गन्ने से अधिक मुनाफे के लिए ज़रूरी है रस चूसक कीटों का प्रबंधन

गन्ना देश की प्रमुख नगदी फसल है और चीनी उद्योग के लिए प्रमुख कच्चा माल। इसलिए गन्ने की खेती किसानों के लिए फायदेमंद होती है, मगर रस चूसक कीटों के प्रकोप से फसल को काफी हानि होती है। ऐसे में इनका प्रबंधन बहुत ज़रूरी हो जाता है।

रस चूसक कीटों का प्रबंधन

ग्लोबल वॉर्मिंग का असर अब सभी जगह साफ़ दिखने लगा है। इसका सबसे ज़्यादा असर तो मौसम पर ही दिख रहा है, गर्मी का प्रकोप बढ़ना, बरसात में कमी, ये सब इसी का असर है। बदलते मौसम का असर कृषि पर भी हो रहा है। गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) भी इससे अछूती नहीं है, वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से गन्ने को प्रभावित करने वाले कीटों में बदलाव आया है।

पहले जिन कीटों को मामूली समझा जाता था, अब वही फसल को ज़्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। रस चूसक कीटों का संक्रमण तेज़ी से फैलता है और ये गन्ने में चीनी की मात्रा को 20 प्रतिशत तक कम कर देते हैं। आइए, जानते हैं ऐसे ही कुछ रस चूसक कीटों और उनके प्रबंधन के बारे में।

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रस चूसक कीटों का प्रबंधन (Pest Control - Managing Sucking Pests)
रस चूसक कीटों का प्रबंधन- तस्वीर साभार: digitrac

दहिया कीट

ये कीट 5 मि.मी. लंबा, 2.5 मि.मी. चौड़ा और गुलाबी रंग का होता है। नर कीट को एक जोड़ी पंख होता है और इसका शरीर गोल, हिस्सों में बंटा हुआ और सफेद चूर्ण से ढंका होता है। ये कीट समूह में गन्ने की गांठों पर लगे होते हैं। जब फसल 4-5 महीने की हो जाती है तो ये नज़र आने लग जाते हैं और इनका असर फसल कटने तक रहता है। शिशु कीट और मादा कीट जिनके पंख नहीं होते हैं, वो पत्तियों से रस चूसकर उसे नुकसान पहुंचाते हैं। अगर सूखा पड़ा है तो फसल पर इसका असर ज़्यादा होता है।

कैसे करें प्रबंधन?

गन्ने की बुवाई से पहले खेत में पहले की फसल के अवशेषों को खत्म कर दें। बुवाई के समय संक्रमित बीजों का इस्तेमाल न करें। रोपाई के समय पंक्तियों में उचित दूर रखें। संक्रमित लीफशीथ को निकाल कर जला दें। इसके साथ ही थायोमोथॉक्सॉम 25 डब्ल्यू.जी. नाम के कीटनाशक को 2.5 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें।

काला चिकटा

ये कीट प्रौढ़ अवस्था में 6-7 मि.मी. तक लंबा होता है और इसके पंख काले होते हैं। पंखों पर सफेद धब्बे होते हैं। शिशु कीट का रंग भी प्रौढ़ कीट जैसा ही होता है। इन कीटों की संख्या ज़्यादा होने पर खेत से बदबू आने लगती है। ये कीट पौधों के कंठ से रस चूसते हैं, जिससे पौधों के बीच की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां सूख जाती हैं और पौधे का बढ़ना भी रुक जाता है।

कैसे करें प्रबंधन?

इसके उपचार के लिए थायोमोथॉक्सॉम 25 डब्ल्यू.जी. नाम के कीटनाशक को 2.5 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें। इस बात का ध्यान रखें कि छिड़काव बीच वाली फुनगी और पर्णच्छद पर ही रहे, क्योंकि कीट यहीं छुपे होते हैं। अगर ऐसा लग रहा है कि बारिश होने वाली है, तो कीटनाशक का उपयोग न करें, क्योंकि मध्य भाग में पानी भरने से ये खुद ही खत्म हो जाएंगे।

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रस चूसक कीटों का प्रबंधन
रस चूसक कीटों का प्रबंधन- तस्वीर साभार:upcane

पायरिला
यह कीट शिशु अवस्था में 1-15 मि.मी. लंबा और प्रौढ़ होने पर 20 मि.मी. तक लंबा होता है। प्रौढ़ कीट का रंग गन्ने की सूखी पत्तियों की तरह भूरा होता है और इसका अगला भाग नुकीला होता है। जबकि शिशु कीट मटमैले रंग का होता है। यह कीट पत्तियों का रस चूसते हैं और इनका प्रकोप मॉनसून के पहले और बाद में अधिक होता है। इस कीट से प्रभावित पत्तियां पीली और झुलसी हुई दिखती है। इस कीट के प्रभाव से गन्ने में चीनी की मात्रा 2 से 34 प्रतिशत तक कम हो जाती है।

कैसे करें प्रबंधन
किसानों को यह पता होना चाहिए कि इस कीट का ज़्यादा असर नाइट्रोजन वाली फसलों में होता है। इस कीट से फसल को बचाने के लिए ज़रूरी है कि इसके अंडों को इकट्ठा करके खत्म कर दें और गन्ने की सूखी पत्तियों को समय-समय पर हटाते रहें। एपीरिकेनिया परजीवी पायरिला कीट को नियंत्रित कर सकते हैं, इसलिए जहां ये मौजूद न हो वहां इसके 4000-5000 कोकून छोड़े जाने चाहिए। पायरीला अगर प्रौढ़ हो चुका है, तो उसे मेटारिजियम से उपचारित किया जा सकता है।

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रस चूसक कीटों का प्रबंधन
रस चूसक कीटों का प्रबंधन – तस्वीर साभार: agrifarming.

सफेद मक्खी
प्रौढ़ कीट 3 मि.मी. तक लंबा और सफेद पंख वाला होता है, जबकि शिशु कीट का रंग काला होता है और इसकी पंख नहीं होती। इसका प्रकोप अगस्त से अक्टूबर तक अधिक रहता है। खूंटी फसल पर असर ज़्याद दिखता है। ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियों पर काला चिपचिपा पदार्थ जम होता है और फसल दूर से ही पीली नज़र आने लगती है।

कैसे करें प्रबंधन
फसल को इस कीट से बचाने के लिए समय-समय पर सूखी पत्तियों को निकालकर जला दें। खेत में पानी जमा न होने दें, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि मट्टी की नमी बनी रहे। कीटनाशक में आप इमिजाक्लोप्रिड 17-8 एसएल 500 मि.ली. दवा 100 लीटर पानी में मिलाएं और इसे 20 किलो यूरिया में मिलाकर खेत में छिड़काव करें। यूरिया के इस्तेमाल से फसल दोबारा बढ़ने लगेगी।

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