कड़कनाथ मुर्गी पालन (Kadaknath Chicken Farming): गाँवों में सीमान्त, लघु और भूमिहीन किसानों की आमदनी का एक ख़ास ज़रिया है मुर्गी पालन। कड़कनाथ मुर्गों की नस्ल को मुर्गी पालन के लिए सबसे बेहतरीन माना गया है। क्योंकि एक ओर तो इसके पौष्टिक औऱ स्वादिष्ट माँस की बहुत माँग रहती है और दूसरी ओर मुर्गीपालकों को इसका दाम बहुत बढ़ियाँ मिलता है।
गर्मियों के मौसम में कड़कनाथ मुर्गों का विकास थोड़ा धीमा पड़ जाता है। क्योंकि उन्हें उपयुक्त मात्रा में पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता। मुर्गीपालक गाँवों में कड़कनाथ मुर्गियों को पर्याप्त मात्रा में दाना नहीं उपलब्ध करवा पाते क्योंकि विभिन्न कम्पनियों की ओर से निर्मित मुर्गी का दाना उन्हें ख़ासा महँगा पड़ता है।
मुर्गीपालक किसान अक्सर कड़कनाथ मुर्गियों को अपने घर के बाड़े में या आसपास के इलाके में खुला छोड़ देते हैं। वहाँ मुर्गियाँ आसपास उपलब्ध चारे और कीड़े-मकोड़ों को बड़ी चपलता से खा लेती हैं। लेकिन इस तरह से भोजन इक्कठा करने में उन्हें जितना श्रम करना पड़ता है और इसमें उनकी जितनी ऊर्जा खर्च होती है, उससे मुर्गियों का पोषण प्रभावित होता है और उनका बढ़वार धीमी पड़ जाती है।
इसी चुनौती को देखते हुए कृषि विज्ञानियों के सामने मुर्गियों की लिए ऐसा सस्ता और पौष्टिक भोजन तलाशने की चुनौती खड़ी हुई जिससे कड़कनाथ मुर्गी और इसे पालने वाले किसानों की मुश्किलें ख़त्म हो सकें।
गर्मी में धीमा होता है मुर्गों का विकास
दरअसल, छत्तीसगढ़ के भाटपारा स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, वैसे-वैसे मुर्गियों की बढ़वार धीमी पड़ने लगती है क्योंकि वो आहार कम खाती हैं और पानी ज़्यादा पीती हैं। या यूँ कहें कि तापमान परिवर्तन से जूझने के लिए मुर्गियों को ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत होती है। इसकी भरपाई प्रोटीन, अमीनो अम्ल और खनिज लवणयुक्त ऐसे आहार से ही हो सकती है जो सस्ता भी हो। अजोला इन सभी शर्तों पर ख़रा उतरता है।
भाटपारा में अजोला का सफल प्रयोग
वैज्ञानिकों ने पाया कि अजोला में कड़कनाथ मुर्गों के लिए भी एक शानदार और सस्ता पोषक आहार बनने की क्षमता है। लेकिन अब चुनौती ये आयी कि आख़िर इसे साबित कैसे किया जाए और कड़कनाथ मुर्गियाँ पालने वाले किसानों को इसकी अहमियत कैसे बतायी और समझायी जाए?
इसके बाद कृषि विज्ञान केन्द्र, भाटपारा ने अजोला की इन्हीं ख़ूबियों को ध्यान में रखकर निक्रा परियोजना (National Initiative on Climate Resilient Agriculture, NICRA) के तहत अपने आसपास के चुनिन्दा आदिवासी बहुल गाँवों में मुर्गीपालक को प्रशिक्षित किया।
अजोला को मिला मुर्गों के उत्तम आहार का दर्ज़ा
कड़कनाथ मुर्गी पालन से जुड़ा निक्रा परियोजना का प्रयोग सफल साबित हुआ तो देखते ही देखते उन गाँवों में 50 से ज़्यादा पक्की और कच्ची अजोला उत्पादन इकाईयाँ भी स्थापित हो गयीं और अजोला को कम समय में अधिक उत्पादन देने और उपयोगी पोषक तत्वों से भरपूर कुक्कुट आहार होने का दर्ज़ा मिल गया। आहार में अजोला के शामिल होने से कड़कनाथ के पोषक तत्वों की भरपाई हो गयी।
ये मुर्गियों के लिए बेहद सस्ता, सुपाच्य और पसन्दीदा आहार भी साबित हुआ, क्योंकि इसके सेवन से कड़कनाथ मुर्गियों के विकास की गति में मौसमी बदलाव की वजह से आयी रुकावट का असर ख़त्म हो गया।

अजोला क्यों है मुर्गियों का उत्तम आहार?
