क्यों ज़रूरी है आधार और प्रमाणिक बीजों का संरक्षण? क्या हैं रजिस्टर्ड बीज उत्पादक बनने के फ़ायदे

प्रमाणिक बीज उत्पादक बनने के लिए केन्द्र और राज्य के सरकारी बीज निगमों के अलावा भारतीय, कृषि अनुसन्धान परिषद से जुड़े सैकड़ों कृषि विश्वविधालयों, नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र, ज़िला कृषि अधिकारी, उप कृषि निदेशक और बीज प्रमाणीकरण संस्थान से भी सम्पर्क किया जा सकता है। इन्हीं संस्थाओं की ओर से किसानों को ज़रूरी प्रशिक्षण, बीज, तकनीक और उपकरण वग़ैरह मुहैया करवाये जाते हैं।

बीजों का संरक्षण save seeds seed bank

प्राणी जगत में नस्ल या प्रजाति को अद्भुत और विलक्षण माना गया है। प्रकृति ने हरेक जन्तु और वनस्पति को जो अनूठे गुण दिये हैं उन्हीं से तमाम नस्लों की पहचान होती है। नस्लीय गुण वंशानुगत होते हैं और बीजों या निषेचित अंडों के रूप में प्रजनन-चक्र के ज़रिये माँ-बाप से सन्तानों में पहुँचते हैं। खेती-किसानी की दुनिया में उन्नत बीजों का सबसे ज़्यादा महत्व है, क्योंकि इसका नाता पैदावार, पोषक तत्वों, रोग प्रतिरोधकता क्षमता और पर्यावरण के अनुकूल जैसे असंख्य पहलुओं से होता है। इसीलिए किसानों के अलावा वैज्ञानिक समुदाय में भी बीजों की शुद्धता, प्रमाणिकता और संरक्षण की बेहद अहमियत है।

क्या हैं आधार और प्रमाणित बीज?

बीजों की शुद्धता और उन्हें उन्नत बनाने के लिए जहाँ एक ओर परम्परगत नस्लों या आधार बीजों (Foundation Seeds) के संरक्षण और इसकी शुद्धता पर ज़ोर दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर आधार बीजों में बायो-टैक्नोलॉजी के ज़रिये जैविक बदलाव लाकर संकर और उन्नत नस्लें विकसित की जाती हैं और फिर इनका व्यावसायिक उत्पादन करके उन्हें प्रमाणित बीज (Certified Seed) का दर्ज़ा देकर किसानों को बेचा या उपलब्ध करवाया जाता है। आनुवंशिक शुद्धता को क़ायम रखने के लिए आधार बीजों की खेती को कृषि अनुसन्धान केन्द्रों की ओर से सख़्त निगरानी के साथ प्रायोजित किया जाता है।

आधार बीजों की खेती के लिए वैज्ञानिक आमतौर पर उन आदिवासी इलाकों का चुनाव करते हैं जहाँ स्थानीय या देसी बीजों (Land races) और खेती-किसानी की परम्परागत प्रक्रिया का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल होता हो। इसीलिए आमतौर पर किसानों को आधार बीजों की खेती करने का मौक़ा नहीं मिलता। राष्ट्रीय पादप आनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो के वैज्ञानिक देश के कम से कम तीन जनजातीय ज़िलों उदयपुर, आदिलाबाद और चम्बा में सैकड़ों वनस्पतियों या फसलों के आधार पर बीजों की खेती करवाते हैं और वहाँ के किसानों को सामुदायिक बीज बैंक संचालित करने के लिए प्रेरित करते हैं।

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तस्वीर साभार: National Agricultural Innovation Project (NAIP)

राष्ट्रीय पादप आनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो (NBPGR)

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) के मातहत काम करने वाला NBPGR (National Bureau of Plant Genetic Resources) देश में वनस्पतियों के आधार बीजों के संरक्षण का दायित्व निभाने वाली शीर्ष संस्था है। यही नोडल संगठन राष्ट्रीय जीन बैंक (NGB) में आधार बीजों के जर्मप्लाज़्म का दीर्घकालिक संरक्षण करता है। किसी भी प्रजाति का जर्मप्लाज़्म ही उसका ऐसा बुनियादी तत्व है जिससे उसके नये पौधे उगाये जा सकते हैं। प्राणियों की नस्लों को विलुप्त होने से बचाने और भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखने के लिए उनके जर्मप्लाज़्म का संरक्षण शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस नीचे के तापमान पर किया जाता है। NBPGR का मुख्यालय, पूसा संस्थान, दिल्ली में है और अपने 10 क्षेत्रीय केन्द्रों समेत नेशनल जीन बैंक में करीब 10 लाख जर्मप्लाज़्म को संरक्षित रखने की क्षमता है।

प्रमाणित बीज (Certified Seed)

