बैंगन की खेती लगभग देश के सभी राज्यों में की जाती है। मगर कीट की वजह से बैंगन की फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है। कर्नाटक के तुमकूर तालुक के कोलिहल्ली गांव के किसान हनुमंतरायप्पा को भी कीटों की वजह से बैंगन की फसल में बहुत नुकसान उठाना पड़ता था।
बेंगलुरू स्थित ICAR-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Horticultural Research, IIHR) द्वारा ईज़ाद की गई एक तकनीक ने उनकी इस समस्या का हल निकाला। अब कीटों के प्रकोप से उनकी फसल का बचाव हो रहा है। पैदावार अधिक होने से उनकी आमदनी भी बढ़ गई है।

कीट के कारण फसल को नुकसान
हनुमंतरायप्पा के पास कुल 5.5 एकड़ कृषि योग्य भूमि है। इसके 3 एकड़ हिस्से में वह बैंगन, टमाटर, भिंडी सहित कई सब्जियां उगाते हैं। इससे उनकी सालाना आमदनी 1.75 लाख रुपये के आसपास होती थी। साल के दो सीज़न में एक एकड़ भूमि पर बैंगन की खेती करते थे। मगर 38 प्रतिशत फसल तना व फल बेधक कीट के कारण खराब हो जाती थी। यह गंभीर किस्म का कीट होता है, जो बैंगन के फल को अंदर ही अंदर से सड़ा देता है। इस कीट के प्रबंधन के लिए रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव एक उपाय है, मगर इससे भी कीट के सौ फ़ीसदी खत्म होने की गारंटी नहीं होती। यह महंगे होते हैं, जिससे खेती की लागत ही प्रति हेक्टेयर करीबन 37,450 रुपये पहुँच जाती है।

बैंगन की खेती में नई तकनीकों से फ़ायदा
हनुमंतरायप्पा की समस्या को हल करने में कृषि विज्ञान केंद्र हिरेहल्ली ने उनकी मदद की। IIHR द्वारा विकसित की गई नयी तकनीक का फ्रंट लाइन डेमोनस्ट्रेशन करके उन्हें दिखाया गया, जो तना और फल छेदक कीट पर प्रभावी रहा।
क्या हैं तकनीकें?
बैंगन के खेत में हर 400 स्क्वायर मीटर की दूरी पर एक फेरोमोन ट्रैप (Pheromone Trap) लगवाया। फेरोमोन ऐसा रासायनिक पदार्थ या स्राव है, जिसे नर सुंडियों को प्रजनन के लिए रिझाने के लिए मादा सुंडियाँ छोड़ती हैं। लेकिन इसकी गन्ध पाकर जब नर सुंडियाँ वहाँ पहुँचती हैं तो ट्रैप (जाल) में फँस जाती हैं। इससे सुंडियों का प्रजनन चक्र बाधित हो जाता है और उनसे छुटकारा मिल जाता है। फेरोमोन ट्रैप में अलग-अलग प्रजातियों को नर सुंडियों को आकर्षित करने के लिए कृत्रिम रबर का ल्यूर (सेप्टा) लगाया जाता है। इस ल्यूर को हर 21 दिन में बदलें।

इसके अलावा, प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 50 हज़ार परजीवी कीट ट्राइकोग्रामा चिलोनिस (Trichogramma chilonis) को छोड़ा गया। दरअसल, ट्राइकोग्रामा किलोनिस एक परजीवी कीट है, जोकि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खाता है। वहीं जब फूल निकलने लगे तो कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर बीटी स्प्रे भी कराया।
इन सब तरीकों को अपनाने का नतीजा भी अच्छा निकला। फसलों पर कीटों का प्रभाव काफ़ी कम हुआ। जहां पहले संक्रमण की दर 33.65 प्रतिशत तक थी वो अब घटकर 12.65 फ़ीसदी पर आ गई। इस तरह से जहां हनुमंतरायप्पा को पहले करीब 69,890 रुपये का मुनाफ़ा होता था, वो अब बढ़कर तकरीबन एक लाख 70 हज़ार तक पहुँच गया।

हनुमंतरायप्पा को यकीन हो गया कि इस नई तकनीक के इस्तेमाल से बैंगन के तना और फल छेदक कीटों का अच्छी तरह प्रबंधन करके अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती है। इसलिए उन्होंने अपने पूरे गांव में लोगों को इस तकनीक के बारे में बताया और क्षेत्र के अन्य किसान भी बैंगन की खेती में इन तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

तना और फल छेदक कीट
यह बैंगन के पौधों में लगने वाला प्रमुख कीट है। इसका प्रकोप फसल की बुवाई के कुछ सप्ताह बाद ही होने लगता है। कीट बड़ा होने के बाद पौधों पर ही अंडे दे देते हैं, जिसमें से लार्वा निकलकर पौधों के तनों में छेद कर उसे नुकसान पहुंचाते है। फिर यह फलों के अंदर जाकर उसे भी सड़ा देते हैं। इससे फसलों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है।

कीट प्रबंधन के अन्य तरीके
- कीट के प्रकोप को किसान कुछ उपायों से कम कर सकते हैं।
- खेत को साफ रखें और अगर पिछले साल बैंगन की खेती की है तो उसी खेत में इस बार बैंगन न लगाएं।
- बैंगन की दो कतार लगाने के बाद एक कतार धनिया या सौंफ लगा दें।
- बुवाई के 2 हफ़्ते बाद फेरोमोन ट्रैप 4 से 5 प्रति एकड़ लगाएं।
- फलों पर कीट का असर दिखने लगे तो नीम के बीज के रस का 4% की दर से घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर फसल पर छिड़काव करें।
- सिंथेटिक पाइरेथ्रोइड्स का उपयोग करने से बचें, क्योंकि यह चूसने वाले कीटों को फिर से पनपने में मदद करता है।
- फलों के पकने और कटाई के समय कीटनाशकों के प्रयोग से बचें।
- नए पौधे लगाने से पहले पुराने पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें, क्योंकि वे कीटों को आश्रय देते हैं और संक्रमण फैलाते हैं।
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