शोधकर्ता आकृति गुप्ता ने खोजा रोहू मछली को बीमारियों से बचाने का नया तरीक़ा

शोधार्थी आकृति गुप्ता ने रोहू मछली पालन के लिए बीमारियों से बचाने का नया तरीक़ा खोजा, जिससे मछली पालन और सुरक्षित होगा।

रोहू मछली पालन rohu fish disease solution

झारखंड के हजारीबाग जिले की विनोबा भावे विश्वविद्यालय की शोधार्थी आकृति गुप्ता ने रोहू मछली से जुड़ा ऐसा शोध किया है, जिसने मछली पालन की दुनिया में नई उम्मीद जगा दी है। उन्होंने जंगलों में पाए जाने वाले भेलवा पौधे के पत्तों से एक ऐसा अर्क तैयार किया है, जो मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और उन्हें जानलेवा बीमारियों से बचाता है।

रोहू मछली और उसकी अहमियत

रोहू मछली, जिसे कई जगह ‘रुई’ या ‘कारपो’ भी कहा जाता है, भारत की सबसे प्रमुख मीठे पानी की मछलियों में गिनी जाती है। यह न केवल स्वादिष्ट होती है, बल्कि प्रोटीन का बड़ा स्रोत भी है। यही कारण है कि रोहू मछली का उत्पादन देशभर में तेजी से किया जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बढ़ते प्रदूषण और रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण यह मछली कई खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ रही थी। मछली पालन करने वाले किसानों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई थी।

भेलवा पौधे से बनी जीवनदायिनी दवा

आकृति गुप्ता ने अपने शोध में यह साबित किया है कि भेलवा पौधे के पत्तों का अर्क रोहू मछली को बैक्टीरिया और फफूंद से होने वाली बीमारियों से बचा सकता है। यह अर्क मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उनके प्रतिरोधी जीन को सक्रिय करता है। खास बात यह है कि यह उपाय पूरी तरह से प्राकृतिक है और किसी रसायन का इस्तेमाल इसमें नहीं होता। यानी मछली पालन के लिए यह एक टिकाऊ और सुरक्षित समाधान है।

शोधकर्ता आकृति गुप्ता ने खोजा रोहू मछली को बीमारियों से बचाने का नया तरीक़ा

विशेष ध्यान देने की ज़रूरत

आकृति गुप्ता ने बताया कि रोहू मछली में कई तरह की बीमारियां होती हैं, जो तेजी से एक मछली से दूसरी में फैल जाती हैं। अगर भेलवा के पत्तों का अर्क सही मात्रा में भोजन में मिलाकर दिया जाए तो मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत हो जाती है। उन्होंने कहा कि मात्रा का संतुलन बेहद ज़रूरी है, तभी यह असरदार साबित होगा। खासकर रोहू मछली में होने वाला लोबिया रोग इस दवा से काफ़ी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

मछली पालन के लिए बड़ा वरदान

विनोबा भावे विश्वविद्यालय के डॉ. पी. के. मिश्रा का कहना है कि आकृति के इस शोध का सफल परीक्षण किया जा चुका है। यह खोज मछली पालन करने वालों के लिए एक वरदान साबित होगी। इससे न केवल मछलियों की संख्या बढ़ेगी, बल्कि मत्स्य पालकों को आर्थिक लाभ भी मिलेगा।

शोध का मार्गदर्शन और उपलब्धियां

आकृति गुप्ता ने यह शोध डॉ. पी. के. मिश्रा और रांची स्थित आईआईएबी के वैज्ञानिक डॉ. एस. के. गुप्ता के मार्गदर्शन में पूरा किया। उनका शोध विषय था – “झारखंड के जनजातीय पौधों से रोग प्रतिरोधक दवा बनाकर रोहू मछली पर प्रयोग।” इस शोध को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. एन. के. दूबे ने भी सराहा और आकृति को पीएचडी के लिए योग्य घोषित किया।

उनकी शैक्षणिक उपलब्धियां भी उल्लेखनीय हैं। आकृति ने CSIR, GATE और IIT JAM जैसी कठिन परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। अब तक उनके 8 शोध पत्र और 4 बुक चैप्टर प्रकाशित हो चुके हैं।

मछली पालन में नई क्रांति का संकेत

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। आकृति का यह शोध इस योजना को नया आयाम दे सकता है। यदि रोहू मछली को बीमारियों से बचाया जा सके, तो उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी और किसान आर्थिक रूप से सशक्त होंगे।

भविष्य की संभावनाएं

आकृति गुप्ता का मानना है कि आने वाले समय में इस दवा को बड़े पैमाने पर अपनाया जा सकता है। अगर यह उपाय व्यावसायिक स्तर पर लागू हुआ, तो मछली पालन के क्षेत्र में नई क्रांति आ सकती है। देशभर के मत्स्य पालक इससे जुड़कर न केवल अधिक उत्पादन कर पाएंगे, बल्कि अपने परिवार की आय भी बढ़ा सकेंगे।

निष्कर्ष

रोहू मछली भारत की प्रमुख जल संसाधन आधारित जीविका का हिस्सा है। इसे सुरक्षित और स्वस्थ रखना देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी ज़रूरी है। हजारीबाग की शोधार्थी आकृति गुप्ता का यह प्रयास न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के मत्स्य पालकों के लिए प्रेरणादायक है। उनके शोध ने साबित किया है कि अगर स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ा जाए, तो मछली पालन जैसे क्षेत्र में भी बड़ा परिवर्तन संभव है।

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