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ममता प्रमोद ठाकुर, महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव कार्ला की निवासी, एक प्रगतिशील किसान और समाजसेविका हैं। उनकी खेती पारंपरिक खेती से जैविक खेती तक का सफर तय कर चुकी है, जिसमें उन्होंने मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण के अनुकूल खेती पर विशेष ध्यान दिया है। जैविक खेती की शुरुआत उन्होंने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से की, जिसका उद्देश्य न केवल उनकी फसल में सुधार करना था, बल्कि स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाना भी था।
जैविक खेती की प्रक्रिया और परिणाम
ममता ने अपनी फसलों में जैविक उर्वरकों, जैसे जीवामृत, कुंडा, दशपर्णी अर्क, और नीम का अर्क का उपयोग करना शुरू किया। जब उनसे इस विषय पर बातचीत हुई, उन्होंने बताया, “रासायनिक उर्वरकों की तुलना में जैविक उर्वरकों का उपयोग करना बहुत आसान और किफायती होता है। इससे न केवल फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है, बल्कि मिट्टी की संरचना में भी सुधार होता है।”
खेत में उर्वरकों और कीटनाशकों का निर्माण
उन्होंने यह भी कहा कि खेत में उगाई गई गीली घास और पौधों का उपयोग जैविक खाद्य उत्पाद के रूप में किया जाता है, जिससे लागत में काफी कमी आई है। ममता ने अपने खेत में उर्वरकों और कीटनाशकों का निर्माण खुद किया, जिसमें दशपर्णी अर्क और जीवामृत जैसे प्राकृतिक उत्पाद शामिल हैं। इन प्रयासों से उत्पादन लागत में उल्लेखनीय कमी आई, और जो फसलें उगाई जाती हैं, वे स्वास्थ्य के लिए भी अधिक सुरक्षित हैं।
सामाजिक सेवा: गांव में जागरूकता अभियान
ममता सिर्फ एक किसान ही नहीं, बल्कि एक सक्रिय समाजसेविका भी हैं। उन्होंने अपने गाँव में शराब विरोधी अभियान चलाया और दो से तीन साल के प्रयासों के बाद गाँव को शराब मुक्त बना दिया। कोरोना महामारी के दौरान ममता ने लोगों को मास्क बांटे और टीकाकरण के प्रति जागरूकता फैलाई। विकलांग व्यक्तियों की मदद करते हुए उन्हें टीकाकरण केंद्र तक पहुँचाया। हर घर तिरंगा अभियान के तहत, ममता ने गाँव में घर-घर जाकर लोगों को राष्ट्रीय पर्व के प्रति जागरूक किया।
उपलब्धियां और सम्मान
उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों और सेवाओं के कारण उन्हें कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाज़ा गया है:
• 2016: जमशेदजी टाटा नेशनल वर्चुअल अकादमी की फ़ेलोशिप, जिसे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा प्रदान किया गया।
• 2019: महाराष्ट्र राज्य जीवन उन्नति अभियान की ओर से ‘हिरकनी पुरस्कार’।
• 2021: विदर्भ स्तरीय ‘राजीव गांधी कृषि रत्न पुरस्कार’।
• 2022: वोडाफोन आइडिया फाउंडेशन से ‘स्मार्ट एग्री प्रोजेक्ट प्रोग्रेसिव वुमेन अवार्ड’।
• 2021-22: महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘जीजामाता कृषि भूषण पुरस्कार’।
• 2024: डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय, अकोला द्वारा ‘वसंतराव नाइक पुरस्कार’।
भविष्य की योजनाएं
ममता का उद्देश्य गांव के अन्य किसानों को जैविक खेती की ओर प्रोत्साहित करना है। “जैविक खेती न केवल हमारी भूमि को सुरक्षित रखती है, बल्कि हमारे परिवार के स्वास्थ्य को भी,” ममता ने कहा। उनके प्रयासों से गाँव में जागरूकता बढ़ रही है, और कई किसान रासायनिक खेती छोड़कर जैविक खेती अपनाने की दिशा में प्रेरित हो रहे हैं।
जैविक खेती और समाजसेवा
ममता का सफर यह दिखाता है कि किस प्रकार एक किसान अपने समाज में बदलाव ला सकता है। उनके प्रयास न केवल खेती में नवाचार के प्रतीक हैं, बल्कि एक संपूर्ण समाज सुधार की मिसाल भी हैं। जैविक खेती और समाजसेवा के इस संगम से प्रेरित होकर, ममता अपने समुदाय के लोगों को एक स्वस्थ, सशक्त और स्वावलंबी जीवन की दिशा में अग्रसर कर रही हैं।