दिल्ली-एनसीआर की हवा में घुलने वाला जहर और धुंध की मोटी चादर (thick blanket of fog) अब सिर्फ चिंता का विषय नहीं, बल्कि एक सामूहिक चुनौती बन चुकी है। इसकी एक बड़ी वजह है खेतों में जलती पराली (stubble burning)। लेकिन अब इस समस्या के समाधान के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारें गंभीलता से जुट गई हैं। इसी कड़ी में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव (Union Agriculture Minister Shivraj Singh Chouhan and Union Environment Minister Bhupendra Yadav) की अगुवाई में हुई एक हाई कमिटी बैठक ने एक नई रणनीति बनाई है। जिसमें सिर्फ उपायों से आगे बढ़कर क्रिएटिव और प्रेक्टिकल सल्यूशन (stubble management) पर जोर दिया गया है।
क्यों जलती है पराली? (Why Is Stubble Burnt?)
धान की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेष (stubble management) को जलाने के पीछे किसानों की मजबूरी है। अगली फसल (गेहूं) की बुवाई के लिए समय बहुत कम होता है और पराली हटाने की पारंपरिक विधियां महंगी और वक्त लेने वाली हैं। इससे निपटने के लिए अब सरकार ने जो रणनीति बनाई है, वो चार पिलर्स पर टिकी है- Awareness, Financial Help, Technical Solutions And Crop Diversification.
सरकारी योजनाओं का नेटवर्क (A Network Of Government Schemes)
केंद्र सरकार ने पराली प्रबंधन (stubble management) के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं, जिन पर बैठक में फिर से चर्चा हुई-
1. कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (Sub-Mission on Agricultural Mechanization)
इसके तहत किसानों को रोटावेटर, हैप्पी सीडर, बेलर मशीन, चॉपर जैसे उपकरण सब्सिडी पर उपलब्ध कराए जाते हैं। ये मशीनें पराली को जलाए बिना ही खेत तैयार करने या उसे इकट्ठा करने में मदद करती हैं।
2. जैव-अपघटक प्रौद्योगिकी (Bio-decomposer technology)
दिल्ली सरकार सहित कई राज्यों ने बायो-डीकम्पोजर का उपयोग शुरू किया है। यह एक जैविक तरल है, जिसे छिड़कने पर पराली 15-20 दिनों में खाद में बदल जाती है। केंद्रीय कृषि मंत्री ने इसके व्यापक इस्तेमाल पर जोर दिया।
3.कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund)
इस फंड के ज़रीये से किसान और उद्यमी बायो-सीएनजी प्लांट, कम्पोस्ट यूनिट्स वगैरह लगा सकते हैं, जिससे पराली से ऊर्जा और उर्वरक बनाया जा सके।
सीधी बुवाई (Direct Sowing)
इस बैठक का सबसे अहम conclusion सीधी बुवाई को बढ़ावा देना है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद एक अनूठी पहल की घोषणा करते हुए कहा कि वो 12 अक्टूबर को अपने खेत में धान कटाई के बाद सीधे ही गेहूं की बुवाई (Direct Seeding) करेंगे। इस तकनीक में पराली को जलाने या हटाने की जरूरत नहीं पड़ती। बल्कि, पराली की एक परत बनी रहती है, जो नमी संरक्षण और weed control में मददगार होती है। एक केंद्रीय मंत्री का ऐसा कदम किसानों के बीच इस तकनीक को एकPractical and reliable option के रूप में स्थापित करेगा।
फसल विविधीकरण (Crop Diversification)
बैठक में लगातार धान-गेहूं के चक्र से हटकर अन्य फसलों को अपनाने पर भी जोर दिया गया। मक्का, दलहन, तिलहन जैसी फसलें न सिर्फ कम पानी में पैदा होती हैं, बल्कि इनमें पराली की समस्या भी कम होती है। सरकार इन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देकर किसानों को प्रोत्साहित कर रही है।
निगरानी और जागरूकता (Surveillance and awareness)
केंद्रीय मंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई कि सिर्फ योजनाएं बना देने भर से काम नहीं चलेगा। रियल-टाइम मॉनिटरिंग और जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना उतना ही जरूरी है। इसके लिए पंचायतों, जनप्रतिनिधियों और नोडल अधिकारियों को जिम्मेदारी देनी होगी। पराली के संग्रहण और भंडारण की व्यवस्था को मजबूत करके उद्योगों तक इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।
पराली प्रबंधन- राष्ट्रीय प्राथमिकता (Stubble Management- A National Priority)
पराली प्रबंधन अब सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गया है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच यह बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अब दोषारोपण की राजनीति की जगह ठोस समाधान पर काम होगा। किसानों को सही तकनीक और वित्तीय मदद मिले, इसके लिए सरकार प्रतिबद्ध है। अगर योजनाओं को ईमानदारी से लागू किया गया और किसानों का सहयोग मिला, तो आने वाले समय में न सिर्फ दिल्ली की हवा साफ होगी, बल्कि किसानों की आय बढ़ाने और मिट्टी की सेहत सुधारने में भी यह अभियान मील का पत्थर साबित होगा।
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