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भारतीय डेयरी उद्योग (India’s Dairy Revolution) ने एक ऐतिहासिक पल को जन्म दिया है। एक ऐसी सफलता जो न सिर्फ विज्ञान की जीत है, बल्कि करोड़ों छोटे डेयरी किसानों की आमदनी बढ़ाने और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने की दिशा में एक मज़बूत कदम है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) ने हाल ही में देश के पहले ‘Super Bull’ यानी महाशक्तिशाली सांड़ ‘वृषभ’ के जन्म की घोषणा की है। ये कोई आम सांड़ नहीं है, बल्कि अत्याधुनिक जीनोमिक चयन (Genomic Selection) और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन–एंब्रियो ट्रांसफर (IVF-ET) तकनीक का चमत्कार है। ये सफलता राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत चल रही एक पायलट परियोजना का नतीजा है।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) का क्या है रोल?
NDDB की स्थापना 1965 में देश में ‘श्वेत क्रांति’ (White Revolution) लाने के लिए की गई थी, जिसके जनक डॉ. वर्गीज कुरियन थे। इसका मुख्य उद्देश्य देश के डेयरी किसानों को एक स्टेज पर लाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना और दूध उत्पादन बढ़ाना था। ‘ऑपरेशन फ्लड’ इसी की देन था, जिसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया। NDDB आज भी डेयरी को-ऑपरेटिव्स, पशु स्वास्थ्य, पोषण, और अब जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) के क्षेत्र में शोध और विकास (Research and Development) करके देश की डेयरी अर्थव्यवस्था (Dairy Economy) को मजबूत कर रहा है।
जीनोमिक चयन (Genomic Selection) क्या है? समझिए आसान भाषा में
पारंपरिक तरीके में, एक बैल की क्वालिटी का पता लगाने के लिए उसकी संतानों के दूध उत्पादन का इंतजार करना पड़ता था, जिसमें 5-6 साल लग जाते थे। जीनोमिक चयन इस प्रोसेस में Revolution लाता है।
सोचिए, जैसे किसी बच्चे का DNA टेस्ट करके ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसे फ्यूचर में कौन-सी बीमारियां हो सकती हैं, ठीक उसी तरह Genomic Selection में एक नवजात बछड़े के DNA के नमूने (जीनोम) का Analysis करके ये भविष्यवाणी की जाती है कि वो बड़ा होकर कितनी उच्च गुणवत्ता वाली संतान पैदा करेगा। इससे नस्ल सुधार के प्रोसेस में लगने वाला लंबा समय कई गुना कम हो जाता है और चयन बहुत ही सटीक हो जाता है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत पायलट परियोजना क्या है?
राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत 2019 में देशी नस्ल के पशुओं के संरक्षण और उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए की गई थी। इसी मिशन के तहत एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया, जिसका टार्गेट था अत्याधुनिक प्रजनन तकनीकों (cutting edge reproductive technologies) का इस्तेमाल करके ‘सुपर बुल्स’ तैयार करना। इस प्रोजेक्ट में IVF-ET टेक्नोलॉजी से उच्च नस्ल की गायों (Elite Donor Cows) के भ्रूण तैयार किए गए और फिर उन्हें सरोगेट माताओं में प्रत्यारोपित किया गया। ‘वृषभ’ इसी पायलट प्रोजेक्ट की पहली सफल Fastigium है।
कैसे मिली ये ऐतिहासिक सफलता?
NDDB ने इसकी शुरुआत महज 9 चुनिंदा उच्च नस्ल की गायों से की। इन गायों से IVF टेक्नोलॉजी द्वारा भ्रूण बनाए गए और उन्हें अलग-अलग सरोगेट माताओं में ट्रांसफर किया गया। अब तक 124 सफल गर्भधारण हुए हैं और इनमें से पहला बछड़ा, ‘वृषभ’, गुजरात की साबर डेयरी में पैदा हुआ है।
‘वृषभ’ इतना ख़ास क्यों है? आंकड़ों में समझिए
‘वृषभ’ की सबसे बड़ी ताकत है उसकाGenomic breeding value (GBV) जो 932.5 किलोग्राम है। ये आंकड़ा क्यों चौंकाने वाला है, आइए तुलना करते हैं:
- वृषभ का GBV: 932.5 KG
- एनडीडीबी की दूसरी परियोजनाओं (HFCB) में जन्मे बछड़ों का औसत GBV: 461.34 KG
- देशभर के सीमन स्टेशनों पर मौजूद बैलों का औसत GBV: 227 KG
यानी, ‘वृषभ’ की आनुवंशिक क्षमता देश के औसत बैलों से लगभग चार गुना ज्यादा है। इस High GBV का मतलब है कि जब ‘वृषभ’ बड़ा होगा, तो उसके वीर्य से पैदा होने वाली बेटियां (डेयरी गायें) बहुत अधिक मात्रा में दूध का उत्पादन करेंगी।
डेयरी किसानों के लिए क्या बदलाव आएगा?
1.छोटे किसानों की आमदनी बढ़ेगी: एक छोटा पशुपालक ‘वृषभ’ जैसे सुपर बुल का वीर्य (Seeman) कम कीमत पर पाया जा सकता है और अपने साधारण झुंड की गुणवत्ता को अगले ही पीढ़ी में बदल सकता है। इससे उसकी आय में significant बढ़ोतरी होगी।
2.आत्मनिर्भर भारत को मजबूती: दूध उत्पादन बढ़ने से देश को दूध आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और Dairy products के निर्यात की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।
3. ग्लोबल पहचान: भारत अब डेयरी टेक्नोलॉजी, विशेष रूप से जेनेटिक्स के क्षेत्र में दुनिया का अगुआ बनने की ओर अग्रसर है।
एक नए युग की शुरुआत
एनडीडीबी के अनुसार, ये तकनीक भारतीय डेयरी प्रणाली को ‘तेज, चतुर और बेहतर’ जेनेटिक्स की ओर ले जाएगी। अब डेयरी किसानों को दशकों इंतजार करने की जरूरत नहीं होगी। जीनोमिक चयन और IVF जैसी तकनीकें नस्ल सुधार की गति को तेजी कर देंगी।
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