Eco-Friendly Mulching: जैविक पलवार फसलों के लिए क्यों है फ़ायदेमंद? इको-फ़्रेंडली मल्चिंग से फसलों की बढ़वार

किफ़ायती और पर्यावरण के लिहाज़ से भी फ़ायदेमंद

खरपतवार नियंत्रण किसानों की एक बड़ी समस्या है। ज़्यादातर किसान इसके लिए मल्चिंग तकनीक का सहारा लेते हैं जिसे पलवार कहते हैं, मगर प्लास्टिक शीट से मल्चिंग करना मिट्टी और फसल की सेहत के लिए ठीक नहीं होता, ऐसे में जैविक पलवार, प्लास्टिक मल्चिंग का बेहतरीन विकल्प है।

खेत, क्यारी, बगीचे में फसलों को ढकने की प्रक्रिया को मल्चिंग या पलवार कहते हैं और जिस चीज़ से इसे ढका जाता है, उसे मल्च कहते हैं। आमतौर पर फसलों को खरपतवारों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किसान प्लास्टिक मल्च का इस्तेमाल करते हैं, जो कि प्लास्टिक की पतली फिल्म होती है। मगर इसके इस्तेमाल से प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण मिट्टी में जाकर उसकी उपजाऊ शक्ति कम कर देते हैं और इसके अवशेष फसल में भी चले जाते हैं, जो सेहत के लिए ठीक नहीं होते हैं। ऐसे में जैविक पलवार या मल्चिंग बेहतरीन विकल्प है, जो सस्ता होने के साथ ही हर लिहाज़ से फ़ायदेमंद भी है।

Eco-friendly Mulching: इको-फ़्रेंडली जैविक पलवार
तस्वीर साभार: ICAR

क्या है जैविक पलवार?

मिट्टी के पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए किसान जैविक पलवार का इस्तेमाल कर सकते हैं। जैविक पलवार मल्चिंग के लिए कुदरती चीज़ों जैसे छाल, घास की कतरन, पत्तियों, धान, बाजरा, मक्का, जौ और गेहूं की पराली से बनाई जाती है। जैविक पलवार बहुत ही किफ़ायती है, जिससे खेती की लागत कम होती है और ये मिट्टी के पोषक तत्वों में सुधार करके उत्पादन बढ़ाने में मददगार है।

जैविक पलवार के प्रकार

छाल: लकड़ी की छाल बेहतरीन पलवार होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है और ये अधिक मात्रा में पानी को अपने में सोखने की क्षमता रखता है। इससे ज़्यादा बारिश होने पर भी खेतों में जलजमाव नहीं होगा और अगर कभी बारिश कम होती है, तो छालों में जमा पानी धीरे-धीरे मिट्टी को नम बनाए रखेगा।

Eco-friendly Mulching: इको-फ़्रेंडली जैविक पलवार
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सूखी पत्तियों के पलवार: पेड़ की सूखी पत्तियों से बने पलवार का इस्तेमाल क्यारियों में किया जा सकता है। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करके अधिक फसल प्राप्त करने में मदद करती है। पत्तियों के पलवार उड़ न जाए, इसलिए इनके ऊपर सूखी पत्तियों से बने गुच्छे और पेड़ की छोटी शाखाएं रखी जाती हैं। पलवार 3-4 इंच मोटा बनाया जाता है।

घास की कतरन से पलवार: क्यारियों में सब्ज़ी की खेती करने वाले किसान क्यारियों में घास की पलवार को पतली परत के रूप में फैलाते हैं। ये पलवार बहुत ही सस्ती होती है और इसकी सामग्री यानी घास भी आसानी से मिल जाती है। घास जब सड़कर मिट्टी में मिलती है, तो नाइट्रोजन का स्तर बढ़ता है। पलवार के लिए हरी और सूखी दोनों तरह की घास का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन बारिश के मौसम में हरी घास का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

भूसा या पुआल से पलवार: धान, गेहूं, मक्का, बाजरा और जौ जैसी फसलों के भूसे या पुआल से भी पलवार बनाई जा सकती है। जब ये सड़कर मिट्टी में मिल जाती है, तो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है, जिससे उत्पादन अधिक होता है। ये मिट्टी की नमी को बनाए रखने और भाप बनकर उड़ जाने से रोकने में मददगार है। इससे बनी पलवार 6-8 इंच मोटी होती है।

Eco-friendly Mulching: इको-फ़्रेंडली जैविक पलवार
तस्वीर साभार- hybridveggies

जैविक पलवार के फ़ायदे

  • जैविक मल्चिंग यानी पलवार से मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिलती है और मिट्टी के ढके रहने की वजह से खरपतवार नहीं उग पाते।
  • इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और बीज जल्दी अंकुरित होते हैं। साथ ही पैदावर भी बढ़ती है।
  • जैविक पलवार के इस्तेमाल से पौधों की जड़ों का विकास भी अच्छी तरह होता है, जिससे अच्छी फसल प्राप्त होती है।
  • तापमान में उतार-चढ़ाव होने पर पौधों की जड़ों को सुरक्षित रखने में मददगार।
  • इससे पानी की भी बचत होती है, क्योंकि खेत में नमी बनी रहती है जिससे सिंचाई की अधिक ज़रूरत नहीं पड़ती।
  • जैविक पलवार लगाने पर किसान की निराई-गुड़ाई की मेहनत और लागत बच जाती है।
  • जैविक पलवार के इस्तेमाल से कीटों के हमले को भी कम किया जा सकता है।
Eco-friendly Mulching: इको-फ़्रेंडली जैविक पलवार
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कब और कैसे लगाएं पलवार

पलवार बारिश के मौसम के अंत में लगाएं, क्योंकि बरसात में मिट्टी में वाष्पीकरण अधिक होता है और पलवार लगाने पर ये रुक जाएगा। इसलिए बारिश के बाद इसे लगाएं। जैविक पलवार लगाने से पहले खेत से सभी प्रकार के खरपतवार निकाल दें और येयह सुनिश्चित कर लें कि खरपतवार के लिए जो सामग्री आप इस्तेमाल कर रहे हैं वह पूरी तरह से बीज रहित हो और उसमें किसी तरह के कीट न हों। रोग ग्रसित और कीट वाली पत्तियों और घास को हटा दें।

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