मुर्गी पालन (Poultry): हाल के कुछ साल में ब्रॉयलर और लेयर मु्र्गियों में जेनेटिक सुधार देखा गया है। ब्रॉयलर मुर्गियां तेज़ी से बढ़ती हैं, इसलिए अगर इन्हें सही आहार दिया जाए तो इससे अच्छी आमदनी अर्जित की जा सकती है। मगर जिस रफ़्तार से कुक्कुट उद्योग बढ़ रहा है, उस रफ़्तार से मुर्गियों के लिए जैविक आहार भी बढ़ाने की ज़रूरत है। बिना एंटीबायोटिक दवाओं के उनके लिए पौष्टिक आहार तैयार करना ज़रूरी है ताकि अंडे और मीट खाने वालों की सेहत पर इसका बुरा प्रभाव न पड़े।
आहार अवधारणा में बदलाव
मुर्गीपालन में लागत का 70 से 75% खर्च उनके भोजन पर ही होता है। इसलिए उनके लिए सस्ते और पौष्टिक आहार का प्रबंधन ज़रूरी है ताकि मुनाफ़ा अच्छा हो। पिछले कुछ साल में उनके आहार की अवधारणा में काफ़ी बदलाव हुए हैं। जैसे पहले चूज़ों को जन्म से लेकर 2-3 दिन तक सिर्फ़ मक्का ही खिलाया जाता था और ब्रॉयलर राशन, स्टार्टर और फिनिशर के केवल दो चरण ही होते थे। लेकिन अब चूज़ों को पहले 7-10 दिन के लिए प्री-स्टार्टर आहार देने का चलन शुरू हुआ है।
शुरुआती चरण में उन्हें अच्छा आहार खिलाना ज़रूरी होता है, लेकिन इस अवधारणा के कारण फ़ीड उद्योग को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि मांग के हिसाब से फ़ीड सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती है, साथ ही लागत भी ज़्यादा आती है।
वैकल्पिक स्रोतों की तलाश
आमतौर पर हमारे देश में ब्रॉयलर और लेयर मुर्गियों को मक्का और सोयाबीन दिया जाता है। इससे उनकी प्रोटीन और ऊर्जा की ज़रूरत पूरी होती है। लेकिन पोल्ट्री और जैव ईंधन दोनों क्षेत्रों में इनकी मांग बढ़ने से पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही है। ऐसे में वैकल्पिक फ़ीड सामग्रियों का इस्तेमाल ज़रूरी है। मक्के की जगह गेहूं, टूटे चावल, बाजरा, ज्वार, रागी आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। सोयाबीन की जगह कई प्रोटीन बाय प्रॉडक्ट्स जैसे मूंगफली की खली, सरसों तोरिया-सरसों खली, तिल खली, मक्का खली, सूरजमुखी खली, कुसुम खली आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसके अलावा, अनाज बाय प्रॉडक्ट्स जैसे राइस पॉलिश, चावल की भूसी आदि का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, पशु से मिलने वाले उत्पाद जैसे फिश मील, मीट मील, मीट कम बोन मील आदि भी मुर्गियों के आहार के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। उपलब्ध सामग्रियों के आधार पर उचित आहार फॉर्मूलेशन तैयार किया जाना चाहिए।
उम्र के हिसाब से पोषण की ज़रूरत
ब्रॉयलर के आहार को तीन चरणों में बांटा गया है। 0-1 हफ़्ते (प्री स्टार्टर), 1-3 हफ़्ते (स्टार्टर) या 3 हफ़्ते से लेकर बेचने की उम्र (फिनिशर) तक आहार का ध्यान रखना ज़रूरी होता है।
प्री स्टार्टर चरण में पोषण की ज़रूरत- में लाइसिन और मेथिओनिन की अधिकता वाले आहार की ज़रूरत होती है।
स्टार्टर चरण में पोषण की ज़रूरत- 23 प्रतिशत सीपी, 3000 कि.ग्रा. कैलोरी एमई / कि.ग्रा. 1.2 प्रतिशत लाइसिन, 0.5 प्रतिशत मेथिओनिन, 1.0 प्रतिशत कैल्शियम और 0.45 प्रतिशत उपलब्ध फॉस्फोरस।
फिनिशर चरण में पोषण की ज़रूरत– 21 प्रतिशत सीपी, 3500 कि.ग्रा. कैलोरी एमई/कि.ग्रा., 1.0 प्रतिशत लाइसिन, 0.45 प्रतिशत मेथियोनिन, 1.0 प्रतिशत कैल्शियम और 0.4 प्रतिशत उपलब्ध फॉस्फोरस।
आहार तैयार करने का तरीका
चूज़ें/मुर्गियों के आहार में प्रोटीन और ऊर्जा मुख्य रूप से शामिल होता है। इनके आहार को हाथ से या मिक्सर की मदद से तैयार किया जाता है। सबसे पहले सामग्रियों को अलग-अलग तौला जाता है और फिर उसे पीसा जाता है। विटामिन, खनिज, लवण, लाइसिन, मेथिओनिन, कोलीन, एंजाइम, कोक्सीडियोस्टैट्स और दूसरे फीड एडिटिव्स को पहले पीसे हुए मक्का की कम मात्रा के साथ मिलाकर प्रीमिक्स तैयार किया जाता है। फिर मक्का डालकर मिलाया जाता है।
जब तक मिश्रण 5-6 किलो न हो जाए इस प्रक्रिया को दोहराया जाता है। अगर मिक्सर है तो उसमें एक-एक करके सामग्री को मिलाएं और बीच-बीच में प्रीमिक्स डालें। चूना पत्थर और डायकेलसीयम फॉस्फेट को सीधे मिलाया जा सकता है। अगर मिक्सर नहीं तो इसे फर्श पर डालकर मिला लें।
पोल्ट्री उद्योग में तेज़ी से विकास हो रहा है और ये एक ऐसा क्षेत्र है, जिससे किसान भी अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि मुर्गीपालन को छोटे स्तर पर भी शुरू किया जा सकता है, लेकिन इससे मुनाफ़े के लिए मुर्गियों को सही आहार खिलाना ज़रूरी है। ऐसे में मुर्गीपालकों को आहार तैयार करने की जानकारी होने के साथ ही पारंपरिक आहार के विकल्पों के बारे में भी पता होना चाहिए।
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