लैवेंडर एक सुगंधित और बहुमुखी पौधा है जिसका इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है। हाल के वर्षों में, इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है और लैवेंडर की खेती किसानों के लिए एक आकर्षक व्यवसाय बन गई है। इसका सौंदर्य से जुड़ी चीज़ों के साथ ही इत्र और अरोमाथेरेपी में इस्तेमाल किया जाता है। इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं और ये कीड़ों को दूर भगाने के लिए भी जाना जाता है। प्राकृतिक और जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग भी लैवेंडर से जुड़े उत्पादों की मांग को बढ़ा रही है। यहां हम ये पता लगाते हैं कि कैसे लैवेंडर की खेती एक बेहतरीन व्यवसाय के रूप में किसानों की मदद कर सकती है।
खेत से सुगंध उद्योग तक, लैवेंडर की खेती के कई चरण हैं:
1. हार्वेस्टिंग: लैवेंडर की कटाई आमतौर पर गर्मियों में की जाती है जब फूल पूरी तरह खिल जाते हैं। कटाई हाथ से या हारवेस्टर की मदद से की जाती है।
2. सूखाना: कटाई के बाद, नमी की मात्रा को कम करने के लिए लैवेंडर को सुखाया जाता है। इसके लिए सुखाने वाले कमरे में रखा जा सकता है या डिहाइड्रेटर का इस्तेमाल करके भी ऐसा किया जा सकता है।
3. बंडल बनाना: सूखने के बाद लैवेंडर को छोटे-छोटे बंडल में बांधकर सुतली से बांध दिया जाता है। बंडलों को फिर से सूखने के लिए एक सूखी, ठंडी जगह पर लटका दिया जाता है।
4. प्रोसेसिंग: एक बार जब लैवेंडर पूरी तरह से सूख जाता है, तो इसे एसेंशियल ऑयल निकालने के लिए प्रोसेस किया जाता है। इसमें तेल निकालने के लिए भाप आसवन या सॉल्वैंट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है।
5. परीक्षण: सुगंध उद्योग में तेल भेजने से पहले, इसकी गुणवत्ता, शुद्धता का परीक्षण किया जाता है जिससे ये पता चल सके कि ये सुगंध उद्योग के मानकों को पूरा करता है या नहीं। इस परीक्षण में सफल होने के बाद ही तेल को आगे भेजा जाता है।
6. पैकेजिंग: लैवेंडर का तेल मात्रा और खरीदार की ज़रूरतों के आधार पर बोतलों, शीशियों या ड्रमों में पैक किया जाता है।
7. शिपिंग: पैक किए गए लैवेंडर के तेल को फिर सुगंध उद्योग में भेज दिया जाता है जिससे उनका इस्तेमाल इत्र, साबुन और मोमबत्तियों जैसे दूसरों उत्पादों के उत्पादन में किया जा सके।
8. अंतिम उपयोग: आख़िर में लैवेंडर खुशबू का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता हैं जो अपने रोज़मर्रा के जीवन में इन उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं।
लैवेंडर उद्योग में किसान भी विक्रेता हैं
डॉ. सुमीत गैरोला, प्रधान वैज्ञानिक, प्लांट साइंसेज एंड एग्रोटेक्नोलॉजी डिवीजन (पीएसए), सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन ने लैवेंडर की खेती पर गहन शोध किया है। उनके अध्ययन की मदद से हमें इस क्षेत्र की चुनौतियों और संभावनाओं को समझने में मदद मिली। किसी भी व्यावसायिक संभावना के लिए, ये ज़रूरी है कि किसान या उत्पादक ख़ुद अपने उत्पादों को बाजार में बेचें जिससे उन्हें सीधा फ़ायदा मिल सके। ये पूछे जाने पर कि क्षेत्र में लैवेंडर उत्पादक अपने उत्पादों का व्यापार कैसे करते हैं, और कौन से बाज़ार सबसे ज़्यादा लाभदायक हैं, वे बताते हैं, “वर्तमान में लैवेंडर उत्पादक स्थानीय भारतीय बाजारों में अपने उत्पाद बेच रहे हैं।
