भैंस पालन का डेयरी उद्योग में काफी महत्व है। भारत में 55 प्रतिशत दूध यानी 20 मिलियन टन दूध भैंस पालन से मिलता है। इसका श्रेय हर उन पशुपालकों को जाता है, जो भैंस पालन से जुड़े हैं। इन्हीं में से एक महाराष्ट्र ठाणे ज़िले के वसई के रहने वाले अजिंक्य शिरीषकुमार नाइक हैं। क्रिकेट के मशहूर बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे के नामराशि अजिंक्य शिरीषकुमार पिछले सात सालों से डेयरी सेक्टर से जुड़े हैं। अजिंक्य ने जाफ़राबादी और मेहसाना नस्ल की करीबन 80 भैंसें पाली हुई हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में उन्होंने इन नस्लों की खासियत और डेयरी सेक्टर से जुड़े कई पहलुओं पर बात की।
एग्रीकल्चर में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री होल्डर अजिंक्य ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से सात लाख का लोन लेकर डेयरी यूनिट की शुरुआत की। मेहसाना नस्ल की छह देसी भैंसें खरीदीं और फिर अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में लग गए। खुद के बलबूते पर अजिंक्य ने अपने डेयरी सेक्टर के व्यवसाय को खड़ा किया है। अजिंक्य ने पूणे की कृष्णा वैली एडवांस्ड एग्रीकल्चरल फाउंडेशन से ट्रेनिंग भी ली हुई है।
अजिंक्य शिरीषकुमार बताते हैं कि जाफ़राबादी नस्ल की भैंस की दूध देने की क्षमता काफ़ी अच्छी होती है। वहीं मेहसाना नस्ल की भैंस हर साल बच्चा देती है, जो डेयरी का काम करने वाले लोगों के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद है।
मेहसाना भैंस की ख़ासियत
ये भैंस गुजरात के मेहसाणा ज़िले से ताल्लुक रखती है। इसका रंग काला-भूरा होता है। इसके सींग कम घूमे हुए होते हैं। ये नस्ल भी अच्छे दूध उत्पादन के लिए जानी जाती है। भैंस की ये नस्ल बेहद शांत स्वभाव की होती है। मेहसाना भैंस के दूध में वसा यानी फैट की लगभग 7 फ़ीसदी मात्रा पाई जाती है।
जाफ़राबादी भैंस की ख़ासियत
गुजरात के गिर जंगलों में मिलने वाली ये भैंस सिर और गर्दन की वजह से पहचानी चाहती है। इनका सिर चौड़ा होता है। सींग बड़े और पीछे की तरफ़ मुड़े होते हैं। इनकी शारिरिक बनावट मज़बूत होती है। इनके दूध में भी फैट की लगभग 8 प्रतिशत मात्रा पाई जाती है।
जानिए कितनी होती है दूध देने की क्षमता
जाफ़राबादी नस्ल की एक भैंस रोज़ाना औसतन 12 से 14 लीटर दूध देती है। वहीं मेहसाना की एक भैंस 8 से 10 लीटर का प्रतिदिन दूध दे देती है। जाफ़राबादी नस्ल की कुछ उन्नत भैंसें तो रोज़ाना 18 लीटर दूध देने की क्षमता भी रखती हैं। इस तरह से अजिंक्य के डेयरी फ़ार्म में रोज़ाना करीबन 350 लीटर दूध का उत्पादन होता है।
खड़ी की खुद की तीन डेयरी यूनिट्स, शेयर किये मार्केटिंग टिप्स
अजिंक्य कहते हैं कि अगर आप खुद के प्रॉडक्ट का खुद मार्केट बनाएंगे तो वो ज़्यादा फ़ायदेमंद हैं। यानी कि किसी अन्य डेयरी में बेचने के बजाय खुद का ब्रांड खड़ा करें। इससे आपके प्रॉडक्ट को अच्छा बाज़ार मिलता है। साथ ही अपने क्षेत्र के कई पशुपालकों से भी वो दूध खरीदते हैं। अजिंक्य कहते हैं कि जितना आप प्रोसेस करोगे उतना मुनाफ़ा बढ़ता है। अजिंक्य बताते हैं जब वो दूसरी डेयरियों में दूध बेचते थे तो उतना पैसा नहीं मिलता था, लेकिन अब खुद की डेयरी यूनिट्स खोलने में उन्हें ज़्यादा पैसा मिलता है। वसई क्षेत्र में आज उनकी तीन डेयरियां हैं। 72 रुपये प्रति लीटर की दर से उनकी डेयरी का दूध बिकता है। स्थानीय बाज़ार में उनके डेयरी के दूध की काफ़ी मांग है। साथ ही वो दूध को प्रोसेस कर पनीर, छाछ, लस्सी, खोया जैसे कई बाई-प्रॉडक्ट्स भी अपनी ही डेयरी में तैयार करते हैं। अभी उनके साथ करीबन 22 लोग काम करते हैं।
देसी नस्लों का दूध स्वास्थ्य के लिहाज़ से भी अच्छा
इन देसी नस्लों का दूध पौष्टिकता से भरपूर होता है। जाफ़राबादी के दूध में भी फैट की लगभग 8 प्रतिशत मात्रा पाई जाती है, जो आपके शरीर को मज़बूती देती है। दूध में प्रोटीन, वसा, कैलोरी, कैल्शियम, विटामिन डी, विटामिन बी-2, विटामिन बी-12, पोटेशियम, फास्फोरस, सेलेनियम पाए जाते हैं।
मवेशियों के लिए चारा खुद करते हैं तैयार
