पंजाब के किसान अंग्रेज सिंह भुल्लर की सफलता की कहानी: Organic Farming और Vermicompost से मिल रहा तगड़ा मुनाफा

अंग्रेज सिंह भुल्लर ने साल 2006 में पारंपरिक खेती से हटकर बेहतर सुधार के लिए जैविक खेती (Organic Farming) की शुरूआत की। जैविक खेती करने से उनको वक्त के साथ अच्छे रिज़ल्ट भी मिले। अंग्रेज सिंह भुल्लर का कहना है कि इंसान की पहली ज़रूरत हवा, पानी और भोजन है और वो इसी पर काम करते हैं। वो जैविक खेती के ज़रिए मिट्टी को बचाने की बात करते हैं।

पंजाब के किसान अंग्रेज सिंह भुल्लर की सफलता की कहानी: Organic Farming और Vermicompost से मिल रहा तगड़ा मुनाफा

पंजाब के किसान (Farmers of Punjab) खेती में नये-नये एक्सपेरिमेंट करते आ रहे हैं। जिसकी वजह से वो अपनी फसलों को दो गुने -तीन गुने दामों तक बेचते हैं। यहां के किसान पारंपरिक तरीकों से हटकर नए सहायक व्यवसायों को अपना रहे हैं। मुक्तसर साहिब के भुल्लर गांव के निवासी अंग्रेज सिंह भुल्लर (Angrej Singh Bhullar) ने भी कुछ ऐसी ही सोच के साथ जैविक खेती (Organic farming) की ओर कदम बढ़ाया।

अंग्रेज सिंह भुल्लर ने साल 2006 में पारंपरिक खेती से हटकर बेहतर सुधार के लिए जैविक खेती की शुरूआत की। जैविक खेती करने से उनको वक्त के साथ अच्छे रिज़ल्ट भी मिले। अंग्रेज सिंह भुल्लर का कहना है कि इंसान की पहली ज़रूरत हवा, पानी और भोजन है और वो इसी पर काम करते हैं। वो जैविक खेती के ज़रिए मिट्टी को बचाने की बात करते हैं।

जैविक खेती (Organic farming) के तरीके के बारे में बात करते हुए अंग्रेज सिंह कहते हैं कि प्रकृति ने हर चीज़ में कोई न कोई गुण दिया है। उन्होंने कहा, ‘पौधे अपनी रक्षा करने में सक्षम हैं, लेकिन कई बार जानकारी के अभाव में हम सही चीज़ का इस्तेमाल नहीं कर पाते।’

अंग्रेज सिंह भुल्लर जैविक खेती की ओर कैसे आए?

अंग्रेज सिंह बताते हैं कि पहले वो रासायनिक खेती (Chemical farming)  करते थे और खेती के लिए केमिकल स्प्रे की दुकान भी चलाते थे। लेकिन फिर उन्हें पता चला कि ये हेल्थ के लिए काफी नुकसानदायक है।

उन्होंने कहा, ‘जब मुझे एहसास हुआ कि हम अपने शरीर और मिट्टी को ज़हर दे रहे हैं, तो मैंने अपना इरादा बदल दिया और जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया।’

अंग्रेज सिंह ने पहले एक छोटे से एरिया में जैविक खेती शुरू की जिसके अच्छे परिणाम मिले तब उन्होंने क्षेत्र बढ़ाया। सबसे पहले उन्होंने फलों और सब्जियों की खेती शुरू की। पशुओं के चारे के लिए भी जैविक तरीके अपनाए। वे बताते हैं ‘जब पशुओं को क्लीन और ऑर्गेनिक चारा मिलता है, तो वे भी स्वस्थ रहते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।’ 

वर्मीकम्पोस्ट का महत्व

वो अपने खेत में Vermicompost यानी केंचुआ खाद तैयार करते हैं, जिसे खरीदने के लिए लोग उनके पास आते हैं। इसकी मांग के बारे में, वे कहते हैं कि हमारी खाद ज़्यादातर घर से ही बिक जाती है, लोग खुद ही इसे खरीदने पहुंच जाते हैं, हालांकि, वे ये भी कहते हैं कि क्विलिटी सबसे ज़रूरी है, खरीदार अच्छी चीज़ों की तलाश करता है और सही और प्योर सामान की ही मांग होती है, इसलिए हर काम में क्विलिटी को सबसे आगे रखना चाहिए। 

