Jowar Crop: ज्वार की फसल की उन्नत खेती करके कम लागत में पाएं ज्यादा मुनाफ़ा, जानें संपूर्ण जानकारी

भारत में ज्वार की फसल प्रमुख उपज है और ये  खरीफ़ सीजन में उगाई जाती है। ये फसल वर्षा आधारित होती है। ज्वार में पौष्टिक तत्व कूट-कूट कर भरे होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं।

ज्वार की फसल

जैसे ही आप ज्वार का नाम सुनते हैं तो आपके मन में गांव का एक सीन क्रिएट हो जाता है, जहां पर आप बड़े मज़े के साथ ज्वार की रोटी और उसपर रखे मक्खन स्वाद चख रहे होते हैं। ये बात तो आप भी जानते हैं कि ज्वार स्वादिष्ट होने के साथ ही, इसमें पौष्टिक तत्व कूट-कूट कर भरे होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद होते हैं।

भारत में ज्वार की फसल (Jowar Crop) प्रमुख श्रेणी में आती है और ये खरीफ़ सीज़न में उगाई जाती है। ये फसल वर्षा आधारित होती है। इसकी ख़ास बात ये है कि ये पशु के लिए भी अच्छा आहार होता है। ज्वार की फसल सूखे में भी उगती है साथ ही भूमि में जलमग्नता भी सहन करती है।  

ज्वार की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तामिलनाडू, राज्यस्थान में होती है। वैसे आपको बता दें कि इस क्रॉप का ओरिजन 5000-8000 वर्ष पहले साउथ अफ्रीका और मिसरी सुदनीस सरहद पर था। ज्वार का वैज्ञानिक नाम सोरघम बाइकलर एल. (Sorghum bicolor L.) है।  इस फसल को ‘द किंग ऑफ मिलेट्स’ भी कहा जाता है।

ज्वार की फसल कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा देती है, कम लागत में अच्छी पैदावार के लिए ज्वार की उपज बेहतरीन फसल है। आप ज्वार की उन्नत किस्मों को जानने के साथ ही इसकी बुवाई से लेकर मार्केट तक के बारें में जानकर आप ज्वार की खेती ज़रूर करना पसंद करेंगे।

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ज्वार की फसल की तैयारी के लिए मिट्टी का चुनाव 

ज्वार की फसल को किसान भाई कई तरह की मिट्टी में उगा सकते हैं। जिसमें  रेतली मिट्टी, मटियार, दोमट मिट्टी, जल निकास वाली मिट्टी में अच्छी उगती है। वहीं पर्याप्त जीवाष्म भूमि का 6.0 से 8.0 पीएच मान सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है।  

ज्वार की खेती के लिए सबसे अच्छा समय  

ज्वार की खेती रबी और खरीफ दोनों ही मौसम में की जाती है। अगर आप उत्तर भारत के किसान है तो यहां ज्वार की बुवाई जुलाई के पहले हफ्ते में होती है। ज्वार की बुवाई मानसून की पहली बारिश के साथ करनी चाहिए।वहीं दक्षिण भारत के राज्यों कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु में ज्वार की फसल रबी के मौसम में उगाई जाती है। यहां बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच होती है।  

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 ज्वार की फसल में ज्यादा उत्पादन के लिए सही पौध संख्या 

ज्वार की फसल उत्पादन के लिए अच्छी जातियों और संकर जातियों में पौध संख्या 180,000 प्रति हेक्टर सही माना जाता है। किसान भाई बीज को 45 सेमी दूरी पर कतारों में 12 सेमी दूरी पर पौधे रखने पर प्राप्त की जा सकती है। दाना और  कडबी नई किस्मों जैसे जवाहर ज्वार 1022, जवाहर ज्वार 1041 व सीएचएस18 की पौध संख्या 2,10,000 प्रति हेक्टेयर करना चाहिए। कतारों से कतारों की दूरी 45 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी पर रखकर पाई जा सकती है। 

ज्वार की उन्नत किस्में  

HC 260, HC 171, MFSH 3, सीएसएच-18, जवाहर ज्वार- 741, जवाहर ज्वार -938, पीला आंवला, लवकुश, जवाहर ज्वार- 1041 और एसपीवी -1022 किस्म, सीएमएच-9, सीएसबी-13, सीएसएच-14, ज्वार वृषा, सीएसबी-15 और सीएसएच-16 किस्म प्रमुख हैं। 

