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भारत अपने समुद्री इलाके में छिपे हुए संसाधनों का पता लगाने के लिए (India started a pilot project for deep ocean research) एक बड़ी पहल कर रहा है। सरकार ने एक पायलट प्रोजेक्ट (Pilot Project) शुरू किया है जिसमें वैज्ञानिक और मछुआरे मिलकर गहरे समुद्र में पाई जाने वाली मछलियों और अन्य जीवों का अध्ययन करेंगे। इसका मकसद ये पता लगाना है कि क्या इन संसाधनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
गहरे समुद्र में छिपा है खज़ाना (The treasure is hidden in the deep sea)
समुद्र की गहराई में 200 से 1,000 मीटर के बीच एक विशेष क्षेत्र होता है, जिसे मेसोपेलैजिक जोन (Mesopelagic Zone) कहा जाता है। यहां माइक्टोफिड्स (Myctophids Fish) जैसी मछलियों की भरमार है, जिनका अभी तक बहुत कम उपयोग हुआ है। ये मछलियां दुनिया भर में पाई जाती हैं, लेकिन इन्हें पकड़ने और इस्तेमाल करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है।
अब वैज्ञानिकों को पता चला है कि इन मछलियों से फिशमील (मछली का चारा), Nutraceuticals (स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद) और दवाइयां बनाई जा सकती हैं। चूंकि दुनिया भर में पारंपरिक मछलियों का ज्यादा शिकार हो रहा है, इसलिए अब इन नए संसाधनों पर रिसर्च की जा रही है।
कैसे होगी यह रिसर्च? (How will this research be done?)
इस प्रोजेक्ट को केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute) और केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (Central Institute of Fisheries Technology) मिलकर चला रहे हैं। इसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत फंड मिला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीय समुद्र में लगभग 20 लाख टन मेसोपेलैजिक मछलियां ((Myctophids Fish)) मौजूद हैं, जिनका सही तरीके से उपयोग किया जा सकता है।
इस प्रोजेक्ट में मछुआरों और मछली पकड़ने वाली कंपनियों को भी शामिल किया गया है। वैज्ञानिक यह पता लगाएंगे कि:
1.कितनी मछलियां पकड़ी जा सकती हैं?
2.उन्हें पकड़ने का सही तरीका क्या होगा?
3.इन मछलियों से कौन-कौन से उत्पाद बनाए जा सकते हैं?
4.क्या इनका व्यावसायिक उपयोग संभव है?
पर्यावरण का भी रखा जाएगा ध्यान (The environment will also be taken care of)
CMFRI के निदेशक ग्रिंसन जॉर्ज ने बताया कि इस रिसर्च का मकसद सिर्फ मछलियां पकड़ना नहीं, बल्कि समुद्री संसाधनों का सही और टिकाऊ उपयोग करना है। उन्होंने कहा, “अगर हम गहरे समुद्र की मछलियों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं, तो तटीय इलाकों में मछलियों का दबाव कम होगा। इससे समुद्री पर्यावरण को भी फायदा होगा।”
CIFT के निदेशक जॉर्ज निनन ने बताया कि ओमान जैसे देशों में इन मछलियों का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस एक साल के पायलट प्रोजेक्ट के बाद पता चलेगा कि भारत में इन संसाधनों का कैसे उपयोग किया जा सकता है।
क्या होगा फायदा?
- मछुआरों को नया रोजगार मिलेगा।
- फिशमील और दवाइयों के लिए नए स्रोत मिलेंगे।
- तटीय मछलियों पर दबाव कम होगा।
- भारत की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।
भारत ने समुद्र की गहराइयों में छिपे खजाने को तलाशने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता है, तो देश को मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह पर्यावरण के लिए भी अच्छा होगा। अब देखना यह है कि यह रिसर्च कितनी सफल होती है और क्या भारत गहरे समुद्र के संसाधनों का सही उपयोग कर पाता है।
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