भारत की खाद्य सुरक्षा में धान का विशेष महत्व है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने कम पानी में ज़्यादा उपज देने वाली और जलवायु के अनुकूल दो Genome-edited धान की किस्में विकसित की है। इन किस्मों को National Agricultural Science Complex (NASC) नई दिल्ली में 4 मई 2025 केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Union Agriculture and Farmers Welfare Minister Shivraj Singh Chouhan) ने लॉन्च किया।
कौन-कौन सी हैं Genome-edited धान की किस्में
धान की नई विकसित दो किस्में DRR धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी धान 1 हैं जो जलवायु के प्रति अनुकूल और पोषण सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होंगी।
डीआरआर धान 100 (कमला)
ICAR–भारतीय धान अनुसंधान संस्थान (IIRR), हैदराबाद द्वारा विकसित यह किस्म ‘सांबा महसूरी’ का जीनोम-संपादित संस्करण है। इसमें CRISPR-Cas तकनीक के माध्यम से CKX2 (Cytokinin Oxidase 2) जीन को संपादित किया गया, जिससे बालियों में दानों की संख्या बढ़ गई। फील्ड ट्रायल्स में ‘कमला’ ने ‘सांबा महसूरी’ की तुलना में 19% अधिक उपज दी, औसतन 53.7 क्विंटल/हेक्टेयर और अधिकतम 88.96 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज दर्ज की गई।
ये किस्म सूखा-सहनशील है, कम नाइट्रोजन खाद की आवश्यकता होती है, केवल 130 दिनों में पक जाती है (20 दिन पहले), जिससे पानी की बचत, मीथेन उत्सर्जन में कमी और अगली फ़सल के लिए खेत जल्दी खाली होने के फायदे मिलते हैं। इन किस्मों में कोई विदेशी DNA नहीं है, जिससे ये पारंपरिक रूप से विकसित किस्मों के समान हैं।
इन्हें पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत नियम 7–11 की सख्त जैव-सुरक्षा आवश्यकताओं से छूट मिली हुई है। भारत की सरलीकृत जीनोम-संपादित फसलों (Simplified genome-edited crops) की नियामकीय प्रक्रिया (Regulatory Process) के तहत जैव-सुरक्षा मंजूरी भी मिल चुकी है। इन किस्मों को 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अपनाने से 45 लाख टन अतिरिक्त धान उत्पादन संभव है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20 फीसदी की कमी लाई जा सकती है, जिससे जलवायु-अनुकूल खेती को बल मिलेगा।
पूसा डीएसटी धान 1
ICAR-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Pusa) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस किस्म को लोकप्रिय महीन दाने वाली धान ‘MTU1010’ से उन्नत किया गया है। इस किस्म में भी CRISPR-Cas तकनीक का उपयोग करते हुए इसमें DST (सूखा एवं लवणीयता सहनशीलता) जीन को संपादित किया गया, जिससे यह सूखा और लवणीयता के प्रति अधिक सहनशील बन गई। राष्ट्रीय फील्ड ट्रायल्स में इसने मूल दाने की गुणवत्ता बनाए रखते हुए तनाव की स्थितियों में 10–30% अधिक उपज दी। यह किस्म खरीफ और रबी दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में क्षारीय और लवणीयता वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
ICAR की बड़ी उपलब्धि
NASC नई दिल्ली में देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहली जीनोम-संपादित धान (First genome-edited paddy) की दो किस्मों को लांन्च करते हुए सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी। साथ ही कृषि नवाचार (Agricultural innovations) को आगे बढ़ाने और प्रौद्योगिकियों को खेतों तक पहुंचाने के लिए सरकार की पूर्ण सहायता का आश्वासन भी दिया। उन्होंने भविष्य की खाद्य सुरक्षा और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए ऐसे वैज्ञानिक नवाचारों (Scientific innovations) के महत्व को रेखांकित किया। ये मील का पत्थर टिकाऊ कृषि और किसान कल्याण के लिए उन्नत जैव प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति को दर्शाता है।
ICAR के सचिव (DARE) और महानिदेशक डॉ. एम.एल. जाट ने वैज्ञानिकों की प्रशंसा करते हुए कहा, “आज का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।” उन्होंने कृषि अनुसंधान को आपूर्ति-आधारित से मांग-आधारित बनाने, कौशल विकास को बढ़ावा देने और संपूर्ण कृषि-खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
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