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ज्वार की फसल में बीजोपचार

ज्वार की फसल बोने से पहले एक किलोग्राम बीज को थीरम के 2.5 ग्राम से शोधित करना चाहिए। इससे अच्छा जमाव होता है, साथ ही कंडुवा रोग नहीं लगता। दीमक के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए 25 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से क्लोरपायरीफास से शोधित करें।

ज्वार की फसल में खाद 

ज्वार की खेती के लिए बिजाई से पहले 4-6 टन हरी खाद या रूड़ी की खाद डालकर  मिट्टी को पोषित करें। बिजाई के शुरुआती वक्त में नाइट्रोजन 20 किलो (44किलो यूरिया), फासफोरस 8 किलो (16 किलोग्राम सिंगल सुपर फासफेट), पोटाश 10 किलो (16 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में डालें। फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा से बिजाई के टाइम डाल दें। इसके बाद बची हुई खाद बिजाई के 30 दिन के बाद डाल दें।

ज्वार की फसल की सिंचाई

ज्वार की खेती में अच्छी पैदावार के लिए फूल निकलने और दाने बनने के वक्त  सिंचाई करें।  आपको बता दें कि खरीफ सीज़न में बारिश के आधार पर एक से तीन बार फसल की सिंचाई कर सकते हैं। रबी सीज़न में जरूरत के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। वहीं अगर पानी की कमी हो, तो सिंचाई फूल बनने से पहले और फूल बनने के समय करें। 

ज्वार की फसल में लगने वाले रोग  

बाकी फसलों की तरह ही ज्वार की उपज में भी कीट या फिर रोग लग जाता है। ज्वार में तना मक्खी, तना छेदक, पर्ण फुदका, दाना मिज़, बालदार सुंडी और माहू जैसे कीट लग जाते हैं, वहीं कंडवा रोग, अर्गट, ज्वार का किट्ट, मूल विगलन और मृदुरोमिल आसिता ज्वार के मुख्य रोग हैं। 

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 ज्वार की फसल के लिए रोग प्रबंधन

दाने का कंड रोग का उपचार- बीज को कवकनाशी दवा जैसे- केप्टान या वीटावैक्स पावर से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।  

अर्गट रोग- अर्गट रोग से ग्रसित ज्वार को काटकर जला देना चाहिए।दाना बनने के समय थिरम 0.2 फीसदी के 2 से 3 छिड़काव करें। इससे रोग का प्रभाव कम हो जाता है।  

तना-विगलन- ज्वार में इस रोग का प्रकोप तमिलनाडु व महाराष्ट्र में रबी में उगने वाली फसल में देखा जाता है। इस रोग को रोकने के लिए फसल चक्र व अन्तः फसलीकरण प्रणाली को अपनाना चाहिए। 

ज्वार का किट्ट- ये भी कवक रोग है और इसकी रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्में उगानी चाहिए।  डाइथेन एम- 45 नामक कवकनाशी का 10 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें।  

जड़ विगलन- ये रोग भी कवक से  फैलता है, इस रोग को रोकने के लिए बीजों की बुवाई से पहले कवकनाशी रसायन जैसे थिरम या केप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें।  

 डाउनी मिल्ड्यू- इस रोग के लक्षण पौधों की नई पत्तियों पर पहले नज़र आते हैं।  रोग से पीड़ित पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए। वहीं बीज को बुवाई से पहले  एपरान- 35 एस डी या रिडोमील एम जेड- 72 से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें।  

ज्वार फसल की कटाई 

ज्वार फसल की कटाई बहुत ही समझदारी के साथ करना चाहिये। सबसे पहले  ज्वार के पौधों की कटाई कर लेते हैं। पौध से भुट्टो को अलग कर लेते हैं और  कडबी को सुखाकर अलग कर देते हैं। इन दानों को सुखाकर नमी 10 से 12 प्रतिशत होने पर भंडारण कर देना चाहिए। 

ज्वार का प्रति हेक्टेयर उत्पादन कितना होता है? 

ज्वार की देशी किस्मों से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 28 से 35 क्विंटल की पैदावार कर सकते हैं। वहीं संकर किस्मों से प्रति हेक्टेयर लगभग 35 से 40 क्विंटल पैदावार होती है। 

ज्वार की फसल का मार्केट भाव

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2014-15 से 2023-24 के बीच ज्वार के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 108 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2014-15 में ज्वार (मालदंडी) का MSP 1550 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 2023-24 में 3225 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। वहीं 2014-15 में ज्वार (हाइब्रिड) की MSP 1530 थी जो 2023-24 में 3180 रुपये प्रति क्विंटल है।

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