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निकोबार द्वीप के आदिवासी लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर रहते हैं, और उनकी खेती का अधिकांश हिस्सा बारिश पर आधारित है। यहां की करीब 80 प्रतिशत कृषि भूमि नारियल की खेती के लिए उपयोग होती है। इसके अलावा, इस द्वीप पर केले, पपीता, कसावा और शकरकंद जैसी फ़सलें भी उगाई जाती हैं। पहले के समय में, आदिवासी किसान प्राकृतिक तरीकों से खेती करते थे और रासायनिक उर्वरकों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करते थे। फलों और सब्ज़ियों की कमी के कारण, उनका आहार मुख्य रूप से कुछ कंद फ़सलों, केले और अन्य स्थानीय फलों तक ही सीमित रहता था।
आदिवासी किसानों को एकीकृत खेती से मिली नई उम्मीद (Integrated farming gives new hope to tribal farmers)
निकोबार द्वीप में कृषि को बेहतर बनाने के लिए केंद्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान (CARI) ने एकीकृत खेती (Integrated Farming) का एक नया मॉडल पेश किया। इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदाय को उनके आसपास के क्षेत्र में खेती करने के लिए प्रेरित करना था। CARI ने आदिवासी बस्तियों के पास 400 वर्ग मीटर का एक बाड़ा तैयार किया, जहां घरेलू मुर्गी पालन, बकरी पालन और जैविक अपशिष्टों के पुनर्चक्रण के लिए एकीकृत इकाई बनाई गई।
यह पहल कार-निकोबार के किन मे और किमियोस गांवों में लागू की गई, जिससे 40 किसान परिवारों को सीधे लाभ हुआ। इस एकीकृत खेती प्रणाली ने किसानों को न सिर्फ़ अपने घर के आसपास सब्ज़ियां और फल उगाने का अवसर दिया, बल्कि बकरियों के लिए सस्ता आश्रय बनाने में भी मदद की। इसके साथ ही, खेती के लिए उपयोगी बीज और पौधे भी किसानों को दिए गए, ताकि वे अपनी फ़सलों की पैदावार को और बेहतर बना सकें।
एकीकृत खेती के प्रभाव (Impacts of Integrated Farming)
शुरुआत में आदिवासी किसानों को इस एकीकृत खेती मॉडल को अपनाने में थोड़ी हिचकिचाहट थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें इसके फायदों का अहसास हुआ। घर के पास उगाई गई ताजे सब्ज़ियां और तेजी से बढ़ते मुर्गे-बकरियाँ उनके दृष्टिकोण में बदलाव लाने में सफल रहे।
उदाहरण के तौर पर, कुमारी शीला ने इस नई तकनीक को अपनाया और चार महीने के भीतर अपने छोटे से बगीचे से 50 किलोग्राम भिंडी, 20 किलोग्राम हरी चौलाई, 10 किलोग्राम मूली और 10 किलोग्राम लौकी की शानदार उपज ली। अब वह न सिर्फ़ अपने गांव, बल्कि पूरे निकोबार क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लिए एक प्रेरणा बन चुकी हैं। उनके द्वारा अपनाई गई एकीकृत खेती (Integrated Farming) की तकनीक ने उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया है और उनकी सफलता की कहानी अब अन्य किसानों के लिए भी एक आदर्श बन गई है।
कुमारी शीला से मिली अन्य किसानों को प्रेरणा (Other farmers got inspiration from Kumari Sheela)
निकोबार द्वीप के अन्य किसानों ने भी कुमारी शीला की सफलता से प्रेरणा ली और इस एकीकृत खेती (Integrated Farming) के मॉडल को अपनाया। अब, अधिकांश गांव प्रमुख इस एकीकृत खेती के मॉडल को अपने गांवों में लागू करने का अनुरोध कर रहे हैं। इस बदलाव से न केवल किसानों का जीवन स्तर बेहतर हो रहा है, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक असर पड़ रहा है।
इस पहल ने स्थानीय समुदाय में कृषि के प्रति जागरूकता को बढ़ाया है, और लोग अब अपने पारंपरिक कृषि ज्ञान को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़कर बेहतर परिणाम हासिल कर रहे हैं। इस प्रक्रिया ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
एकीकृत खेती से होने वाले लाभ (Benefits of Integrated Farming)
एकीकृत खेती (Integrated Farming) का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह किसानों को कई कृषि गतिविधियां एक साथ करने का मौका देता है। इस प्रणाली के तहत, किसान सिर्फ़ फ़सल उत्पादन पर ही नहीं, बल्कि पशुपालन और जैविक अपशिष्ट पुनर्चक्रण पर भी ध्यान दे सकते हैं। इससे किसानों को अतिरिक्त आय होती है और साथ ही यह पारिस्थितिकी तंत्र पर भी कोई अतिरिक्त दबाव नहीं डालता।
इसके अलावा, एकीकृत खेती से किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। उदाहरण के तौर पर, बकरी पालन और मुर्गी पालन के साथ-साथ उगाई गई ताजगी से भरपूर सब्ज़ियां और फल किसानों के लिए पोषण की दृष्टि से भी लाभकारी होते हैं। इस प्रणाली के माध्यम से, किसानों को खाद्य सुरक्षा मिलती है, और वे अपने उत्पादन को बाज़ार में बेचकर अतिरिक्त आय भी कमा सकते हैं।
भविष्य में एकीकृत खेती का प्रभाव (Impact of integrated farming in future)
निकोबार द्वीप पर एकीकृत खेती (Integrated Farming) का यह मॉडल भविष्य में और भी अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है। इसके माध्यम से आदिवासी किसान न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक स्थिर और समृद्ध भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं। आने वाले समय में, इस मॉडल को अन्य आदिवासी क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है, जिससे वहां के किसानों को भी इसके लाभ मिल सकते हैं।
आने वाले समय में, एकीकृत खेती (Integrated Farming) पर आधारित और भी नवाचारी कृषि मॉडल विकसित किए जा सकते हैं, जो स्थानीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूल हों। इससे न सिर्फ़ कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। इस मॉडल के माध्यम से खेती की sustainability को सुनिश्चित किया जा सकता है और पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को भी कम किया जा सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
निकोबार द्वीप के आदिवासी किसानों के लिए एकीकृत खेती (Integrated Farming) एक सफल और स्थायी समाधान साबित हुआ है। इसने किसानों के जीवन स्तर में सुधार किया है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इस मॉडल ने न केवल कृषि उत्पादन में वृद्धि की है, बल्कि यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी एक सकारात्मक पहलू प्रस्तुत करता है।
भविष्य में, इस तरह के मॉडल को अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है, जिससे कृषि क्षेत्र में समग्र सुधार संभव हो सके। इस प्रकार, एकीकृत खेती (Integrated Farming) आदिवासी समाज के लिए सिर्फ़ एक कृषि तकनीक नहीं, बल्कि एक नया जीवन दर्शन बन चुकी है, जो उन्हें समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मार्गदर्शन कर रही है।
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