बैंगन एक ऐसी सब्ज़ी है, जो सिर्फ़ दो महीने में तैयार हो जाती है। यानी किसान दो महीने में ही कमाई करना शुरू कर देते हैं। बैंगन की मांग भी हमेशा बनी रहती है, इसलिए इसे उगाना फ़ायदेमंद है। देश में आलू के बाद यदि किसी सब्ज़ी की सबसे अधिक मांग रहती है तो वह है बैंगन। पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर बैंगन की खेती पूरे देश में की जाती है। अगर आप भी बैंगन की खेती से बंपर पैदावार चाहते हैं तो बैंगन की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।
आपने बाज़ार में गोल, लंबे, पतले, हरे, बैंगनी जैसी बैंगन की कई किस्में देखी होंगी। दरअसल, बैंगन की कई किस्में होती हैं और हर किस्म के बैंगन का रंग और आकार अलग-अलग होता है। बैंगन की कुछ उन्नत किस्में, जिससे किसानों को अधिक पैदावार प्राप्त हो सकती है, इस प्रकार है।
स्वर्ण शक्ति
बैंगन की इस हाइब्रिड किस्म की पैदावार अच्छी होती है। इसके पौधे करीब 70-80 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। इसके फल माध्यम आकार के चमकदार बैंगनी रंग के होते हैं। एक बैंगन का वजन करीब 150-200 ग्राम होता है। प्रति हेक्टेयर करीब 700-750 क्विंटल उपज प्राप्त हो सकती है। बुवाई का उपयुक्त समय अगस्त-सितंबर के बीच रहता है। कटाई रोपण के 55 -60 दिनों बाद होती है।
स्वर्ण श्री
इस किस्म के बैंगन के पौधों की लंबाई 60-70 सेंटीमीटर होती है। इसमें शाखाएं अधिक होती है और पत्तियां चौड़ी होती हैं। इसके फल अंडाकार और सफेद रंग के होते हैं। बैंगन की यह किस्म भरता बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन 550-600 क्विंटल तक होता है। पहली कटाई रोपण के 55-60 दिन बाद होती है। बिहार, झारखंड और आसपास के क्षेत्रों के लिए ये किस्म सबसे उपयुक्त है।
स्वर्ण मणि
बैंगन की इस किस्म के पौधे 70-80 सेंटीमीटर लंबे होते हैं और इसकी पत्तियां बैगनी रंग की होती है। एक बैंगन का वज़न करीब 200-300 ग्राम होता है और इसका आकार गोल और रंग गहरा बैंगनी होता है। प्रति हेक्टेयर औसत उपज 600-650 क्विंटल तक प्राप्त हो सकती है। पत्तियों और तने का रंग हरे के साथ-साथ बैंगनी भी होता है। पहली कटाई 65-70 दिनों के बाद होती है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड के लिए ये किस्म सबसे उपयुक्त है।
स्वर्ण श्यामली
इस किस्म के बैंगनों का आकार बड़ा और गोल होता है। यह हरे रंग के होते हैं और ऊपर सफेद रंग के धारियां होती है। इसकी पत्तियां व डंठल पर कांटे होते हैं। बुवाई के 35-40 दिन बाद बैंगन तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। ये बैंगन बहुत स्वादिष्ट होते हैं। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। पहली कटाई रोपण के 35-40 दिन बाद होती है। बिहार, झारखंड और आसपास के लिए क्षेत्रों में इस किस्म की खेती की जा सकती है।
स्वर्ण प्रतिभा
इस किस्म के बैंगन के बड़े, लंबे और चमकदार बैंगनी रंग के होते है। बाज़ार में इनकी मांग बहुत अधिक है। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। पौधे की ऊंचाई 60-70 सेंटीमीटर होती है। बुवाई का समय सितंबर, फरवरी और मार्च है। फसल बोने के 55-60 दिन बाद होती है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लिए ये किस्म उपयुक्त है।
अर्का आनंद
अर्का आनंद IIHR-3 और IIHR-322 को क्रॉस करके विकसित की गई उच्च उपज वाली F1 हाइब्रिड वाली किस्म है। इसके फल हरे और लंबे होते हैं। इसकी उपज क्षमता 55 से 60 टन प्रति हेक्टेयर है। ये 145-150 दिनों में तैयार हो जाती है।
बैंगन की खेती कैसे करें?
बैंगन की खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है और इसमें पैदावार अधिक होती है। साथ ही जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। फसल के अच्छे विकास के लिए भूमि का पी.एच. मान 5.5-6.6 के बीच में होनी चाहिए। सिंचाई की उचित व्यवस्था होना भी ज़रूरी है।
कैसे करें बुवाई?
अधिक पैदावार के लिए बैंगन के बीज़ों की सही तरीके से बुवाई ज़रूरी है। दो पौधों और दो क्यारियों के बीच करीब 60 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। बीज बोने से पहले 4 से 5 बार खेत की अच्छी तरह से जुताई करके उसे समतल कर लें। प्रति एकड़ 300 से 400 ग्राम बीज डालना चाहिए। बीजों को 1 सेंटीमीटर की गहराई में बोने के बाद मिट्टी से ढक दें। आमतौर पर बुवाई के 35-40 दिनों में भी फसल तैयार हो जाती है।
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