AQI का कृषि, फसल उपज और खाद्य उत्पादन पर गहरा प्रभाव, क्यों सतर्क रहने की है ज़रूरत?

क्या आपने कभी व्यस्त सड़क पर रुक कर सड़क के किनारे लगे पौधों को देखा है? उन्होंने अपनी चमक खो दी है। पौधों से जिस हरियाली की उम्मीद थी, वो खत्म हो गई है। पौधे हल्के पीले या भूरे रंग के हो गए हैं। हम सभी जानते हैं कि इसका कारण वायु प्रदूषण है। किसान अपने खेतों में जो फसलें उगाते हैं, उनका भी यही हाल है। प्रदूषण और उच्च वायु गुणवत्ता सूचकांक या AQI इन पौधों को मार रहे हैं। वो न केवल अपना रंग और रूप बदल रहे हैं बल्कि उनकी संरचना और कार्य भी बदल रहे हैं।

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एक समय था जब किसान बारिश के लिए आसमान की ओर देखते थे। अब, वे ऊपर देखते हैं तो सिवाय धुएं और प्रदूषण के और कुछ नहीं दिखता। वो हमारी तरह ही असहाय महसूस करते हैं। हम घातक वायु गुणवत्ता सूचकांक या AQI के बारे में हर रोज़ सुनते हैं। दिल्ली-एनसीआर के पास ज़्यादातर जगहों पर ये गंभीर है। हम जानते हैं कि इसका हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, खासकर हमारी सांस लेने की क्षमता पर। पौधों, फसलों, मिट्टी आदि के लिए भी यही मुश्किल है। ये तो हम जानते हैं कि पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि पौधों को स्वच्छ कार्बन डाइऑक्साइड की ज़रूरत होती है। उच्च AQI में ऐसा नहीं होता है। ये कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOC) जैसी हानिकारक गैसों वाले वातावरण में जहरीले प्रदूषकों की उपस्थिति से प्रभावित होता है। कम कृषि उत्पादकता, कम फसल उपज, कम मिट्टी की गुणवत्ता आदि के पीछे ये सभी और कई अन्य कारण हैं। 

कृषि के लिए उच्च AQI का क्या मतलब है? 

वायु की गुणवत्ता उसके पास मौजूद विभिन्न प्रदूषकों पर निर्भर करती है। पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM 10) और गैसीय प्रदूषकों को मानव के लिए स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है। उच्च AQI का अर्थ है वायु प्रदूषण का स्तर जितना अधिक होगा और मनुष्यों के साथ-साथ पौधों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ भी अधिक होंगी। उदाहरण के लिए, 50 या उससे कम का AQI वैल्यू अच्छी मानी जाती है, जबकि 300 से अधिक AQI खतरनाक की श्रेणी में आता है। ये सिर्फ़ इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि पेड़-पौधों और जानवरों के लिए भी घातक है। चूंकि कृषि क्षेत्र उच्च एक्यूआई और गंभीर वायु प्रदूषण की स्थिति से ग्रस्त है, इसलिए हम दोहरी मार झेल रहे हैं। एक वायु प्रदूषण के कारण और दूसरा खाद्य फसलों की कम उपज के कारण।

AQI चार्ट:

AQI   
0-50   अच्छा 
51-100  मध्यम
101-200  खराब
201-300 अस्वस्थ
301-400 गंभीर 
300 से ऊपर खतरनाक 

 

भारत मौसम विज्ञान विभाग में पर्यावरण निगरानी और अनुसंधान केंद्र में ओजोन और वायु गुणवत्ता इकाई के प्रभारी और वैज्ञानिक ‘ई’ डॉ. सिद्धार्थ सिंह हमें बताते हैं-

“खाद्य उत्पादन और वायु प्रदूषण के बीच दो तरह का संबंध है। खाद्य उत्पादन, वायु प्रदूषण में योगदान देता है, बदले में वायु प्रदूषण खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर सकता है। इससे अलग, इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि वायु प्रदूषण से खाद्य उत्पादन को भी खतरा है।” 

AQI का कृषि, फसल उपज और खाद्य उत्पादन पर गहरा प्रभाव, क्यों सतर्क रहने की है ज़रूरत?

क्या पराली मूल कारण है? 

हम सभी पराली जलाने के बारे में जानते हैं और इसे दिल्ली के पास वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह मानते हैं। लेकिन क्या आपने इस बात पर भी ध्यान दिया है कि पराली जलाने से हमारे आसपास की कृषि फसलों पर भी गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है। फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि एक टन पराली जलाने से मिट्टी से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फॉस्फोरस, 25 किलोग्राम पोटेशियम और 1.2 किलोग्राम सल्फर का नुकसान होता है। पराली जलाने से मिट्टी का तापमान भी बढ़ जाता है, जिससे सूक्ष्मजीवों का विस्थापन या मृत्यु हो जाती है। इसका मतलब ये भी है कि किसानों को फसल जलाने के कारण खोई हुई मिट्टी की उर्वरता को वापस पाने के लिए अतिरिक्त पैसा खर्च करना पड़ता है।

आईसीएआर-आईएआरआई में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. भूपिंदर सिंह का मानना ​​है-

“पराली जलाने से बहुत सारे कण पदार्थ और जहरीली गैसें निकलती है, जो विकिरण को फसलों तक नहीं पहुंचने देती। ये वास्तविक विकिरण का लगभग एक चौथाई है, जो पौधों को एक सामान्य दिन में मिलेगा। नतीजतन, न सिर्फ़ उत्पादकता, बल्कि पोषक तत्वों की गुणवत्ता भी कम हो जाएगी। हालांकि, ये आवृत्ति, अवधि, चरण और इस स्थिति के बने रहने की संख्या जैसे कई कारकों पर निर्भर करेगा।”

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तस्वीर साभार: downtoearth

किसान की उपज उच्च AQI से कैसे प्रभावित होती है? 

