मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के जितेन्द्र कुमार गौतम प्राकृतिक खेती से कमा रहे हैं बेहतर आमदनी

प्राकृतिक खेती से सिवनी जिले के किसान जितेन्द्र ने मिट्टी की सेहत सुधारी, लागत घटाई और बेहतर आमदनी का नया रास्ता बनाया।

प्राकृतिक खेती Natural Farming

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के गांव डौंडीवारा के किसान जितेन्द्र कुमार गौतम पिछले 10 सालों से खेती कर रहे हैं। खेती की शुरुआत उन्होंने पारंपरिक तरीके से की थी, जैसे ज़्यादातर किसान करते हैं। शुरुआत में वे भी बाकी किसानों की तरह ज़्यादा पैदावार के लिए रासायनिक खाद और दवाइयों का इस्तेमाल करते थे। शुरुआत में केमिकल खाद और दवाइयों से उन्हें अच्छा उत्पादन मिला। फ़सलें भी ठीक हुईं और आमदनी भी सही थी। इससे उन्हें लगा कि यही तरीका सबसे बेहतर है। लेकिन कुछ सालों बाद स्थिति बदलने लगी। धीरे-धीरे उनकी ज़मीन कठोर होती गई, मिट्टी की उर्वरता घटने लगी और फ़सल का उत्पादन भी कम होने लगा।

फ़सल कम होने के साथ ही मिट्टी की सेहत पर भी असर साफ दिखने लगा। खेत की मिट्टी सूखी और बेजान लगने लगी। इतना ही नहीं, रासायनिक खेती के असर से उनके परिवार की सेहत पर भी नकारात्मक असर पड़ने लगा। आये दिन बीमारियां होने लगीं और दवाइयों पर खर्च बढ़ने लगा।

तब जितेन्द्र जी को समझ आया कि रासायनिक खेती सिर्फ़ थोड़े समय के लिए फ़ायदेमंद होती है, लेकिन लंबे समय में यह ज़मीन, फ़सल और इंसानी सेहत तीनों को नुकसान पहुंचाती है। उन्होंने महसूस किया कि अब बदलाव की जरूरत है। यहीं से उन्होंने प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया। वे जान गए कि ज़मीन की सेहत सुधरेगी तो ही फ़सल अच्छी होगी और परिवार भी स्वस्थ रहेगा।

प्राकृतिक खेती की शुरुआत (Starting of natural farming)

जितेन्द्र ने तय किया कि अब वे पूरी तरह से प्राकृतिक खेती अपनाएंगे। इसके लिए उन्होंने पतंजलि किसान समृद्धि कार्यक्रम से प्रशिक्षण लिया। वहां उन्हें ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती के आसान तरीके सिखाए गए। साथ ही प्रशिक्षण के बाद भी निरंतर मार्गदर्शन मिलता रहा। उन्होंने 3 एकड़ ज़मीन पर प्राकृतिक खेती शुरू की और धीरे-धीरे उसका असर साफ दिखाई देने लगा। उनकी मिट्टी मुलायम और उपजाऊ हो गई। फ़सल की क्वालिटी भी बढ़ी और लागत घट गई।

उगाई जाने वाली फ़सलें (Crops grown)

आज जितेन्द्र अपनी ज़मीन पर कई फ़सलें उगाते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • धान (Paddy)
  • गेहूं (Wheat)
  • चना (Gram)
  • अलसी (Linseed)
  • सरसों (Mustard)
  • मटर (Peas)

वे मल्टी क्रॉपिंग और इंटर क्रॉपिंग तकनीक अपनाते हैं। इसके साथ ही खाद के लिए गाय का गोबर, मूत्र और बकरी का गोबर इस्तेमाल करते हैं।

अपनाए गए प्रमुख उपाय (The main measures taken)

जितेन्द्र ने प्राकृतिक खेती को सफल बनाने के लिए कई देसी तरीकों का इस्तेमाल किया:

  • जीवामृत – मिट्टी को पोषण देने के लिए
  • घनजीवामृत – पौधों की बढ़वार के लिए
  • पंचगव्य – जैविक खाद और पौष्टिकता के लिए
  • दशपर्णी अर्क – कीट व रोग नियंत्रण के लिए
  • हरी खाद (Green Manure) – ज़मीन की उर्वरता बढ़ाने के लिए

