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एक छोटा सा फफूंद, जिसे हम मशरूम (Mushroom Cultivation) के नाम से जानते हैं, आज बिहार के सहरसा ज़िले (Saharsa district of Bihar) की ग्रामीण महिलाओं के ज़िदगी में बड़े बदलाव की वजह बन रहा है। अगवानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आयोजित चार दिवसीय मशरूम प्रोडक्शन ट्रेनिंग (Mushroom production training) ने न सिर्फ महिलाओं को एक नई राह दिखाई है, बल्कि उन्हें ‘आत्मनिर्भर भारत’ की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है। ये सिर्फ एक ट्रेनिंग प्रोग्राम नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने और कुपोषण को हराने की एक मज़बूत पहल है।
क्यों मशरूम है ग्रामीण विकास की ‘गेम चेंजर’ फ़सल?
मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation) को स्मॉल स्केल पर स्वरोजगार (Self employment) के लिए सबसे बेहतर माना जाता है। इसके पीछे गहरा रिसर्च और लॉजिक है-
1.कम लागत, ज़्यादा मुनाफा
इसे शुरू करने के लिए बड़े ज़मीन या भारी निवेश की ज़रूरत नहीं होती। घर के पीछे, खाली कमरे या छत पर भी छोटे पैमाने पर इसकी खेती की जा सकती है। एक छोटी सी यूनिट से ही कुछ हजार रुपये की शुरुआती लागत में हजारों रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया जा सकता है।
2.कम समय, अधिक उपज
अन्य फसलों के मुकाबले मशरूम की फसल बहुत जल्दी (लगभग 3-4 सप्ताह) में तैयार हो जाती है, जिससे महिलाओं को आमदनी का स्रोत मिलता है।
3.पोषण का ख़ज़ाना
मशरूम प्रोटीन, विटामिन, खनिज और एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है। ये शाकाहारी लोगों के लिए ‘मीट’ के बराबर है। डॉ. सुनीता पासवान के शब्दों में, ‘देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कुपोषण मुक्त समाज ज़रूरी है, और मशरूम जैसे पोषणयुक्त उत्पाद इसमें अहम भूमिका निभाएंगे।’
ट्रेनिंग: सीख से स्वरोजगार तक का सफ़र
KVK, अगवानपुर द्वारा आयोजित इस प्रशिक्षण में महिलाओं को सैद्धांतिक और प्रायोगिक (Theoretical and experimental) दोनों तरह की जानकारी दी गई। वैज्ञानिक डॉ. सुनीता पासवान ने बताया कि महिलाओं को स्थानीय वातावरण के अनुकूल चार तरह के मशरूम-ऑयस्टर, बटन, दूधिया और पैडीस्ट्रॉ मशरूम की उन्नत खेती के तरीके सिखाए गए। इसमें कम्पोस्ट बनाने, बीज (स्पॉन) लगाने, तापमान व नमी कंट्रोल और मशरूम की तुड़ाई जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर ट्रेनिंग दी गई।
महिलाओं की आवाज़
ट्रेनिंग में हिस्सा ले रही शशिकला भारती का उत्साह इस बात का प्रमाण है कि ये पहल कितनी कारगर साबित हो रही है। उन्होंने कहा, ‘हमें यहां से बहुत कुछ सीखने को मिला है। जब हम अपने गांव लौटेंगे, तो खुद मशरूम उगाएंगे और गांव की दूसरी महिलाओं को भी इसके बारे में जागरूक करेंगे।’
वहीं, सोनी कुमारी ने आर्थिक पहलू पर बात करते हुए कहा, ‘मशरूम की खेती में लागत कम और आमदनी ज़्यादा होती है,इससे महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर बनेंगी, बल्कि अपने परिवार की परवरिश भी बेहतर तरीके से कर सकेंगी।’
सरकारी सहयोग
Senior Scientist डॉ. अरविंद कुमार सिन्हा ने एक अहम बात बताई कि ट्रेनिंग के बाद महिलाएं ग्रुप बनाकर इस काम को आगे बढ़ा सकती हैं। सरकार की ओर से इसके लिए अनुदान भी दिया जाता है। भारत सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मिशन शक्ति’ जैसी योजनाएं Women Empowerment को बढ़ावा दे रही हैं, और KVK का ये प्रयास सीधे तौर पर इन्हीं लक्ष्यों को पूरा कर रहा है।
केवल मशरूम नहीं, आत्मविश्वास की फसल
अगवानपुर का ये ट्रेनिंग प्रोग्राम दरअसल एक बीज रोपने का काम कर रहा है। ये बीज है आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का। जब ये महिलाएं अपने गांव लौटकर मशरूम की खेती शुरू करेंगी, तो न सिर्फ उनकी अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि वे पूरे समुदाय के लिए एक मिसाल बनेंगी।
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