आधार बीज की शुद्ध और संकर नस्लों को निर्धारित प्रक्रिया से प्रमाणित और पंजीकृत किया जाता है। इससे बीजों की सन्तोषजनक आनुवांशिक पहचान को सुरक्षित रखने को मान्यता मिलती है। देश में बीज प्रमाणीकरण की शुरुआत साल 1959 में हुई। सबसे पहले ज्वार, मक्का तथा बाजरे के संकर बीजों की किस्में प्रमाणित की गयीं। प्रमाणित बीजों के व्यावसायिक उत्पादन के लिए वर्ष 1963 में राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड (NSC) की स्थापना हुई। फिर बीज प्रमाणीकरण अधिनियम 1966 के तहत राज्यों में भी बीज प्रमाणीकरण संस्थाएँ स्थापित होने लगीं। अब तक 22 राज्यों में बीज प्रमाणीकरण संस्थाएँ स्थापित हो चुकी हैं। 1972 में देश के सभी बीज प्रमाणन संस्थाओं को परस्पर समन्वय के लिए केन्द्रीय बीज प्रमाणीकरण परिषद के दायरे में लाया गया।

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किसानों को बीज प्रसंस्करण का प्रदर्शन {तस्वीर साभार: National Agricultural Innovation Project (NAIP)}

क्यों ज़रूरी है आधार और प्रमाणिक बीजों का संरक्षण? क्या हैं रजिस्टर्ड बीज उत्पादक बनने के फ़ायदे

राष्ट्रीय बीज निगम की भूमिका

राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), कृषि मंत्रालय की एक मिनी रत्न कम्पनी है। इसके 11 क्षेत्रीय और 65 प्रक्षेत्र (एरिया) कार्यालय हैं। इसकी स्थापना आधारीय तथा प्रमाणित बीजों के उत्पादन के लिए हुई है। फ़िलहाल, अपने फार्मों और पंजीकृत बीज उत्पादकों के माध्यम से NSC के क़रीब 80 फसलों की 621 किस्मों के प्रमाणित बीजों का उत्पादन कर रही है। इसमें मोटे अनाज, दलहन, तिलहन, चारा, रेशा, हरी खाद और सब्जियों के बीजों का उत्पादन शामिल है। NSC की ओर से जहाँ केले जैसे ऊतक खेती वाली फ़सलों के पौधे भी तैयार किये जाते हैं, वहीं मछली बीज उत्पादन भी किया जाता है। निगम के रायचूर फार्म में फ़सल अवशेषों का उपयोग करके गुणवत्तापूर्ण चारे का उत्पादन भी किया जाता है।

राष्ट्रीय बीज निगम के देश में 22 हज़ार हेक्टेयर में फैले हुए 8 फार्म और क़रीब 12.5 हज़ार पंजीकृत बीज उत्पादक हैं, जो विभिन्न कृषि जलवायु के अनुकूल उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की पैदावार और उसकी मार्केटिंग करते हैं। इसकी दिल्ली, सिकन्दराबाद, भोपाल और सूरतगढ़ में बीजों की गुणवत्ता का परीक्षण करने वाली प्रयोगशालाएँ भी हैं। NSC के बीजों की मार्केटिंग, केन्द्र और राज्य सरकारों के डीलरों, वितरकों, बीज बिक्री केन्द्रों तथा किसान मेलों के माध्यम से की जाती है। कृषि मंत्रालय के तहत संचालित सीडनेट इंडिया पोर्टल के अनुसार, अभी देश में क़रीब डेढ़ लाख रजिस्टर्ड बीज डीलर हैं। और, देश में 190 फ़सलों की कुल 9,103 किस्में प्रमाणित या संसूचित (notified) हैं।

भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे तिहलनों और तेल पाम पर राष्ट्रीय मिशन (NMOOP), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) और बागवानी के विकास के लिए मिशन (MIDH) के क्रियान्वयन में भी राष्ट्रीय बीज निगम मुख्य भूमिका निभाता है। ये राज्यों के बीज निगम के कर्मचारियों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता देने के अलावा सरकारी और निजी क्षेत्र के बीज गोदामों के निर्माण और बीजों के निर्यात के मामले में भी शीर्ष नोडल एजेंसी का काम करता है।

बीज उत्पादन में है ज़्यादा कमाई

किसी भी फसल की साधारण खेती के मुक़ाबले बीज उत्पादन के लिए होने वाली खेती से होने वाली कमाई काफ़ी ज़्यादा होती है। अलबत्ता, इतना ज़रूर है कि बीज उत्पादन वाली खेती की लागत भी सामान्य खेती की तुलना में ज़्यादा होती है। इसका मतलब ये हुआ कि बीज उत्पादकों के लिए खेती की लागत भले ही ज़्यादा हो लेकिन मुनाफ़ा काफ़ी ज़्यादा होता है। बीज उत्पादकों को खेती और प्रमाणीकरण की अनेक प्रक्रिया को बिल्कुल वैसे ही निभाना पड़ता है जैसा कि कृषि अधिकारी या वैज्ञानिक मशविरा देते हैं।

इसीलिए प्रगतिशील किसानों के लिए कमाई बढ़ाने का शानदार ज़रिया है उन्नत और प्रमाणित बीजों के उत्पादन की खेती करना। लेकिन ये तभी मुमकिन है जबकि सरकारी या निजी क्षेत्र की ऐसी कम्पनियों से करार करके किसान बीज उत्पादक बनें जो बीजों का कारोबार करती हैं। इस तरह पंजीकृत बीज उत्पादकों को अपनी उपज बेचने के लिए मंडियों का मोहताज नहीं रहना पड़ता और उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कहीं ज़्यादा दाम मिलता है।

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तस्वीर साभार: ICRISAT

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