अजोला एक तेज़ी से बढ़ने वाला जलीय फर्न है। इसकी कुल 8 प्रजातियाँ हैं। भारत में इसकी पिन्नाटा नामक प्रजाति ख़ूब पायी जाती है। ये ठहरे हुए पानी में छोटे-छोटे सघन हरित गुच्छों के रूप में पनपता है और अनुकूल माहौल में 3 से 5 दिनों में अपनी दोगुनी वृद्धि कर लेता है। मुर्गियों के उत्तम आहार से पहले अजोला ने वातावरण से नाइट्रोजन सोखने के अपने गुण की वजह से धान की खेती के लिए एक अति उपयोगी जैविक खाद का दर्ज़ा हासिल कर रखा था। अजोला की ज़ोरदार बढ़वार के लिए पानी के अलावा धूप की ज़रूरत पड़ती है।
ये भी पढ़ें: अजोला की खेती फसलों और मवेशियों के लिए है वरदान, कृषि एक्सपर्ट्स से जानिए कैसे करें इसकी खेती
पोषक तत्वों से भरपूर है अजोला
अजोला में पोषक तत्वों की भरमार होती है। इसमें आवश्यक अमीनो अम्ल, विटामिन ए और बी, बीटाकैरोटिन और कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, कॉपर, मैग्नेशियम जैसे खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। शुष्क मात्रा के आधार पर अजोला में 25 से 35 प्रतिशत प्रोटीन तथा 10 से 15 प्रतिशत खनिज और 7 से 10 प्रतिशत अमीनो अम्ल पाये जाते हैं। इसमें कार्बोहाइड्रेट और वसा की मात्रा बेहद कम होती है। अपने इन्हीं गुणों की वजह से अजोला ने अत्यन्त पौष्टिक और पाचक कुक्कुट आहार का भी दर्ज़ा पाया है।
कैसे करें अजोला का उत्पादन?
कृषि विज्ञान केन्द्र के सहयोग से अजोला की उपलब्धता के लिए गाँव में कम लागत वाली अजोला उत्पादन इकाईयाँ स्थापित की गयीं। इसके लिए 4x2x0.4 मीटर आकार की सीमेंट की टंकियाँ या हौदे बनवाये गये। कुछ स्थानों पर लागत को और घटाने के लिए सीमेंट की जगह गड्ढों की सतह पर प्लास्टिक शीट बिछायी गयी। ताकि पानी की रिसाव नहीं हो।
अब प्लास्टिक शीट को किनारों पर ईंटों ने दबा दिया गया। अजोला की इन उत्पादक इकाइयों को आंशिक छाया भी दी गयी ताकि इनमें पत्तियाँ और अन्य फ़ालतू चीज़ें नहीं गिरें। फिर गड्ढे या टंकी की सतह पर 10 से 15 किलोग्राम पेड़ के नीचे की छनी हुई मिट्टी को फैलाकर, 10 लीटर पानी में 2-3 किलोग्राम ताज़ा गोबर और 30 ग्राम सुपर फॉस्फेट से बना घोल गड्ढे की सतह पर एक समान रूप से डाला गया।
फिर हौदे में 20 सेंटीमीटर की ऊँचाई तक पानी भरा गया। इसके बाद आधा से लेकर एक किलोग्राम तक अजोला कल्चर को पानी की सतह पर छोड़ दिया गया। इसके बाद किसानों को हर हफ़्ते 40 ग्राम सुपर फॉस्फेट तथा 2 किलोग्राम गोबर के मिश्रण को घोलकर हौदे में मिलाते रहने की सलाह दी गयी, ताकि अजोला की बढ़वार लगातार तेज़ रफ़्तार से होती रहे। किसानों को बताया गया कि किसी भी हालत में अजोला उत्पादक हौदों में पानी की ऊँचाई निर्धारित स्तर से कम नहीं होने पाये।
कैसे पड़ा कड़कनाथ मुर्गी पालन पर अजोला का प्रभाव?
