मशरूम की खेती कैसे पहाड़ी किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है, इसकी मिसाल हैं उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की रहने वाली प्रियंका। पहाड़ी इलाकों में अक्सर जानवारों के कारण फसल को नुकसान पहुंचने का खतरा बना रहता है। ऐसे में एक मशरूम एक ऐसी वैकल्पिक फसल है, जिसे किसान सीज़न के मुताबिक मशरूम की किस्मों को उगा सकते हैं। पहाड़ी इलाकों में मशरूम की खेती को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। मशरूम को प्रोसेस कर कई उत्पाद बनाए जा रहे हैं।
खासतौर पर महिलाओं के लिए मशरूम की खेती मुनाफ़े का सौदा साबित हो रही है। वो घर पर रहकर ही बड़े आराम से मशरूम की खेती के साथ ही मशरूम के उत्पाद तैयार कर सकती हैं।
मशरूम जितना पौष्टिक होता है, मशरूम की खेती (Mushroom Farming) भी उतनी ही फ़ायदेमंद। बाज़ार में मशरूम की मांग भी बहुत बढ़ गई है। मशरूम की खेती करके किसान आर्थिक रूप से समृद्ध बन सकते हैं, जैसा कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की प्रियंका बनीं। एक हेक्टेयर से भी कम भूमि होने के बावजूद आज वो सालाना लाखों में कमा रही हैं। इसकी वजह है वैज्ञानिक तरीके से की गई मशरूम की खेती, जिसने उन्हें एक सफल महिला उद्यमी बना दिया है।

कैसे शुरू की मशरूम की खेती?
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के कांटे गांव की रहने वाली प्रियंका पांडे किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पास खेती के लिए सिर्फ 0.64 हेक्टेयर भूमि है, जिस पर मुख्य रूप से वो सब्ज़ियां उगाती थीं और यही उनकी आय का मुख्य स्रोत था। उनके पास एक गाय और एक बकरी है और एक मछली का तालाब भी है। खेती के काम में प्रियंका के पति भी उनकी मदद करते हैं। 2018 में उन्होंने सब्ज़ियों के बीज खरीदने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, पिथौरागढ़ से संपर्क किया। जहां अधिकारियों ने उन्हें उपलब्ध स्थानीय सामग्रियों के साथ ऑएस्टर मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation) की करने की सलाह दी। साथ ही सभी ज़रूरी जानकारी भी दी। इसके बाद ही प्रियंका मशरूम की खेती को बतौर व्यवसाय अपनाने के लिए प्रेरित हुईं।
ट्रेनिंग से मिली संपूर्ण जानकारी
2019 में कृषि विज्ञान केंद्र पिथौरागढ़ ने मशरूम की खेती को लेकर एक ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किया था। इस कार्यक्रम में शामिल होने के बाद प्रियंका को मशरूम उत्पादन से जुड़ी पूरी जानकारी मिली। कंपोस्ट तैयार करना, स्पॉन (बीज) बनाना, बेड तैयार करने की पूरी विधि, कटाई, कटाई के बाद देखभाल, प्रोसेसिंग से जुड़ी सारी जानकारी उन्हें ट्रेनिंग के दौरान मिली। मशरूम से बड़ी, पापड़, सूप पाउडर, नगेट्स, अचार बनाना और ज़्यादा दिनों तक रखने के लिए उन्हें सुखाने के तरीकों के बारे में पता चला। दरअसल, मशरूम में नमी बहुत अधिक होती है, इसलिए इसके जल्दी खराब होने का डर रहता है।
मशरूम से बनने वाले मूल्यवर्धक उत्पाद (Mushroom Value-Added Products)
मशरूम जल्दी खराब हो जाता है, इसलिए किसानों को इससे मूल्यवर्धक उत्पाद बनाने की तकनीक पता होनी चाहिए, इससे वो अधिक कमाई कर सकते हैं। मशरूम से बनने वाले कुछ मूल्यवर्धक उत्पाद इस प्रकार हैं- मशरूम सूप पाउडर, मशरूम के बिस्किट, नगेट्स, नूडल्स, पापड़, कैंडिज़, अचार, मशरूम करी, मुरब्बा, मशरूम चिप्स, मशरूम कैचअप आदि।
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सालाना लाखों का मुनाफ़ा
सब्ज़ियों की खेती से प्रियंका को ख़ास आमदनी नहीं हो रही थी, लेकिन मशरूम उत्पादन ने उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया। कई वोकेशनल और स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग में हिस्सा लेने से उन्हें मशरूम उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी मिली और इसी का नतीजा रहा कि उन्हें ऑएस्टर और बटन मशरूम के उत्पादन से सालाना लगभग 12 लाख रुपये का सीधा मुनाफ़ा हुआ। प्रगतिशील महिला किसान प्रियंका को कृषि विज्ञान केंद्र, पिथौरागढ़ की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की सदस्य के रूप में नामांकित भी किया गया।
भूमिहीन किसानों के लिए अच्छा विकल्प है मशरूम उत्पादन
प्रियंका अब अपने गांव के साथ ही आसपास के इलाकों के किसानों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गई हैं। उनके क्षेत्र के किसान भी अब मशरूम उत्पादन की तकनीक जानने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करने लगे हैं। मशरूम उत्पादन से न सिर्फ़ ग्रामीणों को पोषण मिलता है, बल्कि उनकी आमदनी बढ़ने से जीवन स्तर में भी सुधार होता है। यही नहीं, यह उन किसानों के लिए अच्छा विकल्प है, जिनके पास खेती योग्य बहुत कम भूमि हैं, क्योंकि मशरूम उत्पादन के लिए अधिक जगह की ज़रूरत नहीं होती है। प्रियंका की तरह मशरूम की वैज्ञानिक खेती करके आप भी अपनी आमदनी में इज़ाफा कर सकते हैं।
एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत मशरूम की खेती को बढ़ावा
उत्तराखंड में मशरूम की खेती को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों को अब एक जिला एक उत्पाद योजना (ODOP) के तहत देश-दुनिया के बाज़ार में पहचान दिलाने का लक्ष्य है। मशरूम भी इसके अंतर्गत आता है।
उत्तराखंड का नैनीताल ज़िला मशरूम उत्पादन में अव्वल है। 2022 में ज़िले में मशरूम उत्पादन 4310 मीट्रिक टन तक रहा। पहाड़ में होने वाले मशरूम की सप्लाई दिल्ली, लखनऊ, गोरखपुर जैसे बड़े शहरों तक होती है। मशरूम की प्रजातियों में बटन, सफेद, दूधिया, ढींगरी, पुआल जैसी कई किस्में शामिल हैं, लेकिन पर्वतीय इलाकों में बटन और ढींगरी (Button Mushroom And Oyster Mushroom) का उत्पादन ज़्यादा होता है।
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