अच्छी नस्ल होने के साथ-साथ भैंसों की चराई भी अच्छी होनी चाहिए। अजिंक्य कहते हैं कि भैंसों के आहार में खली, मकई, चोकर और दाना शामिल होना चाहिए। अजिंक्य ने बताया कि वो मवेशियों को चारे के रूप में दी जाने वाली नेपियर घास की कई उन्नत किस्में खुद उगाते हैं। ये किस्में पौष्टिकता से भरपूर होती हैं। इनमें हाई प्रोटीन होता है। अजिंक्य कहते हैं कि अगर खुद ही आप आहार तैयार करते हो तो इससे चारे की लागत तो बचती ही है, साथ ही क्वालिटी का आहार भी उपलब्ध होता है।
पशुपालकों को हरे चारे की सबसे ज़्यादा परेशानी होती है। हरे चारे की कमी को पूरा करने के लिए पशुपालकों के लिए नेपियर घास बेहतर विकल्प है। एक बार इस घास को लगाने पर चार-पांच साल तक हरा चारा मिलता रहता है। इसमें ज्यादा सिंचाई की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है। एक बार घास की कटाई करने के बाद उसकी शाखाएं फिर से फैलने लगती हैं और 40 दिन में दोबारा पशुओं को खिलाने लायक हो जाती हैं। अजिंक्य अपने क्षेत्र के किसानों को ये घास भी उपलब्ध कराते हैं।
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सही समय पर रोग की पहचान होना ज़रूरी
अजिंक्य कहते हैं अगर आपका पशु स्वस्थ्य नहीं होगा तो उससे दूध की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि सही समय पर उनका टीकाकरण किया जाए। भैंसों को पेट के कीड़े, खुरपका-मुंहपका, गलघोंटू जैसी बीमारियों से बचाव के लिए टीका लगवाएं। साथ ही भैंसों में होने वाले थनैला रोग के लक्षण को समय रहते पहचानें और उनका तुरंत इलाज कराएं। इसलिए ज़रूरी है कि समय-समय पर चिकित्सक के निरीक्षण में उनको रखा जाए। अजिंक्य के फ़ार्म में भैंस के रखरखाव का पूरा ध्यान दिया जाता है। समय पर टीकाकरण के साथ ही डॉक्टर की सलाह लेकर भैंसों का ख्याल रखा जाता है।
भैंसों को दें खुला वातावरण
भैंस को जहां पर आपने रखा है, वो जगह साफ़-सुथरी और खुली होनी चाहिए। पीने के लिए साफ पानी हर समय होना चाहिए। अजिंक्य ने बताया कि उन्होंने सर्दी, गर्मी और बरसात, हर मौसम से भैंसों को बचाने के लिए अपने फ़ार्म में बंदोबस्त किया हुआ है। शेड लगाया हुआ है। गर्मी के मौसम से बचाने के लिए फ़ार्म में फॉगर सिस्टम भी लगाया हुआ है। फॉगर से शेड पर पानी की फुहार गिरती रहती है और शेड के अंदर का तापमान कंट्रोल में रहता है।
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दूध निकालते समय साफ़-सफ़ाई का कैसे रखें ध्यान?
दूध निकालते समय दूध की स्वच्छता का भी ध्यान रखना ज़रूरी होता है। अजिंक्य कहते हैं कि उनके फ़ार्म में इसका खास तौर पर ख्याल रखा जाता है और यही उनकी यूएसपी यानी सबसे बड़ी ख़ासियत भी है। दूध निकालने से पहले व्यक्ति खुद अपने हाथ अच्छे से धोए और उसके बाद पशु के थन को भी हल्के हाथों से अच्छे से साफ़ करे। तब जाकर ही दूध निकाले।
कितने में मिलती हैं जाफ़राबादी और मेहसाना नस्ल की देसी भैंसें?
अजिंक्य ने बताया कि जाफ़राबादी भैंस काफ़ी महंगी पड़ती है। इसकी कीमत ही एक लाख रुपये से शुरू होती है, जो 1 लाख 40 हज़ार तक जाती है। सर्दियों में दाम थोड़े घट जाते हैं और 90 हज़ार से लाख के बीच कीमत आ जाती है। मेहसाना भैंस की शुरुआती कीमत 65 हज़ार रुपये के आसपास रहती है जो लाख तक भी जाती है। गर्मियों में दूध के साथ-साथ दही, छाछ, लस्सी जैसे कई बाई-प्रोडक्टस की बाज़ार में ज़्यादा मांग रहती है। इस वजह से गर्मियों में ये ज़्यादा कीमत पर बिकती है।
भैंस पालने की सोच रहे हैं तो जान लें अजिंक्य की सलाह
जो किसान इन दो नस्लों को पालना चाहता है उनके लिए अजिंक्य कीसलाह है कि शुरुआत में शेड लगाने में बढ़ा-चढ़ाकर खर्चा न करें। अगर डेयरी फ़ार्म का आपका प्रोजेक्ट 6 लाख रुपये का है तो 3 से 4 लाख रुपये की बैकअप राशि भी साथ लेकर चलें। सिर्फ़ प्रोजेक्ट की लागत के साथ डेयरी सेक्टर में न आयें। अतिरिक्त पैसा आपके पास होना चाहिए। साथ ही भैंस की नस्ल चुनते समय जल्दबाज़ी बिल्कुल न करें। भैंसपालन से जुड़े लोगों से संपर्क करें। नस्लों की पहचान के बारे में जानें, उसके बाद ही पूरी तैयारी के साथ इस सेक्टर में आगे बढ़ें।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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