प्रयोग के दौरान मुर्गीपालकों को वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि वो कड़कनाथ को सुबह-शाम घर में उपलब्ध दाना जैसे मक्का, जौ, ज्वार और चावल की कनकी दें। ताकि मुर्गियों को आवश्यक कार्बोहाइड्रेट की आपूर्ति हो जाए तथा प्रोटीन, खनिज और विटामिन की आपूर्ति अजोला के ज़रिये हो जाए। इसके बाद मुर्गीपालक किसानों ने पाया कि मुर्गियाँ अजोला को बहुत चाव से खाती हैं। इससे उनके वजन में भी ख़ूब इज़ाफ़ा हुआ।
किसानों ने पाया कि अजोला का उत्पादन बहुत ही कम लागत और अत्यन्त सरल तथा सहज तरीके से हो सकता है। इसी वजह से बहुत कम समय में कड़कनाथ के अलावा अन्य देसी प्रजातियों के मुर्गीपालकों के बीच ख़ूब लोकप्रिय और प्रचलित हो गया। इससे मुर्गीपालकों में अजोला जैसे पौष्टिक आहार के प्रति जागरूकता बेहद बढ़ गयी और ये उत्तम वैकल्पिक आहार के रूप में स्थापित हुआ।
अजोला उत्पादन की लागत और उपज
सीमेंट का हौदा बनाने की लागत जहाँ 1,500 रुपये बैठी वहीं प्लास्टिक शीट वाला कच्चा हौदा 500 रुपये में बन गया। लेकिन पक्का हो या कच्चा, हरेक हौदे से रोज़ाना 1024 ग्राम अजोला की उपज हासिल हुई। यानी, 3.74 क्विंटल सालाना, जिसका बाज़ार भाव करीब 3 हज़ार रुपये है।
महज 8 वर्ग मीटर में की गयी अजोला की ऐसी खेती की तुलना यदि बाज़ार में मिलने वाले मुर्गियों के उस पौष्टिक आहार की उत्पादकता से की जाए तो इस पैदावार का मुकाबला कर सकती है उस पर 10 हज़ार रुपये से कम का खर्च नहीं आएगा। इसका मतलब ये हुआ कि यदि मुर्गीपालन के साथ अजोला की खेती को भी अपनाया जाए तो कमाई कई गुणा बढ़ सकती है। एक ओर तो लागत में कमी आएगी और दूसरी ओर कड़कनाथ तेज़ी से और जल्दी बढ़कर बढ़ियाँ आमदनी करवाएँगे।
ये भी पढ़ें: खेती-बाड़ी के साथ करें कड़कनाथ मुर्गीपालन और पाएँ बढ़िया आमदनी
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- नागालैंड में Rani Pig के साथ सुअर पालन बना ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मज़बूत आधारRani Pig और वैज्ञानिक तकनीक से नागालैंड के सुअर पालन को मिल रही है नई दिशा, जानिए कैसे किसानों की आय में हो रही है वृद्धि।
- Sardar Patel Co-operative Dairy Federation: देश के डेयरी किसानों के लिए गेम-चेंजर, 5 लाख गांवों को मिलेगा फायदासरदार पटेल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (Sardar Patel Co-operative Dairy Federation) यानि SPCDF की स्थापना की गई है, जो देश के उन लाखों डेयरी किसानों को सशक्त बनाएगी, जो अभी तक सहकारी आंदोलन से जुड़े नहीं हैं।
- उत्तराखंड के किसानों के लिए बड़ी खुशख़बरी, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किये ये बड़े ऐलानमहत्वपूर्ण बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री ने उत्तराखंड के विकास (Agriculture and Rural Development in Uttarakhand) के लिए कई बड़े फैसले लिए। इस दौरान राज्य की मांग के अनुसार कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हरसंभव सहायता देने की बात कही। जानिए क्या मिलेगा राज्य को?
