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बिहार राज्य के किसान ख़रीफ़ मौसम का बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए खेती की दृष्टि से सबसे अहम समय होता है। मानसून की शुरुआत के साथ ही खेतों में हलचल तेज हो जाती है और किसान भाई धान, मक्का, दाल, तिलहन और सब्ज़ियों की बुवाई शुरू कर देते हैं। लेकिन केवल बीज बो देना ही पर्याप्त नहीं होता। फ़सलों की अच्छी उपज के लिए वैज्ञानिक सलाह, सही समय पर खेत की तैयारी, उन्नत क़िस्मों का चयन, पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग और कीटों से बचाव की पूरी योजना होना ज़रूरी है।
इस ब्लॉग में बिहार राज्य के किसान भाइयों के लिए ख़रीफ़ फ़सल के लिए सलाह दी जा रही है, जिसे अपनाकर वे अपनी पैदावार और आमदनी दोनों में सुधार कर सकते हैं।
धान की खेती के लिए ज़रूरी बातें (Necessary things for paddy cultivation)
बिहार राज्य के किसान जो निम्न भूमि में खेती करते हैं, उनके लिए लंबी अवधि की धान की क़िस्में जैसे स्वर्णा सब-1, राजेन्द्र मह्सूरी, राजेन्द्र भागवती, साबौर सम्पन्न और साबौर दीप बहुत उपयोगी मानी जाती हैं। वहीं, मध्यम अवधि के लिए राजेन्द्र श्वेता, सोनम, DRR धान-44, बीपीटी-5204 और रुपाली जैसी क़िस्में अच्छा प्रदर्शन करती हैं।
ऊंचे स्थानों या upland क्षेत्र में खेती करने वाले किसानों के लिए सहभागी, साबौर श्री, तुरंता, शुष्क सम्राट और स्वर्ण श्रेया जैसी कम अवधि की क़िस्में ज्यादा लाभदायक हैं जिन्हें सीधी बुवाई विधि से बोया जा सकता है। बीज बोने से पहले उनका उपचार करना भी बहुत ज़रूरी है। कार्बेन्डाजिम और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन जैसे रसायनों से या ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक विकल्प से बीजों का उपचार किया जाना चाहिए ताकि बीमारियों से बचाव हो सके। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए खेत में ढैंचा जैसी हरी खाद का उपयोग भी फ़ायदेमंद होता है।
पोषक तत्व प्रबंधन और बुवाई की सलाह (Nutrient management and sowing advice)
धान की अच्छी उपज के लिए मिट्टी में संतुलित पोषक तत्वों का होना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए यूरिया, डीएपी, म्यूरेट ऑफ पोटाश और जिंक सल्फेट का समुचित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। लंबी अवधि की क़िस्मों के लिए 58 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस और 45 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए, जबकि छोटी अवधि की क़िस्मों के लिए यह मात्रा थोड़ी कम होती है।
ख़रीफ़ फ़सल के लिए सलाह में कहा जाता है नर्सरी की बुवाई 25 मई से 10 जून के बीच कर लेनी चाहिए और 15 से 20 जून के बीच रोपाई कर देना उचित होता है। पौध की आयु 21 से 25 दिन होनी चाहिए और रोपाई करते समय पौधों की दूरी और कतारों की सही व्यवस्था करना भी ज़रूरी होता है।
मक्का की खेती के लिए ज़रूरी बातें (Necessary things for maize cultivation)
बिहार राज्य के किसान ख़रीफ़ मौसम में मक्का की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। तो उन्हें ख़रीफ़ फ़सल के लिए सलाह दी जाती है मक्का की खेती के लिए खेत की तैयारी मई महीने से ही कर लेनी चाहिए ताकि मानसून शुरू होते ही बुवाई की जा सके। खेत की जुताई करते समय उसमें गोबर की सड़ी खाद डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
बीज का चयन करते समय किसानों को उच्च उत्पादकता देने वाली क़िस्मों जैसे PMH-3, HQPM-1, विवेक-27, ऑरेंज फ्लिंट और P-3522 को प्राथमिकता देनी चाहिए। बीजों की बुवाई जून के पहले सप्ताह में करनी चाहिए ताकि पौधे मानसून की शुरुआती नमी का पूरा लाभ उठा सकें। फॉल आर्मी वर्म जैसे कीटों से बचाने के लिए फ़सल के बीच में रेत भरना और समय पर इमामेक्टिन बेंजोएट का छिड़काव करना प्रभावी तरीका होता है।
