Fish Farming: पहाड़ों में मछली पालन की नई उम्मीद बनीं हेमा डंगवाल, आत्मनिर्भरता की मिसाल

हेमा डंगवाल ने नैनीताल के पहाड़ों में मछली पालन (Fish farming) को सफल व्यवसाय बनाकर कई महिलाओं को आत्मनिर्भर और रोजगार से जोड़ा।

Fish Farming मछली पालन

उत्तराखंड के नैनीताल जिले के सुनकिया गांव की रहने वाली हेमा डंगवाल ने वह कर दिखाया जो आमतौर पर पहाड़ों में कठिन माना जाता है — मछली पालन (Fish Farming) को सफल व्यवसाय के रूप में स्थापित करना। जहां एक ओर पलायन और बेरोजगारी से पहाड़ के गांव जूझ रहे हैं, वहीं हेमा डंगवाल ने स्थानीय संसाधनों और सरकारी योजनाओं की मदद से न केवल खुद को बल्कि कई महिलाओं को रोजगार से जोड़ा।

पारंपरिक सोच से आगे बढ़ते हुए शुरुआत की (Started moving beyond traditional thinking) 

पहाड़ों में महिलाओं का जीवन कठिन होता है — खेती, पशुपालन, घर का काम और ऊपर से संसाधनों की कमी। हेमा डंगवाल भी इन्हीं परिस्थितियों में पली-बढ़ी थीं। लेकिन उन्होंने खुद को सिर्फ घरेलू कार्यों तक सीमित नहीं रखा। गांव की कुछ महिलाओं ने जब उनसे कहा कि वे भी कुछ नया करना चाहती हैं, तो हेमा डंगवाल ने उनके साथ बैठकर सोचा और फिर मछली पालन (Fish Farming) को आजमाने का फैसला लिया।

ट्रेनिंग और तकनीकी जानकारी ने बदली तस्वीर (Training and technical information changed the picture)

हेमा डंगवाल ने भीमताल स्थित मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र से मछली पालन (Fish Farming) की विधिवत ट्रेनिंग ली। इस दौरान उन्होंने जाना कि पहाड़ी क्षेत्रों में किस प्रकार की मछलियों को पाला जा सकता है, तालाब कैसे बनाया जाता है, पानी की गुणवत्ता कैसे बरकरार रखी जाती है और मछलियों के लिए भोजन किस प्रकार तैयार किया जाता है।

सीखने के कुछ मुख्य बिंदु:

  • मछली के तालाब के लिए प्लास्टिक लाइनिंग जरूरी है, खासकर रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में
  • तापमान और ऊंचाई के अनुसार मछली की नस्ल का चयन
  • ऑक्सीजन और पानी की गुणवत्ता बनाए रखने की तकनीक
  • बीमारियों की पहचान और रोकथाम के उपाय

मछली पालन के लिए तालाब बनाना: चुनौती से अवसर तक (Construction of Ponds for Fish Farming: From challenge to opportunity)

हेमा डंगवाल के गांव की जमीन रेतीली थी, जहां पानी टिकता नहीं था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सरकारी योजना के तहत उन्होंने प्लास्टिक लाइनिंग वाला तालाब बनवाया, जिससे पानी रुकने लगा। तालाब का निर्माण लगभग 25 हजार रुपये में हुआ, जिसमें से 60% खर्च सरकार ने सब्सिडी के रूप में दिया।

आज उनके पास 2 तालाब हैं जिनमें वह सिल्वर कार्प, कॉमन कार्प, क्रूशियन कार्प और गोल्डन फिश जैसी मछलियों का पालन कर रही हैं। इनमें से गोल्डन फिश की मांग एक्वेरियम मार्केट में अधिक है, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होता है।

मछलियों के आहार और देखभाल की प्रक्रिया (Feeding and care process of Fish)

मछलियों के भोजन के लिए हेमा डंगवाल घर पर ही चावल, गेहूं का आटा और भूसी का मिश्रण तैयार करती हैं। इसके अलावा वे मार्केट से रेडीमेड प्रोटीन युक्त फीड भी लाती हैं। उनका मानना है कि अच्छा भोजन और साफ पानी ही मछली पालन (Fish Farming) की सफलता की कुंजी है।

पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए:

  • नियमित जल परीक्षण
  • पंप सिस्टम से ऑक्सीजन का संचार
  • तालाब की समय-समय पर सफाई

उत्पादन, लागत और मुनाफा (Production, cost and Profits)

हेमा डंगवाल बताती हैं कि एक तालाब से सालाना 3 से 4 क्विंटल तक मछली उत्पादन होता है। बाजार में मछली की कीमत 300 से 500 रुपये प्रति किलो तक मिलती है। यानी एक सीजन में वे 1 से 1.5 लाख रुपये तक की कमाई कर लेती हैं। इसमें से शुद्ध लाभ करीब 50-60% तक होता है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में 10-15 हजार रुपये में भी छोटा तालाब बनाकर मछली पालन (Fish Farming) शुरू किया जा सकता है। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, निवेश भी बढ़ाया जा सकता है।

महिलाओं को जोड़कर बनाई एक नई राह (A new path was created by connecting women)

हेमा डंगवाल ने गांव की अन्य महिलाओं को भी इस कार्य में जोड़ा। उन्होंने एक स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाया जिसमें महिलाएं मिलकर तालाब तैयार करती हैं, बीज खरीदती हैं और मछलियों का पालन करती हैं। बैंक से लोन और सरकार से सब्सिडी लेकर अब गांव की कई महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।

समूह का लाभ:

  • सामूहिक प्रशिक्षण
  • बाजार में बेहतर दाम
  • वित्तीय सहायता और योजनाओं तक पहुंच

सरकारी योजनाओं से मिली ताकत (Strength gained from Government Schemes)

हेमा डंगवाल को मत्स्य विभाग की योजनाओं का भरपूर लाभ मिला। उन्होंने PM Matsya Sampada Yojana, रिवॉल्विंग फंड, और तालाब निर्माण पर सब्सिडी जैसी योजनाओं का लाभ उठाया। इसके साथ ही मत्स्य विभाग के अधिकारियों से समय-समय पर मार्गदर्शन भी मिला।

सम्मान और पहचान (Honors and Recognition)

हेमा डंगवाल के प्रयासों को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सराहा गया है। उन्हें ICAR मुक्तेश्वर, पूसा किसान मेला, और बायोफेस्ट जैसे कार्यक्रमों में सम्मानित किया गया है। उनके अनुभव अब दूसरे जिलों तक भी पहुंच चुके हैं और वे कई सरकारी ट्रेनिंग प्रोग्राम में प्रेरक वक्ता के तौर पर भी शामिल होती हैं।

भविष्य की योजना (Future Plan)

हेमा डंगवाल अब बायोफ्लॉक तकनीक से भी मछली पालन (Fish Farming) की तैयारी कर रही हैं, जिससे कम जगह में अधिक उत्पादन संभव हो सकेगा। साथ ही वे जैविक फॉर्मिंग और एक्वापोनिक्स जैसे मॉडल पर भी विचार कर रही हैं ताकि पानी और संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके।

निष्कर्ष (Conclusion)

हेमा डंगवाल का जीवन इस बात का प्रमाण है कि मछली पालन (Fish Farming) सिर्फ मैदानी इलाकों तक सीमित नहीं है। पहाड़ों में भी इच्छाशक्ति, जानकारी और सरकारी सहयोग से यह एक सफल व्यवसाय बन सकता है। उनकी कहानी न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता की मिसाल है, बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।

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