नवजात बछड़े को खीस पिलाना क्यों ज़रूरी? जानिए क्या होती है खीस
ग्रामीण इलाकों में आज भी पशुपालन किसानों की आमदनी का एक अच्छा ज़रिया है, मगर इसके लिए नवजात बछड़ों की सही देखभाल ज़रूरी है। इसमें सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है नवजात बछड़े को खीस पिलाना।
ग्रामीण इलाकों में आज भी पशुपालन किसानों की आमदनी का एक अच्छा ज़रिया है, मगर इसके लिए नवजात बछड़ों की सही देखभाल ज़रूरी है। इसमें सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है नवजात बछड़े को खीस पिलाना।
उड़द भारत की प्रमुख दलहन फसल है। उड़द की खेती मैदानी इलाकों में बड़े पैमाने में की जाती है। मगर इस फसल में कीटों का प्रकोप बहुत ज्यादा होता है। इसलिए खेती की उन्नत तकनीक और कीट नियंत्रण उपायों के ज़रिए किसान इससे अच्छी आदमनी प्राप्त कर सकते हैं।
बुंदेलखंड की सख्त ज़मीन पर पॉलीहाउस तकनीक से खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें बांदा कृषि विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभा रहा है। मुश्किल परिस्थितियों में सब्ज़ियों का उत्पदान कैसे पूरे साल किया जाए, इसके लिए विश्वविद्यालय ने एक प्रोजेक्ट के तहत 200 स्क्वायर मीटर के छोटे एरिया में कई पॉलीहाउस लगाए हुए हैं। जानिए सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पॉलीहाउस तकनीक से खेती के बारे में विस्तार से।
मशरूम की खेती के लिए पहाड़ी इलाकों का मौसम उपयुक्त होता है, मगर कई जगहों पर किसानों को मशरूम उत्पादन की तकनीक नहीं पता है। ऐसे में उत्तराखंड का उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, जागरुकता फैलाने के साथ ही किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहा है।
कृषि प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वानिकि महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. मोहम्मद नासिर बताते हैं कि उनके कॉलेज में अलग-अलग तरह के कोर्स हैं। इन्हीं कोर्स में से एक है फ़ॉरेस्ट प्रॉडक्ट यूनिलाइज़ेशन प्रोग्राम, जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर होता है इस कोर्स में बच्चों को जंगल के उत्पादों का सही इस्तेमाल करना सिखाया जाता है।
हमारे पारंपरिक अनाज कितने फ़ायदेमंद है ये मिलेट्स की बढ़ती लोकप्रियता से साफ़ हो चुका है। मिलेट्स के ज़रिए हरियाणा के एक गांव की 300 महिलाओं को स्वरोज़गार मिल रहा है। कभी महज़ 10 महिलाओं का ये छोटा समूह अब FPO बन चुका है और इससे 300 महिलाएं जुड़कर सम्मान का जीवन जी रही हैं।
खेत में मुख्य फसलों के साथ उगने वाले खरपतवार पौधों के विकास को प्रभावित करते हैं, जबकि चारा फसलों के साथ उगने वाले खरपतवार पशुओं की सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए हरे चारे की खेती में भी खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरत को पूरा करने के लिए सोलर एनर्जी यानी सौर ऊर्जा सबसे अच्छा विकल्प है। वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक ईज़ाद की है, जिसमें बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ होगा। इस तकनीक का नाम है कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती)।
दलहन भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और पूरी दुनिया में दलहन का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। किसानों के लिए भी इसकी खेती फ़ायदेमंद है। इसलिए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर किसान दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो राइज़ोबियम कल्चर उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
बीज खेती का आधार है, तभी तो कहते हैं कि हर बीज एक अनाज है, लेकिन हर अनाज एक बीज नहीं हो सकता क्योंकि सभी अनाज में एक समान अंकुरण क्षमता नहीं होती। बीज उत्पादन के लिए किसानों को बीज के प्रकार और उत्पादन का सही तरीका पता होना चाहिए।
बरसीम एक महत्वपूर्ण दलहनी चारा फसल है जो न सिर्फ़ पशुओं के लिए बेहतरीन है, बल्कि ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है। इसका इस्तेमाल हरी खाद के रूप में किया जा सकता है। पशुओं के लिए ये चारा बहुत पौष्टिक होता है, वैसे तो बरसीम की फसल पर रोगों का बहुत गंभीर परिणाम नहीं होता है, लेकिन कुछ रोग व कीट है जिनसे बचाव करना ज़रूरी है।
जिस तरह से ऑफ़िस या घर में काम या डॉक्यूमेंट्स का रिकॉर्ड रखा जाता है, वैसे ही डेयरी उद्योग में पशुओं का रिकॉर्ड रखना बहुत ज़रूरी है।
खेती में हरी खाद का मतलब उन सहायक फसलों से है, जिन्हें खेत के पोषक तत्वों को बढ़ाने के मकसद से उगाया जाता है। ये मिट्टी की साथ-साथ फसलों को भी कई लाभ देती हैं।
बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव को देखते हुए खेती में जैविक विधि के इस्तेमाल को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसे में अब बहुत से किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए भी प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
अरारोट की खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए तापमान 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए।
सेहत और किसानों के लिए फ़ायदेमंद लाल चावल की खेती हिमाचल में फिर से बड़े पैमाने पर की जा रही है। जानिए लाल चावल से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
मछली पालन में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है। पहले स्थान पर चीन है। हमारे देश में मछली उत्पादन में सबसे अधिक हिस्सेदारी कार्प मछलियों की है। कार्प मछली उत्पादन में मछली पालकों को इसके बीजों की गुणवत्ता पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत होती है।
खेती के साथ ही ज़्यादातर किसान पशुपालन भी करते हैं, क्योंकि इससे उन्हें कई फ़ायदे होते हैं। दूध, दही, घी के साथ ही खेती के लिए जैविक खाद मिलती है। लेकिन पशुओं के बीमार होने पर पशुपालकों को दवाओं पर काफ़ी खर्च करना पड़ जाता है, जिससे लाभ कम हो जाता है। ऐसे में औषधीय पौधे बहुत मददगार साबित हो सकते हैं।
स्ट्रॉबेरी ठंडे इलाके की फसल है और आमतौर पर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर में इसकी खूब खेती होती है। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर की एक महिला किसान ने घर से ही स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। अब अपने इलाके की सफल स्ट्रॉबेरी उत्पादक बन गई हैं।
चिकन और अंडे प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत हैं, लेकिन इन्हें ज़्यादा एंटीबायोटिक्स देने पर मानव स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है। साथ ही कुक्कुट उद्योग तेज़ी से विकसित हो रहा है, ऐसे में मुर्गी पालन व्यवसाय में उचित और जैविक आहार प्रबंधन बहुत ज़रूरी है।