Coastal States Fisheries Meet 2025: समुद्री मत्स्य पालन को डिजिटल पहचान, 255 करोड़ के प्रोजेक्ट्स और मोबाइल ऐप से क्रांति

Coastal States Fisheries Meet 2025 में 255 करोड़ रुपये की लागत वाली नई परियोजनाओं का शुभारंभ, और दूसरा, देश के 12 लाख मछुआरा परिवारों को डिजिटल रूप से मैप करने वाली '5वीं मरीन फिशरीज सेंसस' ('5th Marine Fisheries Census') की शुरुआत। ये सेंसस पहली बार एक मोबाइल ऐप 'व्यास-नाव' (Mobile App 'Vyas-Naav') के जरिए होगा, जिससे मछुआरों के डेटा का रियल-टाइम संग्रह और विश्लेषण किया जा सकेगा।

Coastal States Fisheries Meet 2025: समुद्री मत्स्य पालन को डिजिटल पहचान, 255 करोड़ के प्रोजेक्ट्स और मोबाइल ऐप से क्रांति

 मुंबई में ‘कोस्टल स्टेट्स फिशरीज मीट 2025’ (‘Coastal States Fisheries Meet 2025’) के दौरान केंद्रीय मत्स्य पालन मंत्री राजीव रंजन सिंह (Union Fisheries Minister Rajiv Ranjan Singh) ने समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र (Marine Fisheries Sector ) में दो बड़े कदम उठाए। पहला, 255 करोड़ रुपये की लागत वाली नई परियोजनाओं का शुभारंभ, और दूसरा, देश के 12 लाख मछुआरा परिवारों को डिजिटल रूप से मैप करने वाली ‘5वीं मरीन फिशरीज सेंसस’ (‘5th Marine Fisheries Census’) की शुरुआत। ये सेंसस पहली बार एक मोबाइल ऐप ‘व्यास-नाव’ (Mobile App ‘Vyas-Naav’) के जरिए होगा, जिससे मछुआरों के डेटा का रियल-टाइम संग्रह और विश्लेषण किया जा सकेगा।

डिजिटल सेंसस: मछुआरों की जिंदगी बदलने वाला कदम (Digital Census: A step that will change the lives of fishermen)

भारत की 11,000 किलोमीटर लंबी तटरेखा और विशाल एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (EEZ) में मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन अब तक मछुआरा समुदाय के पास कोई ठोस डिजिटल डेटा नहीं था। नए सेंसस में ICAR-सीएमएफआरआई द्वारा विकसित ‘व्यास-नाव’ ऐप (Mobile App ‘Vyas-Naav’) का इस्तेमाल किया जाएगा, जो गांवों, मछली लैंडिंग सेंटर्स और बंदरगाहों को जियो-वेरिफाई करेगा। इससे सरकार को मछुआरों की आबादी, उनकी आय, और संसाधनों का सटीक आकलन करने में मदद मिलेगी।

255 करोड़ की परियोजनाएं: मछुआरों को मिलेगा बुनियादी ढांचा और सुरक्षा (Projects worth Rs 255 crore: Fishermen will get infrastructure and security)

प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) के तहत शुरू की गईं इन परियोजनाओं में 7 तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में नए बंदरगाह, कोल्ड स्टोरेज, और प्रसंस्करण इकाइयां शामिल हैं। साथ ही, मंत्री ने ‘प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना’ (PM-MKSSY) के तहत पहला ‘एक्वा इंश्योरेंस’ भी लॉन्च किया, जो मछुआरों को प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा देगा।

समुद्र की संपदा: नीली क्रांति से आत्मनिर्भर भारत (Wealth of the sea: Self-reliant India through blue revolution)

राज्य मंत्री प्रो. एस.पी. सिंह बघेल ने बताया कि भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश बन चुका है। उन्होंने जोर देकर कहा कि “सस्टेनेबल फिशिंग, नवाचार और मार्केट लिंकेज को मजबूत करना हमारी प्राथमिकता है।” वहीं, जॉर्ज कुरियन ने प्रधानमंत्री मोदी के ‘नीले चक्र’ (Blue Chakra) के विजन को याद दिलाते हुए समुद्री संपदा के दोहन पर फोकस किया। आने वाले समय में 1 लाख सुरक्षा ट्रांसपोंडर्स, 100 जलवायु-अनुकूलित गांव, और समुद्री शैवाल खेती को बढ़ावा दिया जाएगा।

अंडमान और लक्षद्वीप में छिपा है खज़ाना (There is a hidden treasure in Andaman and Lakshadweep)

मत्स्य पालन विभाग के सचिव डॉ. अभिलाक्ष लिखी ने कहा कि अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप में टूना मछली के संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं हो रहा है। उन्होंने राज्यों से PMMSY के फंड का बेहतर उपयोग करने और ‘स्मार्ट हार्बर’ विकसित करने का आह्वान किया। साथ ही, आधुनिक चुनौतियों से निपटने के लिए मरीन कानूनों में संशोधन की भी योजना है।

क्या होगा फायदा? (What will be the benefit?)

  • मछुआरों को इंश्योरेंस, बेहतर बाजार और सुरक्षा मिलेगी।

  • डिजिटल डेटा से सरकारी योजनाएं सही लोगों तक पहुंचेंगी।

  • समुद्री संपदा का टिकाऊ उपयोग होगा, जिससे निर्यात बढ़ेगा।

  • महिलाओं को समुद्री शैवाल खेती और मैरीकल्चर से नए अवसर मिलेंगे।

 ये डिजिटल सेंसस और नई परियोजनाएं भारत के मछुआरा समुदाय के लिए गेम-चेंजर साबित होंगी। अब समुद्र की गोद में बसे लाखों लोगों की मेहनत को सही पहचान और समर्थन मिलेगा, जिससे ‘नीली अर्थव्यवस्था’ (Blue Economy) का सपना साकार होगा।

 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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