धान के अवशेषों को सड़ने में डेढ़ महीने का समय लगता है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों के पास सर्दियों की फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए बहुत कम समय बचता है।  पराली जलाने को अवशेषों से छुटकारा पाने का एक प्रभावी तरीका माना जाता है। इस तरह ये किसानों को अपने खेत को समय से पहले तैयार करने में मदद करता है। किसानों के लिए धान की पराली का निस्तारण करना मुश्किल हो रहा है। इसके कम कैलोरी मान और उच्च सिलिका सामग्री के कारण, ठूंठ का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में नहीं किया जा सकता है। खेत में खरपतवार से छुटकारा पाने के लिए फसल जलाना भी एक प्रभावी तरीका माना जाता है। एक अन्य महत्वपूर्ण कारण प्रक्रिया की लागत-प्रभावशीलता है, क्योंकि इसमें किसानों को मैन्युअल रूप से या मशीनरी के इस्तेमाल से इसे हटाने की तुलना में बहुत कम लागत आती है। 

उच्च AQI ओजोन रिक्तीकरण की तरफ़ ले जाता है 

बहुत ज़्यादा वायु प्रदूषक धरती की सुरक्षात्मक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने का कारण बनती है। इसकी वजह से जंगल, फसलें और पौधे खतरनाक रेडिएशन से प्रभावित होते हैं। पौधों को चोट लगना, जीवित ऊतक को नुकसान, प्रकाश संश्लेषण में रुकावट, वृद्धि और उपज में कमी और पौधे की समय से पहले मौत हो सकती है।  विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पराली जलाने से कार्बनिक पदार्थ और मिट्टी को उपजाऊ बनाने वाले ज़रूरी पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। ये माइक्रोबियल गतिविधियों को कम करता है और धरती में मिट्टी के कटाव के प्रति ज़्यादा संवेदनशील हो जाता है। इससे समय के साथ फसलों की पैदावार में कमी आती है और महंगे उर्वरकों की ज़रूरत बढ़ने लगती है। डॉ. भूपिंदर सिंह कहते हैं कि “गैसीय प्रदूषकों को पौधों द्वारा सल्फर और नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है। IARI में बहुत सारे शोध अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ फसलें ऐसी हैं जो दूसरों की तुलना में ज़्यादा सहन कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, हम पाते हैं कि टमाटर ज़्यादा सहनशील हैं, उसके बाद गेहूँ और पालक सबसे कम सहनशील है। फसलों पर हवा की गुणवत्ता से हम जितना नुकसान होने की उम्मीद करते हैं, गेहूं या टमाटर के बजाय पालक और गाजर को ज़्यादा नुकसान होता है।  डॉ. सिद्धार्थ सिंह कई शोधों के बारे में बताते हैं जिससे पता चलता है कि “ओजोन की कमी से गेहूं, चावल, मक्का और सोयाबीन की फसलों की उपज कम हो जाती है। कुछ फसलें दूसरों की तुलना में ओजोन के प्रति ज़्यादा  संवेदनशील पाई गई हैं, जिनमें गेहूं और सोयाबीन विशेष रूप से संवेदनशील हैं। आलू, चावल और मक्का मध्यम रूप से संवेदनशील हैं, और जौ को ओजोन प्रतिरोधी पाया गया है। 

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कृषि क्षेत्र उच्च AQI का सामना कैसे कर सकता है? 

पराली के प्रबंधन से कुछ हद तक समस्या का समाधान हो सकता है। सरकार पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण के मुद्दे को सख्ती से उठा रही है। एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने पराली जलाने की प्रभावी रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक रूपरेखा और कार्य योजना बनाई है। हमारे विशेषज्ञों ने कुछ व्यावहारिक विकल्प खोजने में भी हमारी मदद की। उदाहरण के लिए : 

  • ज़्यादा उपज और कम समय में उपज देने वाली धान की किस्मों का विकास करना
  • IARI द्वारा विकसित बायो-डीकंपोजर का अच्छी तरह इस्तेमाल करना 
  • अलग-अलग कटाई कार्यक्रम यानी एक बार में पूरी फसल बोने के बजाय, आप बढ़ते मौसम की शुरुआत में फसल का हिस्सा लगा सकते हैं और फिर एक या दो सप्ताह बाद और फसल लगा सकते हैं 
  • बायोमास विद्युत परियोजनाओं, ताप विद्युत संयंत्रों आदि में धान की पराली का वैकल्पिक उपयोग 
  • कृषि पराली दहन, गैसीकरण, या मीथेनेशन के माध्यम से प्रभावी रूप से ऊर्जा उत्पन्न कर सकती है 
  • पराली को मिट्टी में मिला दें। ये मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, जैविक सामग्री को बनाए रखने में मदद करता है और पोषक स्तर में सुधार करता है 
  • पराली खाद पोषक तत्वों से भरपूर होती है और इसलिए मिट्टी की उत्पादकता में सुधार करती है। ये फसल की उपज में लगभग 4-9% तक सुधार कर सकता है 
  • पायरोलिसिस की प्रक्रिया के माध्यम से फसल के ठूंठ से बायोचार का उत्पादन 
  • पराली/फसल अवशेषों को जलाने पर रोक
  • प्रभावी निगरानी/प्रवर्तन 
  • धान के पुआल के उत्पादन को कम करने की योजनाएँ 
  • अग्नि गणनाओं की रिकॉर्डिंग और निगरानी के लिए मानक प्रोटोकॉल  

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल। किसान ऑफ इंडिया के FacebookTwitter, and Whatsapp से जुड़ें।

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