Kodo Millet: कोदो की उन्नत खेती में बीजोपचार से लेकर खाद व उर्वरक की अहम भूमिका

कोदो की उन्नत खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। कोदो को चावल की तरह खाया जा सकता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, खनिज, आयरन, कैल्शियम और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में होता है। कोदो मिलेट (Kodo Millet In Hindi) और इसकी उन्नत खेती में बारे में जानिए।

कोदो की उन्नत खेती kodo millet in hindi

कोदो की उन्नत खेती | भारत में मिलेट की खेती को बड़े स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है। कोदो को कई जगहों पर भंगर के नाम से भी जाना जाता है। ये फसल मुख्य रूप से कम बारिश वाले क्षेत्रों में उगती है। कोदो के चावल को शुगर फ़्री चावल के रूप में जाना जाता है, जो डायबिटीज़ के मरीजों के लिए बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है।

हालांकि, इसकी खेती धान की खेती से कम होती है, लेकिन पौष्टिकता के मामले में इसमें पोषण तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। कोदो की खेती में मेहनत भी कम लगती है।

कोदो का पौधा बड़ी घास या धान के पौधों की तरह होता है और इसकी बालियों के सूख जाने पर साफ़ करके इसमें से दाना निकाला जाता है। इन दानों का ही इस्तेमाल खाने के लिए किया जाता है। साल 2023 से मिलेट्स को मिली अहमियत के बाद अब हर तरह के मोटे अनाज के प्रति किसानों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि उन्हें और आम लोगों को इससे फ़ायदा हो सके। तो आइए जानते हैं कोदो की उन्नत खेती का तरीका।

कोदो की फसल के लिए खेत की तैयारी

कोदो एक ऐसी फसल है जो हर तरह की मिट्टी में पैदा हो जाती है। ऐसी ज़मीन जहां कोई और फसल न उग सके, वहां भी कोदो की खेती आराम से होती है। वैसे हल्की भूमि और  पानी की सही व्यवस्था वाली भूमि को कोदो की खेती के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। खेत तैयार करने के लिए गर्मी के मौसम में जुताई की जाती है और बारिश के बाद दोबारा जुताई करनी होती है, इसके साथ ही खेत में रोटावेटर चलाना होता है, ताकि मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी हो जाए।

कोदो की किस्मों का चुनाव और बुवाई का तरीका

हर तरह की भूमि के लिए किस्मों का चुनाव अलग होता है जैसे जिन इलाकों की भूमि पथरीली, दोमट, मध्यम गहरी, कम उपजाऊ है तो वहां जल्दी पकने वाली किस्म और जहां ज़्यादा बारिश होती है वहां के लिए देर से पकने वाली किस्मों का चुनाव किया जाता है। इसकी बुवाई कतारों में की जाती है, जिसके लिए प्रति हेक्टेयर 8-10 किलो बीज की ज़रूरत पड़ती है।

अगर छिटकाव विधि से बुवाई कर रहे हैं तो 12-15 किलो बीज की ज़रूरत पड़ती है। कोदो की बुवाई बारिश शुरू होने के बाद कर देनी चाहिए। जल्दी बुवाई करने से उपज अच्छी होती है और इसमें कीट व रोगों का प्रभाव भी कम होता है। जुलाई के अंत तक बुवाई करने पर फसल में तना मक्खी कीट रोग का प्रकोप नहीं बढ़ता है।

कोदो की उन्नत किस्में

कोदों की कुछ उन्नत किस्में हैं जैसे जवाहर कोदों– 439, जवाहर कोदों–41, जवाहर कोदों–62, जवाहर कोदों–76 और जीपीयूके- 3।

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कोदो की फसल में बीजोपचार 

इस फसल में बुवाई से पहले बीजोपचार बहुत अहम है। प्रति किलो बीज को 3 ग्राम थायरम या मेंकोजेब से उपचारित करें। इससे बीज जनित व मिट्टी जनित रोग का असर फसल में बहुत ही कम होता है। कतारों में बुवाई करने पर बीजों को 7 सेमी. की दूरी पर लगाएं और कतारों के बीज 20-25 सेमी. की दूरी रखें।

कोदो की फसल में खाद व उर्वरक

इस फसल में उर्वरक डालने की ज़रूरत नहीं पड़ती है, लेकिन प्रति हेक्टेयर 20 किलो स्फुर और 40 किलो नाइट्रोजन का इस्तेमाल करने से फसल अच्छी होती है। स्फुर की पूरी और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के वक्त डालें और नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा बुवाई के तीन से पांच हफ्ते बाद डालें। साथ ही बुवाई के समय पीएसबी. जैव उर्वरक 4 से 5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किलो मिट्टी या कंपोस्ट के साथ मिलाकर डालें।

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कोदो फसल की कटाई

ये फसल 90 से 140 दिन पककर तैयार हो जाती है। फसल की कटाई दो तरीके से की जा सकती है। केवल बालियों को काटकर, सुखाकर और पीटकर दाना अलग कर लिया जाता है या फिर पूरा पौधा ही काटकर, सुखाकर और बैलों से मंडाई करके दाना निकाला जाता है।

कोदो की फसल के फ़ायदे

कोदो की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद होती है, क्योंकि इसमें लागत कम आती है और पानी की ज़रूरत भी कम पड़ती है। इसके अलावा ये आम लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है, क्योंकि में ये फसल पौष्टिक तत्व भरपूर होती है, इसलिए धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कोदो का सेवन करने से लिवर, एनीमिया, डायबिटीज़ और अस्थमा के मरीजों को फ़ायदा होता है।

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