स्टिकी ट्रैप (Sticky trap): किसानों के लिए अपनी फ़सलों को अनेक हानिकारक कीटों और बीमारियों से बचाना अनिवार्य होता है। इसके लिए जिन दवाईयों और कीटनाशकों की ज़रूरत पड़ती है उन्हें कम से कम तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है – रासायनिक, जैविक और घरेलू।
रासायनिक कीटनाशकों का उत्पादन बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की कैमिकल फैक्ट्रियों में होता है तो जैविक कीटनाशक भी व्यावसायिक प्रयोगशालाओं में विकसित किये जाते हैं। जबकि घरेलू कीटनाशक की सबसे बड़ी ख़ूबी यही होती है कि इसे किसान मामूली ख़र्च और मेहनत से ख़ुद बना सकते हैं। ‘स्टिकी ट्रैप’ ऐसा ही एक शानदार घरेलू कीटनाशक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि स्टिकी ट्रैप के ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करने को लेकर किसानों में जागरूकता का और बढ़ना ज़रूरी है। हालाँकि, कृषि विज्ञान केन्द्रों की ओर से किसानों के बीच लगातार स्टिकी ट्रैप के फ़ायदों का प्रचार किया जाता है। दीनदयाल अन्त्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत भी महिला स्वयं सहायता समूहों को स्टिकी ट्रैप के निर्माण के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि गाँवों में किसानों को आसानी से स्टिकी ट्रैप सुलभ हो सकें।
घरेलू कीटनाशक स्टिकी ट्रैप
‘स्टिकी ट्रैप’ ऐसा घरेलू कीटनाशक है जो ये किसी ज़हरीले रसायन के बग़ैर ही हानिकारक कीटों के दुष्प्रभाव से फ़सलों की सुरक्षा करता है। ये रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में बेहद सस्ता होता है। स्टिकी ट्रैप के इस्तेमाल से फ़सलों को कीटों से होने वाले नुकसान में 40 से 50 प्रतिशत तक कमी आ जाती है और इससे फ़सल, खेत की मिट्टी, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
स्टिकी ट्रैप के इस्तेमाल से फ़सल पर होने वाले रासायनिक या जैविक कीटनाशकों के छिड़काव की लागत में भी कमी आती है। साथ ही ये सर्वेक्षण भी आसानी से हो जाता है कि खेत में या फ़सल पर किस प्रकार के कीटों का प्रकोप चल रहा है?
स्टिकी ट्रैप की कार्यप्रणाली
स्टिकी ट्रैप, एक ऐसी शीट को कहते हैं जिस पर चिपचिपा पदार्थ लगा होता है। इसीलिए इसे ‘चिपचिपा जाल’ या शिकारी फन्दा भी कह सकते हैं। फ़सल को नुकसान पहुँचाने वाले कीट-पतंगे जैसे ही स्टिकी ट्रैप पर पहुँचते या बैठते हैं वैसे ही वो उससे चिपक जाते हैं और फिर फ़सल को नुकसान नहीं पहुँचा पाते। स्टिकी ट्रैप को चार रंगों की शीट पर बनाया जाता है – पीला, नीला, सफ़ेद और काला। विभिन्न रंगों की स्टिकी ट्रैप से विभिन्न किस्म के कीटों के आकर्षित करने में मदद मिलती है।
स्टिकी ट्रैप के रंगों का महत्व
- पीली स्टिकी ट्रैप: इसका प्रयोग सब्जियों वाली फ़सलों में अधिक किया जाता है। इसके प्रयोग से सफ़ेद मक्खी, एफिड, लीफ माइनर आदि और सरसों की फ़सल पर हमला करने वाले माहू कीटों पर कारगर नियंत्रण पाया जा सकता है।
- नीली स्टिकी ट्रैप: धान के साथ कई फूलों और सब्जियों का रस चूसने वाले थ्रिप्स कीट पर नियंत्रण के लिए नीले रंग की स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करते हैं।
- सफ़ेद स्टिकी ट्रैप: फलों और सब्जियों में लगने वाले लाल बीटल कीट और बग कीट पर नियंत्रण के लिए सफ़ेद स्टिकी ट्रैप का इस्तेमाल करते हैं।
- काली स्टिकी ट्रैप: इसका उपयोग टमाटर में लगने वाले कीटों पर नियंत्रण के लिए किया जाता है।
घर पर कैसे बनाएँ स्टिकी ट्रैप?