- मिज़ोरम में ब्रोकली की खेती में नया बदलाव – पोषक प्रबंधन और मिनी स्प्रिंकलर तकनीक से आई क्रांतिब्रोकली की खेती में Integrated Nutrient Management और Mini Sprinkler System से मिज़ोरम के किसानों को मिली उन्नत पैदावार और बेहतर आमदनी।
- Pangasius Fish Cluster : उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में डेवलप हो रहा उत्तर भारत का ‘पंगेसियस क्लस्टर’सिद्धार्थनगर (Siddharthnagar) में बनने वाले पंगेसियस क्लस्टर (Pangasius Fish Cluster) में मछली के प्रोडक्शन, प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग), पैकेजिंग और एक्सपोर्ट की सभी सुविधाएं होंगी। इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा और किसानों की आय बढ़ेगी।
- Meri Panchayat App : ‘मेरी पंचायत ऐप’ से पाएं पंचायत की हर जानकारी और मौसम का पूर्वानुमान सिर्फ एक क्लिक पर! केंद्र सरकार की ओर से लॉन्च किया गया ‘मेरी पंचायत’ App (Meri Panchayat App) ग्रामीण भारत को डिजिटल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। ये ऐप न सिर्फ पंचायत से जुड़ी सभी योजनाओं, फंड और विकास के कामों की जानकारी देता है, बल्कि अब इसमें 5 दिन का मौसम पूर्वानुमान (5 day weather forecast) भी शामिल किया गया है।
- Primary Agricultural Credit Society: PACS के ज़रिये से सहकारिता क्रांति, किसानों को मिल रहीं कृषि सेवाएं और सस्ता ऋणगांव में मल्टीपर्पस PACS (primary agricultural credit societies) के तहत डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियां स्थापित की जा रही है। ये योजना किसानों को सीधे लाभ पहुंचाने वाली है, जिसमें कृषि, डेयरी, मत्स्य पालन, भंडारण, मार्केटिंग और डिजिटल सेवाओं का विस्तार शामिल है।
- प्राकृतिक खेती अपनाकर सेब की खेती में सफल हुए हिमाचल के प्रगतिशील किसान भगत सिंह राणाप्राकृतिक खेती से सेब की खेती को नया जीवन देने वाले भगत सिंह राणा की कहानी पढ़ें और जानिए खेती में बदलाव की राह।
- कैसे विदेशी सब्ज़ियों की खेती में पुलवामा के किसान ग़ुलाम मोहम्मद मीर ने हासिल की कामयाबीकश्मीर की ज़मीन पर विदेशी सब्ज़ियों की खेती ने दस्तक दी है। शोपियां के ग़ुलाम मोहम्मद मीर ने पुलवामा में ब्रोकली, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, चाइनीज़ गोभी और केल की खेती कर मिसाल पेश की है। किसान उनके फ़ार्म को देखने और उनसे सीखने भी आते हैं।
- Analog Cheese का धोखा: दूध की जगह प्लांट-बेस्ड मिलावट! FSSAI ने कसी नकेल, जानिए कैसे करें नकली पनीर की पहचान?असली पनीर 100 फीसदी दूध से बनता है, जबकि एनालॉग पनीर (Analog cheese) में दूध की जगह सोया प्रोटीन, वनस्पति तेल, टैपिओका स्टार्च, नारियल तेल और केमिकल्स मिलाए जाते हैं। ये पनीर दिखने में तो असली जैसा लगता है, लेकिन स्वाद और पोषण में बिल्कुल फर्क होता है।
- प्रधानमंत्री कुसुम योजना से झुंझुनूं के 1500 किसानों को मिलेगा सोलर पंप का तोहफ़ा, 60% सब्सिडीप्रधानमंत्री कुसुम योजना (PM Kusum Scheme) से झुंझुनूं के 1500 किसानों को मिलेगा सोलर पंप, सरकार दे रही है 60% सब्सिडी और 5 साल की वारंटी।
