Gerbera Farming: जरबेरा फूल की खेती से इन ग्रामीण महिलाओं ने शुरू किया अपना बिज़नेस, जानिए इस फूल की ख़ासियत

जरबेरा के फूलों से महकी ओडिशा की इन महिला किसानों की ज़िंदगी

जरबेरा फूल ने उड़ीसा के गंजम ज़िले की महिला किसानों की ज़िंदगी किस तरह से बदल दी और उन्हें आजीविका का साधन दिया, जानिए इस लेख में।

जरबेरा फूल बहुत ही सुंदर दिखते हैं और ख़ासतौर पर इन्हें सजावट में इस्तेमाल किया जाता है। यह फूल पूरी दुनिया में उगाया जाता है और इसे ‘अफ्रीकन डेजी’ या ‘ट्रांसवाल डेजी’ के नाम से भी लोग जानते हैं। हमारे देश में जरबेरा कट फ्लावर महाराष्ट्र, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक और गुजरात आदि में उगाए जाते हैं। इस सुंदर फूल की खेती ने उड़ीसा के गंजम ज़िले की महिला किसानों के चेहरे भी मुस्कान बिखेर दी है। इसकी बदौलत वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में कामयाब रही हैं।

जरबेरा फूल की खेती gerbera farming
तस्वीर साभार: clemson

खेती है मुख्य पेशा

ओडिशा में गंजम ज़िले की मिट्टी बहुत उपजाऊ है और यह ज़िला खेती के लिए जाना जाता है। कृषि ही यहां के लोगों की आजीविका का आधार है। इस ज़िले की भौगोलिक स्थिति यह है कि एक ओर जहां तटीय मैदीनी क्षेत्र हैं, वहीं दूसरी ओर पहाड़ भी हैं। यहाँ कई महिलाएं स्वयं सहायता समूह के तहत जरबेरा के फूलों की खेती कर रही हैं। जरबेरा फूल की खेती की बदौलत उन्होंने न सिर्फ़ अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया है, बल्कि अन्य महिलाओं को भी अपनी आर्थिक व सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए फूलों की खेती करने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

ओडिशा आजीविका मिशन (OLM) के तहत कृषि गतिविधियों के ज़रिए ग्रामवासियों को स्वरोज़गार के अवसर दे रहा है। यह महिलाओं को प्रेरित कर सामुदायिक संस्थाओं को मजबूती देना का काम किया जा रहा है। यह मिशन महिला किसानों को आर्थिक आत्मनिर्भरता के नए रास्ते तलाशने में उनकी मदद कर रहा है और फूलों की खेती को बढ़ावा देना भी उनके प्रयासों का एक हिस्सा है।

जरबेरा फूल की खेती gerbera farming
सांकेतिक तस्वीर (तस्वीर साभारः researchgate)

जरबेरा फूल की खेती बनी आजीविका का साधन

छत्रपुर ब्लॉक के नुआपल्ली गाँव के दो प्रमुख स्वयं सहायता समूह ‘मां बालकुमारी’ और ‘मां भैरवी’ की 20 महिला सदस्यों ने आजीविका के रूप में जरबेरा फूल की खेती शुरू की। 2018 में इसकी शुरुआत हुई। इस परियोजना के तहत समूह की सदस्य पौधे लगाने, फूल तोड़ने और उसकी बिक्री में शामिल रही। ओडिशा आजीविका मिशन (OLM) की मदद से से स्वयं सहायता समूहों ने भिकारीपल्ली जीपी के ग्राम पंचायत स्तरीय संघ (GPLF) से सामुदायिक निवेश कोष (CIF) से 4,00,000/- रुपए जुटाने में सफलता पाई। वर्तमान में इस परियोजना की अनुमानित लागत करीबन 4 लाख 77 लाख रुपये के आसपास है।

जरबेरा फूल से डेढ़ लाख का मुनाफ़ा

करीब 500 वर्ग मीटर में पॉलीहाउस के अंदर जरबेरा के फूलों की क्यारियां लगाई गई हैं। महिला किसानों को बागवानी विभाग से तकनीकी सहायता और सब्सिडी को लेकर मदद मिलती रहती है। जरबेरा के फूलों की खरीद स्थानीय फूलवालों और व्यवसायियों द्वारा की जाती है। इसके अलावा, स्वयं सहायता समूह को कटिंग फूल और गुलदस्ते के लिए सीधे ग्राहकों से भी ऑर्डर मिलते हैं। हर साल फूलों की बिक्री से उन्हें औसतन करीब डेढ लाख रुपये का सीधा मुनाफ़ा होता है।

जरबेरा फूल की खेती gerbera farming
महिलाओं द्वारा तैयार किया गया पॉलीहाउस (तस्वीर साभार: ministry of rural development)

बदली सोच

मां बालकुमारी और मां भैरवी स्वयं सहायता समूह ने सिर्फ़ ओडिशा की महिला किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं बनाया, बल्कि फूलों की खेती के प्रति लोगों की सोच भी बदली है। इन स्वयं सहायता समूहों ने जरबेरा के फूलों की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमाकर साबित कर दिया है कि यह फ़ायदे का सौदा साबित हो सकता है। यही वजह है कि अन्य स्वयं सहायता समूह भी अब इसे अपनाने के लिए आगे आए हैं।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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