किसान घटे, खेतिहर मज़दूर बढ़े फिर क्यों है श्रमिकों की किल्लत?

देश की कुल खेती योग्य ज़मीन का 54 फ़ीसदी मालिकाना हक महज 10 फ़ीसदी परिवारों के पास है। ज़ाहिर है, इस ज़मीन पर खेती का दारोमदार या तो मशीनों पर है या फिर ऐसे भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों और बहुत छोटी जोत वाले किसानों पर, जिनके पास बाकी बची 46 फ़ीसदी भूमि का मालिकाना हक़ है। लेकिन ये तबका बहुत बड़ा है। खेती-किसानी से जुड़े 90 फ़ीसदी परिवार इसी तबके के हैं। यही तबका खेतिहर मज़दूर है, शहरों को पलायन करता है और खेती में बढ़ते मशीनीकरण की मार भी झेलता है।

मज़दूर Labour Majdoor

कोरोना आपदा के दौरान बीते एक साल में दो बार शहरों से मज़दूरों के वापस गाँवों को लौटने के हालात बन गये। इसके बावजूद गाँवों से सूचनाएँ आ रही हैं कि रबी के कटाई जैसे तमाम खेती-किसानी के काम के लिए मज़दूर नहीं मिल रहे या उनकी कमी है। लिहाज़ा, ये सवाल लाज़िमी है कि आख़िर क्या वजह है कि किसान और खेतिहर मज़दूर खेती-किसानी से दूर होते चले जा रहे हैं?

ये किसी से छिपा नहीं है कि औद्योगिक विकास, शैक्षिक विस्तार, सर्विस सेक्टर के विकास, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के सामूहिक प्रभाव की वजह से भारत में किसानों की संख्या कम होती जा रही है। हालाँकि भारत अब भी कृषि प्रधान देश ही है, क्योंकि आज भी हमारी बहुत बड़ी आबादी खेती से इससे जुड़े काम-धन्धों से ही अपनी रोज़ी-रोटी कमाती है।

ये भी सच है कि बदलते दौर के साथ हमारे कृषि क्षेत्र की उत्पादक में भी सुधार आया है, लेकिन दूसरी ओर खेतिहर मज़दूरों की संख्या और उनका शहरों तथा अन्य पेशों की ओर पलायन भी बढ़ा है।

इसका खेती में बढ़ते मशीनीकरण से सीधा नाता है। कहीं मशीनीकरण इसलिए बढ़ा क्योंकि मज़दूरों की उपलब्धता घट रही थी तो कहीं लागत को घटाने और कम वक़्त में ज़्यादा काम करने की ज़रूरत ने भी खेती का पारम्परिक ताना-बाना बहुत बदल दिया है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड की 2016-17 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर हैं।

ये देश के कुल परिवारों का 48 फ़ीसदी है। राज्यवार परिवार के औसत सदस्यों की संख्या का अलग-अलग होना स्वाभाविक है। लेकिन राष्ट्रीय औसत 4.9 सदस्य प्रति परिवार है।

ज़मींदारी का असर

ओ पी जिन्दल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर के मुताबिक देश की कुल खेती योग्य ज़मीन का 54 फ़ीसदी मालिकाना हक महज 10 फ़ीसदी परिवारों के पास है। ज़ाहिर है, इस ज़मीन पर खेती का दारोमदार या तो मशीनों पर है या फिर ऐसे भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों और बहुत छोटी जोत वाले किसानों पर, जिनके पास बाकी बची 46 फ़ीसदी भूमि का मालिकाना हक़ है। लेकिन ये तबका बहुत बड़ा है। खेती-किसानी से जुड़े 90 फ़ीसदी परिवार इसी तबके के हैं।

मध्य प्रदेश
Photo (KOI)

कहाँ गये खेतिहर मज़दूर?