- ICAR और NBFGR ने अरब सागर से खोजी नई गहरे पानी की सर्पमीन (ईल) प्रजाति Facciolella SmithiICAR–National Bureau of Fish Genetic Resources (NBFGR) के शोधकर्ताओं ने अरब सागर में केरल के तट से एक नई प्रजाति की सर्पमीन (New species of eel) खोजी है, जिसका नाम Facciolella smithi रखा गया है।
- International Plastic Bag Free Day पर जानिए, क्यों खेती को चाहिए प्लास्टिक से मुक्तिInternational Plastic Bag Free Day पर जानिए कैसे प्लास्टिक खेती को कर रहा है नुकसान और किसान कैसे इस बदलाव के अगुआ बन सकते हैं।
- Shivraj Singh Chouhan’s Visit To Jammu And Kashmir: केसर उत्पादन से लेकर क्लीन प्लांट सेंटर तक केंद्र सरकार बदलेगी किसानों की तकदीर!केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Union Agriculture and Farmers Welfare Minister Shivraj Singh Chouhan) 3 और 4 जुलाई 2025 को जम्मू-कश्मीर के दौरे पर हैं, जहां आज उन्होंने कृषि, ग्रामीण विकास और शिक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण योजनाओं Agricultural Revolution In Jammu And Kashmir) की समीक्षा की।
- Mission Mausam: भारत को मिलेगा Weather Update का सटीक अनुमान, देश अब मौसम की मार से बचने को तैयार!देश के कई हिस्सों में आए भीषण मौसम के बीच उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मिशन मौसम’ (MISSION MAUSAM) के तहत भारत का पूर्वानुमान तंत्र अब दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सिस्टम्स की कतार में शामिल हो रहा है।
- What is Precision Farming: स्मार्ट तकनीक से Agriculture Revolution! क्यों ये है भविष्य की खेती? पढ़ें डीटेल मेंप्रिसिजन फार्मिंग (Precision Farming) एक ऐसी आधुनिक तकनीक जो GPS, सेंसर, ड्रोन और AI का इस्तेमाल करके खेती को ‘इंच-इंच सटीक’ बना देती है।
- गुरेज़ घाटी में खेती और बागवानी को मिली नई पहचान, MIDP और HADP Schemes से आई हरियाली की बहारगुरेज़ घाटी में MIDP और HADP Schemes से खेती में आई क्रांति, किसान अब उगा रहे हैं सेब, चेरी और सर्दियों की सब्ज़ियां।
- 10 Years Of Digital India : e-NAM के ज़रीये किसानों की बदल रही जिंदगी, नई टेक्नोलॉजी से आई डिजिटल क्रांतिडिजिटल क्रांति (10 Years Of Digital India) ने किसानों की जिंदगी को कैसे बदला है? ई-नाम (e-NAM) एक ऐसी ही क्रांतिकारी पहल है, जिसने कृषि व्यापार (Agricultural Business) को बिचौलियों के चंगुल से मुक्त करके किसानों को सीधा बाजार से जोड़ दिया है।
- ‘Ek Bagiya Maa Ke Naam’ Project: मध्य प्रदेश सरकार की मदद से महिलाओं को मिलेगी आर्थिक आज़ादी‘एक बगिया मां के नाम’ (‘Ek Bagiya Maa Ke Naam’ Project) नाम की इस योजना के तहत मध्य प्रदेश की हज़ारों महिलाओं को अपनी ज़मीन पर फलदार पौधे लगाने का मौका मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और प्रदेश हरा-भरा बनेगा।
- VIV ASIA Poultry Expo 2026: भारत में पहली बार होने जा रहा है लाइव स्टॉक एक्सपो का महाकुंभ!दुनिया के सबसे बड़े लाइव स्टॉक और पोल्ट्री एक्सपो (The world’s largest livestock and poultry expo) में से एक, VIV ASIA, (VIV ASIA Poultry Expo 2026) अब भारत में होने जा रहा है। ये पहली बार है जब ये प्रतिष्ठित एक्सपो थाईलैंड और यूरोप से निकलकर भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।