Poultry farming In Nagaland Tribes: नागालैंड में बैकयार्ड मुर्गी पालन से हो रहा आर्थिक सशक्तिकरण

नागालैंड (Nagaland), भारत के नॉर्थ-ईस्ट राज्यों (north east states) में से एक, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। यहां की जनजातीय (Tribe) संस्कृति और पारंपरिक जीवनशैली इस राज्य की पहचान का ख़ास हिस्सा हैं। नागालैंड में कुल 16 मान्यता प्राप्त जनजातियां (Tribe) रहती हैं। जिनकी जीवनशैली में मांसाहारी भोजन की प्रमुखता है। वास्तव में, पूरे देश में नागालैंड (Nagaland) में प्रति व्यक्ति पशु प्रोटीन की खपत सबसे ज़्यादा है।

Poultry farming In Nagaland Tribes: नागालैंड में बैकयार्ड मुर्गी पालन से हो रहा आर्थिक सशक्तिकरण

नागालैंड (Nagaland), भारत के नॉर्थ-ईस्ट राज्यों (north east states) में से एक, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। यहां की जनजातीय (Tribe) संस्कृति और पारंपरिक जीवनशैली इस राज्य की पहचान का ख़ास हिस्सा हैं। नागालैंड में कुल 16 मान्यता प्राप्त जनजातियां (Tribe) रहती हैं। जिनकी जीवनशैली में मांसाहारी भोजन की प्रमुखता है। वास्तव में, पूरे देश में नागालैंड (Nagaland) में प्रति व्यक्ति पशु प्रोटीन की खपत सबसे ज़्यादा है।

हालांकि, राज्य में पशु उत्पादों (animal product) की आपूर्ति की तुलना में मांग काफी अधिक है। वर्तमान में, नागालैंड (Nagaland), में मीट और इससे जुड़े उत्पादों की लगभग 40 फीसदी कमी देखी जाती है। ये कमी राज्य के किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। ख़ासकर मुर्गी पालन (Poultry farming) में कुछ मुख्य रुकावटे हैं, जैसे कि अच्छे पोल्ट्री जर्मप्लाज्म (Poultry Germplasm) का ना होना और फ़ीड लागत का अधिक होना।

पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय की पहल: वनराज और श्रीनिधि पक्षी

राज्य में इस कमी को पूरा करने और मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए, ICAR-पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद की ओर से दोहरे उद्देश्य वाले पोल्ट्री पक्षियों वनराज और श्रीनिधि का विकास किया गया। ये पक्षी मांस और अंडे दोनों उद्देश्यों के लिए सही हैं और इन्हें विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है।

इन पक्षियों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये दिखने में स्थानीय देसी पक्षियों जैसे ही लगते हैं। ये समानता नागालैंड के आदिवासी किसानों के लिए इन्हें अपनाना आसान करती है। इनके दूसरे फ़ायदों में तेज़ वृद्धि दर, कम मृत्यु दर, भूरे रंग के अंडे और उच्च अंडा उत्पादन शामिल हैं।

आईसीएआर नागालैंड केंद्र की भूमिका

पूर्वोत्तर क्षेत्र में मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए, आईसीएआर नागालैंड केंद्र ने हैदराबाद स्थित पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय के सहयोग से पोल्ट्री बीज परियोजना की शुरुआत की। इस परियोजना का उद्देश्य वनराज और श्रीनिधि के गुणवत्ता वाले जर्मप्लाज्म (Germplasm) का उत्पादन कर किसानों को वितरित करना है।

2016-17 में, इस केंद्र ने असम, मणिपुर, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश सहित नागालैंड के कुल 1354 किसानों को 82,647 दिन के और बड़े हो चुके चूजों की आपूर्ति की। साथ ही, किसानों को वैज्ञानिक पिछवाड़े मुर्गी पालन की तकनीक सिखाने के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए।

आदिवासी उप-योजना (TSP) की सहायता

इस परियोजना के तहत आदिवासी समुदायों को भी विशेष लाभ दिए गए। टीएसपी घटक और टीएसपी संस्थान निधि की मदद से 738 जनजातीय लाभार्थियों को 17 गांवों में 25,319 चूजों का वितरण किया गया।

मुर्गी पालन शुरू करने से पहले, किसानों को पोल्ट्री आवास, आहार, और स्वास्थ्य प्रबंधन पर प्रशिक्षण दिया गया। किसानों को यह सिखाया गया कि कैसे अपने झुंड का टीकाकरण कर सकते हैं और दवाओं की उचित आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं।

आर्थिक प्रभाव और लाभ

1. किसानों ने शुरुआती चार सप्ताह तक इन चूजों को गहन निगरानी में पाला। इसके बाद, या तो उन्हें पिछवाड़े की प्रणाली या अर्ध-गहन प्रणाली में रखा गया। चारे के लिए स्थानीय सामग्री जैसे टैपिओका, टूटे चावल, मक्का और रसोई का कचरा उपयोग किया गया।

2.असम के निकटता के आधार पर चारे की कीमतें भिन्न-भिन्न रहीं। मिश्रित चारा 30 से 35 रुपये प्रति किलोग्राम और मक्का 12 से 23 रुपये प्रति किलोग्राम में उपलब्ध था। इस परियोजना में कुल 42,55,545 रुपये चारा और दवाओं पर खर्च किए गए।

3.तीन से चार महीनों के भीतर, पक्षी औसतन 2.5 से 3 किलोग्राम तक पहुंच गए। किसानों ने इन्हें बाजार में बेचना शुरू किया और इनकी कुल जीवित वजन उत्पादन लगभग 59,620 किलोग्राम रहा।

4.दूरदराज़ के जिले जैसे किफरी, तुएनसांग, फेक और जुन्हेबोटो में अंडों की ऊँची कीमतों की वजह से किसान विशेष रूप से श्रीनिधि पक्षियों को अंडा उत्पादन के लिए पालना पसंद करते हैं। वहीं, पोल्ट्री मांस की कीमत फेक और किफरी जिलों में 250 रुपये प्रति किलोग्राम और अन्य जिलों में 200 रुपये प्रति किलोग्राम थी।

आर्थिक सफलता की कहानी

इस परियोजना से किसानों को अच्छी आय प्राप्त हुई। पक्षियों की बिक्री से कुल 1,25,79,250 रुपये की सकल आय हुई। चारा, वैक्सीन और दवाओं पर खर्च की कटौती के बाद, किसानों ने कुल 71,31,525 रुपये की शुद्ध आय अर्जित की। इस पूरी परियोजना में 2.93 का लाभ लागत अनुपात (बी:सी अनुपात) प्राप्त हुआ, जो किसानों के लिए एक लाभकारी संकेतक है।

प्रेरणा और भविष्य की दिशा

इस परियोजना की सफलता ने न केवल ग्रामीण किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया, बल्कि नागालैंड के शिक्षित बेरोजगार युवाओं को भी प्रेरित किया। अब अधिक लोग व्यावसायिक स्तर पर मुर्गी पालन में रुचि ले रहे हैं और आईसीएआर नागालैंड केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

ये पहल ना केवल राज्य में मांस और अंडों की मांग को पूरा करने में सहायक बन रही है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रही है। ये मॉडल अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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