लखनवी सौंफ की खेती (Lucknowi Fennel Farming): सौंफ का इस्तेमाल हर घर में मसाले या औषधि के रूप में होता है। किसी भी व्यंजन की खुशबू बढ़ाने वाला सौंफ वज़न घटाने से लेकर सांसों की दुर्गंध दूर करने और पाचन को दुरुस्त रखने में मदद करता है। बाज़ार में आपने कई तरह की सौंफ देखी होगी, कुछ हरे तो कुछ हल्के भूरे रंग की होती है, जबकि कुछ सौंफ बहुत बारीक होती है।
दरअसल, ये बारीक सौंफ चबाकर खाने के लिए ही उगाई जाती है और इसका स्वाद बहुत अच्छा होता है। इसे लखनवी सौंफ कहते हैं। लखनवी सौंफ का लखनऊ शहर से लेना-देना नहीं है, इसकी स्वाद व खुशबू बेहतरीन होती है और ये सामान्य सौंफ से महंगा बिकता है। लखनवी सौंफ की और क्या ख़ासियत हैं, आइए जानते हैं।
महंगी होती है लखनवी सौंफ
सौंफ के पौधों में फूल निकलने के करीब एक महीने बाद इनमें सौंफ के हरे-हरे पतले दाने या बीज दिखाई देने लगते हैं। ये हरे-हरे दाने करीब दो से तीन हफ़्ते में परिपक्व होते हैं। इस समय ये दाने नाज़ुक होते हैं और इसी समय अगर इन्हें काट लिया जाता है तो इसकी कीमत अधिक मिलती हैं। क्योंकि ये सौंफ की बारीक अवस्था होती है और चबाकर खाने के लिए इसे बहुत अच्छा माना जाता है। इस अवस्था में कटने वाली सौंफ को ही लखनवी सौंफ कहा जाता है।
अगर आप सोच रहे हैं कि लखनवी सौंफ और मसाले वाली सौंफ में फर्क कैसे पहचाना जाए, तो हम आपको बता दें कि लखनवी सौंफ हल्के हरे रंग की होती है, जबकि मसाले वाली सौंफ के दाने थोड़े पीले होते हैं। ये सौंफ दूसरी सौंफ से महंगी भी मिलती है, क्योंकि इसके दाने बहुत छोटे होते हैं और इसका वज़न भी पूर्ण विकसित सौंफ से आधा होता है।
सौंफ की उपज
दरअसल, सौंफ की उन्नत खेती करने पर मसाले वाली सौंफ प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल तक प्राप्त होती है, जबकि छोटे दानों वाली लखनवी सौंफ की उपज 5 से 7.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो सकती है। लखनवी सौंफ के उत्पादन के लिए सौंफ के दानों के गुच्छों की कटाई करके उसे साफ़ और छायादार जगह में फैलाकर सुखाया जाता है। इसे धूप में नहीं सुखाया जाता है, क्योंकि इसके दानों का रंग पीला पड़ सकता है।
खाने वाली लखनवी सौंफ की कटाई के कुछ दिनों बाद मसाले वाली सौंफ भी काट लेनी चाहिए। इसे पीला नहीं होने देना चाहिए। अगर दाने पीले होने लगे तो इसके गुच्छों को तोड़ लेना चाहिए।
सौंफ की खेती
हमारे देश में सौंफ की खेती मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पंजाब और हरियाणा में की जाती है। सौंफ की अच्छी फसल के लिए शुष्क और ठण्डी जलवायु होनी चाहिए। अधिक तापमान से फसल की वृद्धि रुक सकती है। जहां तक मिट्टी का सवाल है तो रेतीली मिट्टी को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है, लेकिन मिट्टी में जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। हालांकि, इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
सौंफ के फ़ायदे
सौंफ का सेवन करने से कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं:
मुंह की दुर्गंध से छुटकारा- सौंफ में एक ख़ास सुगंधित तेल होता है जिसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो आपकी सांसों को तरोताजा बनाए रखने में मदद करता है। यही वजह है कि इसका इस्तेमाल माउथफ्रेशनर के रूप में किया जाता है।
वजन कम करने में मददगार- सौंफ में फाइबर होता है। ये वज़न कम करने में मदद करता है। रिसर्च के मुताबिक, रोज़ाना सौंफ की चाय पीने या सौंफ का पानी पीने से वज़न कम करने में मदद मिलती है।
पाचन तंत्र के लिए फ़ायदेमंद- सौंफ की तासीर ठंडी होती है, ऐसे में इसके सेवन से पेट भी ठंडा रहेगा। इसमें एंटीस्पास्मोडिक यानी पेट और आंत में ऐंठन दूर करने वाले गुण व कार्मिनेटिव यानी पेट को फूलने और गैस बनने से रोकने वाले गुण होते हैं। यह पेट संबंधी समस्याओं जैसे पेट दर्द, पेट में सूजन, अल्सर, दस्त, कब्ज आदि से भी राहत दिलाने में मददगार है।
डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए फ़ायदेमंद- एक रिसर्च के अनुसार सौंफ में पाए जाने वाला तेल डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद हो सकता है। इसके सेवन से खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करके डायबिटीज के खतरे को कम किया जा सकता है।
ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में सहायक- सौंफ में पोटैशियम होता है, जो खून में सोडियम की मात्रा को नियंत्रित करता है। जिससे ब्ल़ड प्रेशर कंट्रोल में रहता है। इसमें नाइट्रेट भी होता है जो ब्ल्ड प्रेशर कम कर सका है।
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