लैवेंडर के तेल और फूल जैसे उत्पाद ज्यादातर देश के अलग-अलग हिस्सों से खरीदारों को बेचे जाते हैं। अच्छी बात ये है कि खरीदार सीधे किसानों से खरीद सकते हैं। सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू सीधे खरीदारों को किसानों से जोड़ता है। CSIR-IIIM जम्मू और कश्मीर की राज्य सरकार के सहयोग से लैवेंडर किसानों के लिए एक बाज़ार विकसित करने का प्रयास कर रहा है। कई किसान अब जेम पर पंजीकृत हैं और जेम पोर्टल के माध्यम से भी अपने उत्पाद बेच रहे हैं।” जेम पोर्टल एक ऑनलाइन बाज़ार है।
किसानों के लिए रास्ते में चुनौतियां कईं हैं
साथ ही डॉ. गैरोला ने जम्मू और कश्मीर में लैवेंडर उत्पादकों के सामने आने वाली चुनौतियों या बाधाओं के बारे में भी बताया। “2016 तक जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती बहुत छोटे पैमाने पर थी, लेकिन 2017 से अरोमा मिशन के तहत जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कुछ अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में लैवेंडर की खेती को बढ़ावा दिया गया है। वर्तमान में लैवेंडर के तेल और फूलों का उत्पादन बढ़ रहा है और आने वाले वर्षों में उत्पादन ज़्यादा मात्रा में होगा। लैवेंडर का उत्पादन मुख्य रूप से फ्रांस और बुल्गारिया जैसे यूरोपीय देशों में होता है, इसलिए लैवेंडर के तेल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चल रही कीमत पर निर्भर करती है।
इससे कई बार कीमत में उतार-चढ़ाव होता रहता है। जैसे-जैसे लैवेंडर के तेल का उत्पादन बढ़ेगा, वैसे-वैसे लैवेंडर की कीमत को बनाए रखना किसानों के लिए एक चुनौती होगी। हालांकि, किसानों को उनके उत्पादों की सही क़ीमत और उसे पाने के तरीक़ों के बारे में बताया जा रहा है जो उन्हें लंबे समय तक उनकी मदद करेगा।”
लैवेंडर की खेती और स्थायी कृषि पद्धतियाँ साथ–साथ
सुमीत गैरोला ऐसे कई किसानों को जानते हैं जो देश में लैवेंडर क्रांति में शामिल हुए हैं। उन्होंने हमारे साथ किसानों के अनुभव साझा किए। “जो किसान वर्तमान में लैवेंडर उगा रहे हैं वे पहले मक्का उगाते थे। प्रति एकड़ उत्पादन लगभग 20,000 रुपये से 30,000 रुपये प्रति वर्ष था। जो किसान वर्तमान में लैवेंडर की खेती कर रहे हैं उनका फ़ायदा कई गुना बढ़ गया है।
अब उन्हें प्रति वर्ष प्रति एकड़ 1.5 लाख रुपये से ज़्यादा का लाभ मिल रहा है। लैवेंडर ज्यादातर इस क्षेत्र में वर्षा आधारित ढलानों पर उगाया जाता है। जलवायु परिवर्तन और बंदरों के आतंक के कारण पारंपरिक फसलें उगाने वाले किसानों का लाभ सिमट के साथ कम हो गया है और वे बमुश्किल पैसा बचा पा रहे हैं। लैवेंडर ने उन्हें पारंपरिक फसलों की तुलना में बेहतर विकल्प दिया है जहां उनका नुक़सान बहुत कम है।”
कुल मिलाकर, भारत में लैवेंडर की खेती से जुड़े उद्यम का भविष्य उज्ज्वल है। प्राकृतिक और जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग, कई राज्यों में अनुकूल बढ़ती परिस्थितियों के साथ, लैवेंडर की खेती को किसानों और उद्यमियों के लिए एक लाभदायक और टिकाऊ विकल्प बनाती है।
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