इन उपायों से उनकी फ़सल को प्राकृतिक पोषण मिलता है और कीटों से भी सुरक्षा रहती है।

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के जितेन्द्र कुमार गौतम प्राकृतिक खेती से कमा रहे हैं बेहतर आमदनी

पशुपालन का सहारा (animal husbandry support)

जितेन्द्र कुमार गौतम खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं। उनके पास इस समय 5 गाय और 20 बकरियां हैं। ये जानवर उनके लिए केवल दूध का ही नहीं, बल्कि खेती के लिए ज़रूरी संसाधनों का भी अहम स्रोत हैं। गाय और बकरियों से उन्हें गोबर और गोमूत्र आसानी से मिल जाता है, जिससे वे जैविक खाद और कीटनाशक तैयार करते हैं।

यानी खेती के लिए जो ज़रूरी चीज़ें हैं—खाद, कीटनाशक, और मिट्टी सुधारने वाले तत्व—वे सब उन्हें अपने ही घर और खेत से मिल जाते हैं। इससे उन्हें बाहर से कुछ खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती और खर्च भी बहुत कम हो जाता है। यही प्राकृतिक खेती की सबसे बड़ी ताकत है कि इसमें बाहरी निर्भरता नहीं के बराबर होती है। किसान खुद के संसाधनों से ही खेती कर सकता है और अच्छी आमदनी भी कमा सकता है।

किसानों के लिए प्रेरणा (Inspiration for farmers)

आज जितेन्द्र सिर्फ़ खुद ही प्राकृतिक खेती नहीं कर रहे, बल्कि अपने अनुभव और ज्ञान से दूसरे किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं। वे गांव-गांव जाकर किसानों को बताते हैं कि रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान से कैसे बचा जा सकता है। लगभग 100 किसान अब उनके साथ जुड़ चुके हैं, और उनकी देखरेख में प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं।

जितेन्द्र उन्हें बताते हैं कि यह तरीका न केवल सस्ता और सुरक्षित है, बल्कि इससे मिट्टी की सेहत सुधरती है, फ़सल की गुणवत्ता बढ़ती है और परिवार भी स्वस्थ रहता है। आज वे अपने इलाके में एक सफल और प्रेरणादायक किसान के रूप में जाने जाते हैं, जो न सिर्फ़ खुद बदलाव लाए, बल्कि दूसरों की सोच भी बदल दी।

आर्थिक लाभ (Economic Benefits)

प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद जितेन्द्र की आमदनी लगातार बढ़ रही है। आज वे औसतन ₹60,000 प्रति एकड़ प्रति वर्ष की कमाई कर रहे हैं। रासायनिक खेती की तुलना में उनकी लागत काफी घट गई है और फ़सल की क्वालिटी भी बेहतर हुई है।

सरकारी सहयोग और प्रमाणन (Government support and certification)

जितेन्द्र को पीएमकेवीवाई (PKVY) और PGS इंडिया से प्रमाणन मिला है। इससे उनकी उपज को बाज़ार में अच्छी पहचान और क़ीमत मिलती है। साथ ही वे पतंजलि के अन्नदाता ग्रुप के सदस्य भी हैं।

प्रमुख उपलब्धियां (Major Achievements)

  • प्राकृतिक खेती के जरिए लागत घटाई और उत्पादन सुधारा।
  • लगभग 100 किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया।
  • पंचगव्य, जीवामृत और दशपर्णी जैसे देसी तरीकों को सफलतापूर्वक अपनाया।
  • मिट्टी की उर्वरता और सेहत में सुधार किया।
  • परिवार की सेहत भी बेहतर हुई क्योंकि अब केमिकल वाली फ़सल नहीं खाते।

निष्कर्ष (Conclusion)

जितेन्द्र कुमार गौतम की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्राकृतिक खेती न केवल मिट्टी और पर्यावरण के लिए अच्छी है, बल्कि किसानों की जेब और सेहत दोनों को सुरक्षित करती है। उनकी मेहनत और अनुभव ने यह साबित कर दिया है कि सही दिशा में कदम उठाया जाए तो खेती न केवल लाभदायक बन सकती है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए ज़मीन भी बचाई जा सकती है।

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