प्रति फसल 2000 रुपये, एटा में National Mission on Natural Farming बदल रहा तस्वीर

सरकार प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को प्रति फसल 2,000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है।

National Mission on Natural Farming

उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले में अब किसान रासायनिक खेती (Chemical Farming) से हटकर प्राकृतिक खेती (Natural Farming) की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फ़ार्मिंग’ (National Mission on Natural Farming) के तहत ज़िले में 21 क्लस्टर बनाए गए हैं। इन क्लस्टरों में लगभग 2,650 किसान 1,050 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।

किसान अब अपने खेतों में रासायनिक खाद, कीटनाशक और यूरिया की जगह घन जीवामृत, बीजामृत, जीवा अमृत और दशपर्णी अर्क जैसे जैविक घोलों का उपयोग कर रहे हैं। इससे खेती की लागत घटी है और मिट्टी की सेहत (Soil Health) में भी सुधार देखा जा रहा है।

प्राकृतिक खेती से घटा खर्च, बढ़ी आमदनी

इस बार एटा ज़िले में प्राकृतिक तरीके से उगाई गई धान की फसल बेहतरीन रही। किसानों का कहना है कि रासायनिक खेती की तुलना में लागत 30 से 40 प्रतिशत तक घट गई है, जबकि उत्पादों के अच्छे दाम मिलने से आमदनी में बढ़ोतरी हुई है।

धान के साथ ही अब किसान फल, सब्जियां, तिलहन, दलहन और मोटे अनाज (Millets) की खेती भी प्राकृतिक पद्धति से कर रहे हैं। स्थानीय मंडियों में प्राकृतिक उत्पादों को ऊंचे दाम मिल रहे हैं। किसान धीरे-धीरे अपने उत्पादों को प्रोसेस (Processing) कर बेचने लगे हैं, जिससे उन्हें और अधिक लाभ हो रहा है।

सरकारी योजनाओं से मिल रहा प्रोत्साहन

केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठा रही हैं।

  • नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग (National Mission on Natural Farming) के तहत किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता दी जा रही है।

  • सरकार प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को प्रति फसल 2,000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है।

  • इसके अलावा, प्रधानमंत्री धन धान्य योजना और दलहन मिशन के जरिए किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज और प्रशिक्षण उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

  • कृषि अवसंरचना निधि (Agri Infrastructure Fund) के तहत भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन से जुड़ी सुविधाओं का भी तेजी से विकास हो रहा है।

कृषि विभाग के उप निदेशक सुमित कुमार का कहना है:

जनपद एटा में कृषि की बहुत अधिक संभावनाएं हैं। यहां के किसान मुख्यतः दलहन और तिलहन फसलों की खेती करते हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव मिट्टी की उर्वरता पर भी देखने को मिलता है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निशुल्क बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे इन फसलों का क्षेत्रफल बढ़ने की संभावना है। प्रधानमंत्री द्वारा कृषि अवसंरचना निधि (Agri Infrastructure Fund) की घोषणा और इसके तहत किए जा रहे विकास कार्यों का भी यहाँ के किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है। एटा में बड़े पैमाने पर खेती होती है, और केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं से किसानों को निरंतर लाभ प्राप्त हो रहा है।

किसानों का अनुभव: कम लागत, बेहतर दाम

एटा जिले के किसान दुर्बीन सिंह बताते हैं कि वह कई वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वो कहते हैं:

नेचुरल फ़ार्मिंग और रासायनिक खेती में पैदावार में थोड़ा अंतर तो आता है, लेकिन हमें हमारे उत्पादों के अच्छे दाम मिल जाते हैं। हम अपने उत्पादों को प्रोसेस करके बेचते हैं। जैसे बंसी गेहूं का दलिया- ये 120 से 140 रुपये किलो में बिकता है। मेरे पास धान की भी फसल है – बासमती-1886 किस्म का चावल 120 रुपये किलो तक बिकता है, जबकि सामान्य (रासायनिक खेती वाले) सदार चावल की कीमत मुश्किल से 45–50 रुपये किलो तक ही पहुंचती है।

प्राकृतिक खेती से सतत भविष्य की ओर

एटा जिले का यह उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि अगर किसान प्राकृतिक खेती को अपनाएं तो न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार आता है बल्कि किसानों की आय भी बढ़ती है। पर्यावरण के अनुकूल यह खेती रासायनिक प्रदूषण को घटाती है और उपभोक्ताओं को स्वास्थ्यवर्धक, ऑर्गेनिक उत्पाद उपलब्ध कराती है। एटा के किसानों की यह पहल देशभर में प्राकृतिक खेती की दिशा में एक प्रेरक उदाहरण (Inspiring Model) बन रही है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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