केंचुआ खेतों में एक महत्वपूर्ण जीव है। खेतों में कई तरह के केंचुए होते हैं और कृषि में इनकी ज़रूरत काफी अहम है। इनके महत्व के बारे में बात करते हुए, अंग्रेज सिंह कहते हैं कि केंचुए कृषि की उर्वरता बढ़ाते हैं और प्रदूषण भी कम करते हैं।

उनका कहना है कि Fungus पौधों की जड़ों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं और केंचुए इस फंगस   को खत्म करते हैं। ये मिट्टी का बैलेंस बनाए रखते हैं और मिट्टी को जिंदा रखते हैं।

उनके अनुसार, हर फर्टिलाइज़र (Fertilizer) के साथ सभी पोषक तत्व मौजूद नहीं होते हैं। मिट्टी को कई तरह के पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है, लेकिन वर्मीकम्पोस्ट के रिजल्ट बहुत पॉजिटिव  हैं। इससे मिट्टी को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं जो मिट्टी को स्वस्थ बनाते हैं।

वर्मीकम्पोस्ट विधि

वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) तैयार करने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। कई किसान पॉलीथीन का भी यूज़ करते हैं, लेकिन अंग्रेज सिंह ने अपने खेत में ईंटों की ठोस क्यारियां बनाई हैं।

इसकी ख़ासियत बताते हुए, वे कहते हैं कि इसमें नमी को कंट्रोल करना आसान है और साथ ही, इसमें मिट्टी नहीं मिलती। उनके अनुसार, ये क्यारियां लंबे वक्त तक इस्तेमाल में रहती हैं।

उनका कहना है कि खाद डालते समय पानी का रिसाव खाद की क्विलिटी को कम कर देता है, जिसे आमतौर पर ‘वर्मी वॉश’ कहा जाता है। इसीलिए ईंट की क्यारियां भी फायदेमंद होती हैं क्योंकि इनमें पानी का रिसाव नहीं होता और खाद की गुणवत्ता बनी रहती है।

मुनाफा कितना है?

इस बिज़नेस में फायदे के बारे में बात करते हुए, वे कहते हैं कि आमदनी का सीधा संबंध केंचुओं की संख्या से है। ज़्यादा केंचुए, ज़्यादा मुनाफ़ा।

उनके अनुसार, एक क्यारी में 4-5 क्विंटल गोबर का इस्तेमाल होता है। सबसे पहले, उसमें से गैस निकालनी होती है और उसे 2-3 महीने तक सड़ने के लिए छोड़ देना होता है। अच्छी तरह सड़ने के बाद, उसका रंग काला हो जाता है, जिसके बाद उसमें केंचुए डाले जाते हैं। ढाई से तीन महीने बाद खाद तैयार हो जाती है।

उनके अनुसार, तैयार खाद और केंचुए, दोनों ही आमदनी का हिस्सा हैं। एक चक्र पूरा करने के बाद, लगभग तीन महीने में एक क्यारी से 5 से 6 हज़ार रुपये की आमदनी होती है।

दूसरी फसलों में एक्सपेरिमेंट 

इसके साथ ही,अंग्रेज सिंह दूसरी फसलें भी उगाते हैं। उनका कहना है कि वे इन फसलों से अपने घर की ज़रूरतें पूरी करते हैं और नए-नए एक्सपेरिमेंट भी करते रहते हैं।

मिट्टी के बारे में बात करते हुए, वे कहते हैं कि प्रकृति ने किसी भी चीज़ में कोई कमी नहीं छोड़ी है। लेकिन जब हम केमिकल का यूज़ करते हैं, तो मिट्टी का Natural Balance बिगड़ जाता है और तत्वों की कमी होने लगती है।

उन्होंने कहा, ‘मिट्टी, जो प्रकृति का उपहार है, मनुष्यों के जीवन और भोजन की ज़रूरतों के लिए है। ये बिज़नेस का साधन नहीं हो सकती।’ उनका मानना ​​है कि परेशानी तब शुरू होती हैं जब हम कृषि को सिर्फ़ एक बिज़नेस के रूप में देखने लगते हैं। वे कहते हैं, ‘कृषि व्यापार का ज़रिया नहीं है, न ही ये पैसा खर्च करके मुनाफ़ा कमाने का बिज़नेस है। सबसे अहम चीज़ है व्यक्ति का स्वास्थ्य। अगर हेल्थ अच्छा रहेगा, तो आप बीमारियों से बचेंगे, स्वस्थ रहेंगे और पैसा भी कमाएंगे।’

 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

इसे भी पढ़िए: Colorful Revolutions और Indian Economy: जानिए, कैसे रंगों ने मिलकर बुनी भारत की आर्थिक ताकत की डोर

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top