कृषि प्रधान देश के विशाल आबादी की खेती पर ऐसी अतिशय निर्भरता की वजह से किसानों के करोड़ों परिवार आर्थिक बदहाली में जीने के लिए मज़बूर हैं। उन्हें गाँवों में नियमित रूप से रोज़गार नहीं मिल पाता तो शहरों की ओर पलायन करना पड़ता है। इस तरह गाँवों के खेतिहर मज़दूर शहरों में पहुँचकर अन्य किस्म के मज़दूर बन जाते हैं। शहरों में उन्हें अपेक्षाकृत बेहतर मज़दूरी मिलती है।

वैसी कमाई गाँवों में है नहीं, क्योंकि इससे खेती की लागत बढ़ जाती है और मुनाफ़ा इतना भी नहीं मिलता कि गुज़ारा हो सके। मज़दूर की यही किल्लत मशीनों की माँग बढ़ाती है। मशीन के आते की खेतिहर मज़दूरों की संख्या और बढ़ जाती है।

ये भी पढ़ें – कैसे मॉनसून की भविष्यवाणी बनी किसानों के लिए सबसे अच्छी ख़बर?

भारत में करीब 86 फ़ीसदी छोटे और सीमान्त किसान हैं। इनके पास 2 हेक्टेयर या 5 एकड़ से भी कम कृषि भूमि है। छोटी जोत के किसानों की परेशानी ये है कि अगर वो खेतिहर मज़दूरों से काम कराते हैं तो फसल की लागत बढ़ जाती है और मुनाफ़ा घट जाता है।

इसीलिए छोटी जोत के किसान परिवार के बुज़ुर्गों और लाचार सदस्यों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। गाँवों की सामाजिक ताना-बाना ऐसा है कि छोटी जोत वाले लोग औरों के खेतों में मज़दूरी करना पसन्द नहीं करते, इसीलिए गाँव ही छोड़ देते हैं।

छोटे किसान या खेतिहर मज़दूर इसलिए भी घट रहे हैं क्योंकि खेती-बाड़ी में फसल की बुआई और कटाई के मौसम में कुछ दिनों के काम ज़्यादा निकलता है। जबकि घर-परिवार चलाने के लिए मज़दूरों को भी तो नियमित रोज़गार की ज़रूरत होती है। लिहाज़ा, यदि खेतिहर मज़दूर वापस गाँवों की और खेती की ओर लौटना भी चाहें तो भी ये उनके लिए व्यावहारिक नहीं हो पाता। कुलमिलाकर, सारा चक्र ऐसा है, जिससे दिनों-दिन खेती-किसानी की चुनौतियाँ बदलती जाती हैं।

महिंद्रा ट्रैक्टर रिव्यू mahindra tractor review

कृषि यंत्र बने ज़रूरी  

इन दिनों रबी की फसलों की कटाई का मौसम है। गाँवों से मज़दूरों की किल्लत की जानकारियाँ मिल रही हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को गन्ना की छिलाई के लिए मज़दूर नहीं मिल रहे तो बिहार में गेहूँ और छत्तीसगढ़ में रबी वाले धान कटाई, ढुलाई और थ्रेसिंग में भी मज़दूरों की किल्लक की वजह से काम धीमा चल रहा है। ऐसे में सवाल है कि किसान करे तो करे क्या?

ये भी पढ़ें – कोरोना की मौजूदा लहर का किसान आन्दोलन पर क्या असर पड़ेगा?

इसका जवाब है कृषि यंत्रों का इस्तेमाल और अपनी खेती ख़ुद करना। हालाँकि, कृषि उपकरणों के बढ़ते प्रचलन से खेतिहर मज़दूरों के लिए बचा-खुचा रोज़गार भी कम होता चला जाएगा, लेकिन मशीनों के इस्तेमाल के बग़ैर लागत को काबू में रखना मुश्किल है। यही वजह है कि कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकार तरह-तरह की सब्सिडी देती है और इन्हें बेचने वाली कम्पनियाँ भी किसानों को किस्तों में भुगतान की सुविधा देती हैं।

Kisan of India Instagram
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
मंडी भाव की जानकारी
ये भी पढ़ें:

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top