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भारत की मिट्टी सदियों से अपने सुनहरे मसालों और सुगंधित पौधों के लिए दुनियाभर में फेमस रही है। इन्हीं में से एक है मेंथा, जिसके तेल (Mentha Oil) का इस्तेमाल दवाओं, ब्यूटी प्रोडक्ट, खाद्य पदार्थों और अरोमा थेरेपी में बड़े पैमाने पर होता है। लेकिन अब तक मेंथा की खेती खासतौर सिंचित क्षेत्रों तक ही सीमित थी, जहां जनवरी-फरवरी में इसकी रोपाई होती थी और साल में केवल एक ही फसल मिल पाती थी। यही वजह थी कि देश के विशाल असिंचित क्षेत्रों के किसान इसकी खेती से वंचित रह जाते थे।
लेकिन अब Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants (सीमैप – CIMAP), लखनऊ के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी टेक्नोलॉजी डेवलप की है जो मेंथा की खेती के पुराने नियमों को ही बदल देती है। इस नई ‘खरीफ मिंट टेक्नोलॉजी’ (‘Kharif Mint Technology’) ने न सिर्फ असिंचित किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं, बल्कि देश में मेंथा तेल के उत्पादन और निर्यात को भी नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का रास्ता साफ किया है।
क्या है ये नई ‘खरीफ मिंट टेक्नोलॉजी’?
पारंपरिक तरीके में मेंथा की रोपाई जनवरी-फरवरी में इसकी जड़ों (स्टोलन) के ज़रीये से की जाती थी, जिसके लिए भरपूर सिंचाई की ज़रूरत होती थी। सीमैप के वैज्ञानिकों ने इस method को बदल दिया है। इस नई टेक्नोलॉजी में पौधे की जड़ों की जगह उसके हवाई हिस्सा (एरियल पार्ट्स), यानी तनों और शाखाओं का यूज़ प्लांटिंग मैटेरियल के रूप में किया जाता है।
इसके चलते अब मेंथा की रोपाई जून-जुलाई के मानसून महीनों में भी आसानी से की जा सकती है। इस टाइम बारिश होने के कारण सिंचाई पर निर्भरता लगभग खत्म हो जाती है, जिससे पानी की बचत होती है और लागत भी कम आती है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस तकनीक से अब साल में तीन फसलें लेना संभव हो गया है, जिससे किसानों की आमदनी में भी बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है।
सुगंधित सोना: CIMAP और मेंथा तेल की कहानी
भारत मेंथा तेल का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, और इसके पीछे का एक बड़ा नाम है केंद्रीय संवेदनशील औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (CIMAP)। लखनऊ स्थित ये संस्थान CSIR की एक शानदार रिसर्च लैब है।
सीआईएमएपी की रिसर्च यात्रा अद्भुत रही है। इसने मेंथा की उन्नत किस्में (जैसे- ‘हिमरोज’, ‘कॉस्म’) विकसित कीं, जिनमें रोगों से लड़ने की क्षमता अधिक है और तेल की गुणवत्ता व मात्रा बेहतर है। साथ ही, किसानों को वैज्ञानिक खेती के तरीके सिखाए, जिससे उपज कई गुना बढ़ी।
दस सालों के अथक शोध का परिणाम
सीमैप के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश कुमार उपाध्याय के अनुसार, ये सफलता रातों-रात नहीं मिली। संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को विकसित करने के लिए लगभग 10 सालों तक कड़ी मेहनत और शोध की। उन्होंने बताया कि इस तकनीक से असिंचित क्षेत्रों में भी प्रति हेक्टेयर 150 से 180 लीटर तक मेंथा तेल का प्रोडक्शन मिलती है, जो कि एक शानदार रिजल्ट है।
आर्थिक और औद्योगिक महत्व
मेंथा तेल भारत के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्यात उत्पाद है। देश दुनिया में मेंथा तेल और इससे बने उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। इसका इस्तेमाल:
दवा उद्योग: सर्दी-जुकाम की दवाओं, बाम, दर्द निवारक क्रीम वगैरह में।
खाद्य उद्योग: कैंडी, च्युइंगम, चटनी, पान मसाला आदि में स्वाद और सुगंध के लिए।
सौंदर्य प्रसाधन: टूथपेस्ट, माउथवॉश, साबुन, परफ्यूम वगैरह में।
अरोमा थेरेपी: तनाव कम करने और ताजगी देने वाले उत्पादों में।
सीमैप की इस नई टेक्नोलॉजी से न सिर्फ घरेलू उद्योग को पर्याप्त और सस्ता कच्चा माल मिलेगा, बल्कि निर्यात बढ़ने से देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। सबसे बड़ा फायदा होगा छोटे और सीमांत किसानों को, जो अब कम लागत में ज़्यादा मुनाफा कमा सकेंगे और देश की खुशबूदार प्रगति में अपना योगदान दे सकेंगे।
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