक्षों का विज्ञान

एग्रोफोरेस्ट्री को आसान शब्दों में समझें तो यह एक इंटीग्रेटेड कृषि प्रणाली है, जिसमें एक ही ज़मीन पर कृषि फसलों के साथ-साथ पेड़ों और कभी-कभी पशुपालन को भी शामिल किया जाता है। ये कोई नया आइडिया नहीं है, भारत की पारंपरिक कृषि में नीम, पीपल, बरगद के पेड़ों का खेतों के आसपास होना आम बात थी। लेकिन मर्डर्न एग्रोफोरेस्ट्री में इसे एक वैज्ञानिक ढांचा दिया गया है।

गहन शोध के आधार पर इसके लाभ  हैरान करने वाले 

1.आर्थिक सुरक्षा: किसान को केवल मुख्य फसल पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। पेड़ों से प्राप्त लकड़ी, फल, रबर, गोंद, औषधियां आदि अतिरिक्त आय का एक स्थिर जरिया बन जाते हैं। यह “प्राकृतिक बैंक” की तरह है, जिसमें आपातकाल में पेड़ बेचकर तुरंत पूंजी जुटाई जा सकती है।

2.पर्यावरण संरक्षण: पेड़ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं, जल स्तर को ऊपर उठाते हैं और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए कार्बन का भंडारण (Carbon Sequestration) करते हैं।

3.जैव-विविधता: ये  सिस्टम पक्षियों, कीड़ों और सूक्ष्मजीवों के लिए एक healthy ecosystem बनाती है, जो प्राकृतिक रूप से फसलों के लिए फायदेमंद होते हैं।

4.जोखिम में कमी: अगर एक फसल खराब हो जाती है, तो दूसरी फसल या पेड़ों से आय होती रहती है। ये मौसम की मार को झेलने की किसान की क्षमता को बढ़ाता है।

उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र और कर्नाटक में किसान सोयाबीन या कपास के साथ सागौन के पेड़ लगाते हैं। शुरूआती सालों में उन्हें फसलों से आमदनी मिलती है, और 8-10 साल बाद सागौन की कीमती लकड़ी से बड़ी आमदनी होती है।

सोशल फॉरेस्ट्री: समाज की शक्ति से हरियाली का सफ़र

जहां एग्रोफोरेस्ट्री व्यक्तिगत किसान के खेत तक सीमित है, वहीं सोशल फॉरेस्ट्री का दायरा बहुत व्यापक है। इसका मुख्य उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के ज़रीये से ऐसी बंजर और अनुपयोगी ज़मीनों पर वन लगाना है, जो सीधे तौर पर किसी ख़ास शख्स के ownership में नहीं हैं। इसका फोकस local community की जरूरतों को पूरा करने पर है।

सोशल फॉरेस्ट्री की ख़ासियतें

1.शहरी वानिकी: शहरों में पार्क, सड़कों के किनारे और आवासीय कॉलोनियों में हरियाली बढ़ाना।

2.कम्युनिटी फॉरेस्ट्री : गांवों में सामूहिक भूमि पर ईंधन, चारा और लकड़ी के लिए पेड़ लगाना, जिसका लाभ पूरा समुदाय उठाए।

3.फार्म फॉरेस्ट्री: ये एग्रोफारेस्ट्री से मिलती-जुलती है, जहां किसान अपने खेतों पर पेड़ लगाते हैं।

4.एक्सटेंशन फॉरेस्ट्री: स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों और नहरों के किनारे वृक्षारोपण करना।

सोशल फॉरेस्ट्री की सबसे बड़ी ताकत है कम्युनिटी फॉरेस्ट्री। जब समुदाय को यह एहसास होता है कि ये पेड़ उनके अपने हैं और इनसे उन्हें ईंधन, फल और आय मिलेगी, तो वे खुद ही इनके संरक्षण की जिम्मेदारी लेते हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण सुधरता है बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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