दलहनी फ़सलों की खेती पर सलाह (Advice on cultivation of pulses crops)
ख़रीफ़ मौसम में अरहर, मूंग और उड़द जैसी दलहनी फ़सलें बिहार राज्य के किसानों के लिए पोषण और आमदनी दोनों का स्रोत होती हैं। अरहर के लिए यूपीएएस-120, बहार, आशा और नरेंद्र अरहर-1 जैसी क़िस्में उपयुक्त हैं जो पानी की निकासी वाली भूमि में अच्छे परिणाम देती हैं। मूंग और उड़द के लिए बिरसा उड़द-1, पंत यू-31, एसएमएल-668 और एचयूएम-16 जैसी क़िस्में उपयुक्त हैं। इन फ़सलों में जड़ सड़न और पत्ती झुलसा जैसे रोग आम हैं, जिनसे बचाव के लिए फ़सल चक्र अपनाना और जैविक कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक होता है। फूल और फल अवस्था के दौरान स्पिनोसाड या इमामेक्टिन का छिड़काव करना प्रभावी साबित होता है।
तिलहन फ़सलों में उत्पादन बढ़ाने की रणनीति (Strategy to increase production in oilseed crops)
तिलहन फ़सलों की बात करें तो ख़रीफ़ में मूंगफली और सोयाबीन प्रमुखता से ली जाती हैं। बिहार राज्य के किसान अगर तिलहन की खेती करना चाहते हैं तो मूंगफली के लिए K-1812, TG-37A और JL-24 क़िस्में बेहतर परिणाम देती हैं, जबकि सोयाबीन के लिए JS-2098 और बिरसा सफेद सोयाबीन-2 को लगाया जा सकता है। सरसों और तिल जैसी फ़सलें भी ख़रीफ़ के अंत और रबी की शुरुआत में लाभदायक होती हैं। बुवाई का सही समय 15 जून से 5 जुलाई तक होता है और इस दौरान संतुलित खाद का प्रयोग और रोगों से बचाव की उचित रणनीति अपनानी चाहिए।
सब्ज़ियों और फलों के लिए ख़रीफ़ में ज़रूरी उपाय (Necessary measures in kharif for vegetables and fruits)
ख़रीफ़ मौसम में भिंडी, टमाटर, लौकी, करेला, खीरा जैसी सब्ज़ियों की खेती की जाती है। इन ख़रीफ़ फ़सल के लिए सलाह दी जाती है कि इन सब्ज़ियों की खेती के लिए खेत की समुचित तैयारी, जलनिकासी और पौधों की दूरी का ध्यान रखना ज़रूरी है। रोगों से बचाव के लिए पत्तियों पर थायमेथोक्सम और नीम आधारित दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। फलों की बात करें तो आम, अमरूद और लीची जैसे बागवानी फ़सलों को ख़रीफ़ के दौरान विशेष देखभाल की जरूरत होती है। पौधों के नीचे म्यूलचिंग करना, समय पर पानी देना और पत्तियों पर प्लैनोफिक्स का छिड़काव करना फ़ायदेमंद होता है।
अन्य क्षेत्र जैसे गन्ना, पशुपालन और मत्स्य पालन (Other areas such as sugarcane, animal husbandry and fisheries)
बिहार राज्य के किसान जो गन्ने की खेती करते हैं उन्हें ख़रीफ़ के मौसम में गन्ने के खेतों में मिट्टी चढ़ाना, खरपतवार हटाना और जिंक की कमी पूरी करना चाहिए। कीट नियंत्रण के लिए क्लोरेंट्रेनिलीप्रोल जैसे कीटनाशक का प्रयोग असरदार होता है। पशुपालन करने वाले किसानों को गर्मी और नमी में विशेष ध्यान देना चाहिए। पशुओं के शेड साफ-सुथरे और हवादार रखें, पैर की सड़न से बचाव के लिए सूखी भूमि पर रखें और समय-समय पर डिवॉर्मिंग जरूर कराएं।
मत्स्य पालन करने वाले किसानों के लिए भी यह समय महत्वपूर्ण होता है। तालाबों में पानी की गुणवत्ता बनाए रखना, फीड का प्रबंधन, चूना और पोटाशियम परमैंगनेट का प्रयोग करना और समय-समय पर जल परीक्षण करना मछलियों के स्वास्थ्य और उत्पादन के लिए ज़रूरी होता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
बिहार राज्य के किसान अगर ख़रीफ़ मौसम की शुरुआत से ही योजनाबद्ध तरीके से खेती करें, फ़सल चयन से लेकर कीट नियंत्रण और खाद प्रबंधन तक हर पहलू पर ध्यान दें, तो उनकी पैदावार और आमदनी में ज़बरदस्त वृद्धि हो सकती है। यह खरीफ़ फ़सल के लिए सलाह केवल एक वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक गाइड है, जो हर किसान की मेहनत को मुनाफ़े में बदल सकती है।
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