किसान मानसिंह गुर्जर बने देशी बीज संरक्षण और जैविक खेती के क्षेत्र में एक प्रेरणास्रोत

मानसिंह गुर्जर ने जैविक खेती और बीज संरक्षण के माध्यम से देशी बीजों को संरक्षित किया, जिससे किसानों को नई प्रेरणा मिली और कृषि क्षेत्र में नई दिशा उत्पन्न हुई।

जैविक खेती Organic Farming

मानसिंह गुर्जर, मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के गरधा गांव के निवासी, न केवल एक सफल किसान हैं, बल्कि देशी बीज संरक्षण और जैविक खेती के क्षेत्र में एक अद्वितीय पहचान बना चुके हैं। 10 मई 1976 को जन्मे मानसिंह ने अपनी 17 एकड़ भूमि पर जैविक और प्राकृतिक खेती के साथ-साथ 20 वर्षों से 600 से अधिक विलुप्त हो रही देशी बीजों की प्रजातियों को संरक्षित और संवर्धित करने का कार्य किया है। उनके इस कार्य ने न केवल उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि लाखों किसानों को देशी बीजों के महत्व को समझने और अपनाने के लिए प्रेरित किया।

देशी बीज संरक्षण: एक मिशन (Indigenous Seed Conservation)

मानसिंह गुर्जर ने देशी बीजों के संरक्षण को अपना जीवन का मिशन बना लिया है। उनका कहना है, “यदि देशी बीज बचेगा तो किसान बचेगा।” उन्होंने अब तक धान की 350 प्रजातियां, गेहूं की 160 प्रजातियां, और मिर्च की 45 प्रजातियों सहित लगभग 650 देशी बीजों की किस्मों को संरक्षित किया है। इनमें काला नमक चावल जैसे दुर्लभ बीज शामिल हैं, जो भगवान गौतम बुद्ध के समय से प्रसिद्ध हैं।

मानसिंह ने इन बीजों को गांव-गांव जाकर एकत्रित किया और अपने फार्म पर इन्हें संरक्षित किया। उनका तरीका यह है कि वे विलुप्त होती बीजों की प्रजातियों को दो एकड़ की भूमि में लगाकर उनकी संख्या बढ़ाते हैं और उन्हें किसानों के बीच वितरित करते हैं। यह कार्य पूरी तरह से उनके व्यक्तिगत खर्च पर आधारित है, जिसमें वे किसी भी सरकारी सहायता का उपयोग नहीं करते।

प्राकृतिक और जैविक खेती: पर्यावरण के साथ सामंजस्य (Natural and organic farming: in harmony with the environment)

मानसिंह प्राकृतिक और जैविक खेती के समर्थक हैं। वे अपने खेतों में जीवामृत, घनजीवामृत, और बीजामृत का उपयोग करते हैं, जो पूरी तरह से जैविक विधियों से तैयार किए जाते हैं। उनका मानना है कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि इससे किसान रसायनों पर निर्भरता से मुक्त होकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।

उन्होंने यह भी सिद्ध किया है कि जैविक खेती में उत्पादित फसलें अधिक पौष्टिक, स्वादिष्ट, और स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। उदाहरण के लिए, उनके खेतों में उगाए गए पपीते हाइब्रिड पपीते से अलग होते हैं। ये देशी पपीते न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि इनमें कोई कृत्रिम रंग या रसायन का प्रयोग नहीं होता।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सावधानी (Scientific approach and caution)

मानसिंह अपने कार्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि उनके खेतों में लगाए जाने वाले बीजों की प्रजातियां क्रॉस-पॉलीनेशन से प्रभावित न हों। इसके लिए वे अलग-अलग प्रजातियों को दूरी बनाकर लगाते हैं।

उनका यह प्रयास दर्शाता है कि परंपरागत कृषि ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संतुलन कैसे किसानों को बेहतर परिणाम दे सकता है। उनके द्वारा अपनाई गई विधियां न केवल कृषि उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्थिरता को भी बनाए रखती हैं।

देशी बीजों का महत्व और वितरण (Importance and distribution of native seeds)

मानसिंह ने अब तक लाखों किसानों को देशी बीज वितरित किए हैं। उनका मानना है कि देशी बीजों का उपयोग करने से फसलें अधिक टिकाऊ और रोग-प्रतिरोधक होती हैं। देशी बीजों से उगाई गई फसलें न केवल कम लागत में तैयार होती हैं, बल्कि इन्हें उगाने में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की आवश्यकता भी नहीं होती।

उन्होंने बताया कि उनकी संरक्षित बीजों की प्रजातियां न केवल फसलों की गुणवत्ता को बढ़ाती हैं, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

सम्मान और पुरस्कार (Honours and Awards)

मानसिंह गुर्जर को उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं। इनमें प्रमुख हैं:

1.गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी द्वारा 51,000 रुपये देकर सम्मानित (2022)

2.मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शाल और श्रीफल देकर सम्मानित (2016)

3.केंद्रीय कृषि मंत्री गौरी शंकर बिसेन द्वारा शाल और श्रीफल देकर सम्मानित (2017)

4.जिला कलेक्टर और कृषि उपसंचालक द्वारा प्रशंसा पत्र (2018)

5.कृषि विज्ञान केंद्र गोविंद नगर बनखेड़ी द्वारा प्रशंसा पत्र (2023)

इन पुरस्कारों ने न केवल उनकी मेहनत को सराहा, बल्कि उनके कार्यों को एक प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया।

चुनौतियां और आत्मनिर्भरता (Challenges and self-reliance)

मानसिंह गुर्जर ने बिना किसी सरकारी सहायता के अपने प्रयासों को जारी रखा है। उन्होंने बताया कि यह कार्य आसान नहीं है, लेकिन उनका जुनून और धैर्य उन्हें इस दिशा में निरंतर प्रेरित करता है। उनका मानना है कि किसानों को आत्मनिर्भर बनने के लिए जैविक और प्राकृतिक कृषि अपनानी चाहिए।

उन्होंने यह भी बताया कि देशी बीजों की फसलें अधिक टिकाऊ होती हैं और उन्हें कम पानी और उर्वरक की आवश्यकता होती है। इससे न केवल किसानों की लागत घटती है, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।

भविष्य की योजनाएं (future plans)

मानसिंह गुर्जर की योजना है कि वे अपने देशी बीज संरक्षण के कार्य को और व्यापक स्तर पर ले जाएं। वे चाहते हैं कि देशभर के किसान इन बीजों का उपयोग करें और जैविक खेती को बढ़ावा दें। इसके साथ ही, वे किसानों को जैविक खेती के फायदों के बारे में जागरूक करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

निष्कर्ष (conclusion)

मानसिंह गुर्जर का कार्य न केवल उनके गांव या जिले तक सीमित है, बल्कि यह पूरे देश के किसानों के लिए एक प्रेरणा है। उनके प्रयास यह सिद्ध करते हैं कि यदि किसान अपनी परंपराओं और आधुनिक विज्ञान का सही संतुलन बनाए रखें, तो वे न केवल अपनी फसल की गुणवत्ता को सुधार सकते हैं, बल्कि अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं।

उनका संदेश स्पष्ट है: “देशी बीज और जैविक खेती अपनाएं, ताकि पर्यावरण सुरक्षित रहे और आने वाली पीढ़ियों को हमारी धरोहर का लाभ मिल सके।” उनका काम न केवल प्रशंसा के योग्य है, बल्कि अन्य किसानों के लिए एक मार्गदर्शक भी है। 

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