स्टिकी ट्रैप को वैसे से बाज़ार से बना बनाया भी ख़रीदा जा सकता है। लेकिन इन्हें घर पर तो और भी आसानी से बनाया जा सकता है। इसके लिए टिन, प्लास्टिक, दफ़्ती, गत्ता, कॉर्ड-बोर्ड या हॉर्ड-बोर्ड के ऐसे टुकड़े की ज़रूरत पड़ती है जो क़रीब डेढ़ फ़ीट लम्बा और एक फ़ीट चौड़ा हो। इस टुकड़े पर ऐसे छेद कर दें जिससे इन्हें किसी डोरी से बाँधकर लटकाया जा सके। अब टुकड़े की ऊपरी सतह पर सफ़ेद ग्रीस की पतली परत जैसा लेप लगा दें।
और बस, हो गया स्टिकी ट्रैप तैयार! सफ़ेद ग्रीस की जगह अरंडी का तेल (Castor Oil) या फिर मोबिल ऑयल (Mobil Oil) की परत से भी स्टिकी ट्रैप बना सकते हैं। इस तरह स्टिकी ट्रैप बनाने पर 15 से 20 रुपये ख़र्च होते हैं।
खेतों में कैसे लगाएँ स्टिकी ट्रैप?
स्टिकी ट्रैप को खेतों में टाँगने के लिए एक बांस और उपयुक्त डोरी की ज़रूरत भी पड़ती है। एक एकड़ के खेत में क़रीब 10-15 स्टिकी ट्रैप लगाना चाहिए। इनकी ऊँचाई फ़सल के पौधों से 50 से 75 सेंटीमीटर अधिक होनी चाहिए। यह ऊँचाई कीटों के उड़ने के रास्ते में आती है और उन्हें आकर्षित करने में मददगार साबित होती है।
स्टिकी ट्रैप में जब पर्याप्त कीड़े चिपक जाएँ तो उन्हें नष्ट करके फिर से स्टिकी टैप को तैयार करके खेतों में लटका देना चाहिए। स्टिकी ट्रैप के टिन, हॉर्ड बोर्ड और प्लास्टिक की शीट से बनाये गये टुकड़ों को बारम्बार साफ़ करके इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि दफ्ती या गत्ते से बने स्टिकी ट्रैप एक-दो इस्तेमाल के बाद ख़राब हो जाते हैं। स्टिकी ट्रैप की सफ़ाई गर्म पानी से करनी चाहिए।
फेरोमोन ट्रैप (Pheromone Trap)
रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से उत्पादित फ़सल के सेवन से मानव स्वास्थ्य पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है। ये बच्चों में विकास सम्बन्धी समस्याओं के रूप में नज़र आ सकता है तो वयस्कों में कैंसर, किडनी और लीवर के रोग, प्रजनन और बाँझपन सम्बन्धी समस्याओं तथा फेफड़े और गले की बीमारियों का सबब बन सकता है। इसीलिए फ़सल सुरक्षा के लिए अपनाये जाने वाले उपायों में स्टिकी ट्रैप के अलावा फेरोमोन ट्रैप को भी ख़ासा उपयोगी तथा प्रभावशाली पाया गया है।
सुंडियों को तो ग़ैर-रासायनिक तरीके से ख़त्म करने का इकलौता तरीका है फेरोमोन ट्रैप। इसमें इस्तेमाल होने वाला फेरोमोन एक ऐसा रासायनिक पदार्थ या स्राव है जिसे नर सुंडियों को प्रजनन के लिए रिझाने के लिए मादा सुंडियाँ छोड़ती हैं। लेकिन इसकी गन्ध पाकर जब नर सुंडियाँ वहाँ पहुँचती हैं तो ट्रैप (जाल) में फँस जाती हैं। इससे सुंडियों का प्रजनन चक्र बाधित हो जाता है और उनसे छुटकारा मिल जाता है।
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जैविक कीटनाशक (Organic Pesticide)
रासायनिक कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जैविक कीटनाशकों के अन्य विकल्प भी मौजूद हैं और किसानों को इन्हें भी आसानी से अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। वैसे भी जब जैविक खेती को बढ़ावा देने पर पूरा ज़ोर हो तो ये जानना अनिवार्य है कि जैविक या प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग वर्जित है।
इसीलिए वैज्ञानिकों ने जैविक खेती में इस्तेमाल के लिए नीम से बनने वाले विभिन्न उत्पादों को बनाने और उसके इस्तेमाल की प्रक्रिया का मानकीकरण (standardization) किया है। इसे नीम की पत्तियों और इसके बीजों से बने उत्पादों के रूप में बाँटा गया है। निम्न वेबलिंक को क्लिक करके आप जान सकते हैं कि नीम का पेड़ किस तरह से सर्वश्रेष्ठ जैविक कीटनाशक और घरेलू दवाईयाँ बनाने में मददगार साबित हो सकता है?
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जैविक कीटनाशकों में ‘एक साधे सब सधे’ वाली ख़ूबियाँ होती हैं। इसका मनुष्य, मिट्टी, पैदावार और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और फ़सल के दुश्मन कीटों तथा बीमारियों से भी क़ारगर रोकथाम हो जाती है। इसीलिए, जब भी कीटनाशकों की ज़रूरत हो तो सबसे पहले जैविक कीटनाशकों को ही इस्तेमाल करना चाहिए। ये पर्यावरण संरक्षण के साथ फ़सल के दुश्मनों का सफ़ाया करने में बेहद कारगर साबित होते हैं।
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