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उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों में अब सिर्फ़ प्राकृतिक सुंदरता ही नहीं, बल्कि मत्स्य पालन के रूप में आजीविका की नई राह भी खुल चुकी है। चमोली जिले के किसान अब मत्स्य पालन को अपनाकर न सिर्फ़ अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं, बल्कि गांवों की अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रहे हैं। यह जिला धीरे-धीरे मत्स्य उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभर रहा है।
मत्स्य पालन बना पहाड़ी किसानों की आमदनी का भरोसेमंद साधन
कभी सिर्फ़ खेती पर निर्भर रहने वाले चमोली के किसान अब मत्स्य पालन के जरिए अपनी आय में कई गुना वृद्धि कर रहे हैं। जिले में 1,135 से अधिक काश्तकार मत्स्य पालन से जुड़े हैं और ट्राउट, कॉमन कार्प, ग्रास कार्प और पंगास जैसी मछलियों का उत्पादन कर सालाना लाखों की आमदनी कमा रहे हैं।
चमोली की साफ-सुथरी नदियां और ठंडी जलवायु ट्राउट मछली के पालन के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती हैं। यही कारण है कि यहां के पहाड़ी तालाबों और रेसवेज़ में ट्राउट मछली का उत्पादन तेज़ी से बढ़ रहा है।
सरकारी योजनाओं से मिल रहा है मत्स्य पालन को बल
राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही स्तरों पर मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। सहायक निदेशक मत्स्य रितेश कुमार चंद के अनुसार, मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना (राज्य योजना) और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (केंद्र पोषित) के तहत किसानों को रेसवेज निर्माण, ट्राउट हैचरी, फिश कियोस्क, रेफ्रिजरेटेड वैन, फीड मील और मोटरसाइकिल विद आइस बॉक्स जैसी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।
इसके साथ ही राज्य योजना के अंतर्गत क्लस्टर आधारित तालाब निर्माण, सोलर पावर सपोर्ट सिस्टम, मत्स्य सहेली, मत्स्य आहार और मत्स्य बीमा योजना के माध्यम से पात्र लाभार्थियों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
उत्पादन में बढ़ोतरी और रोज़गार के नए अवसर
जिले में वर्तमान में 350 से अधिक रेसवेज़ में ट्राउट मत्स्य पालन हो रहा है, जिससे हर साल लगभग 70 टन मछली का उत्पादन होता है। वहीं, 600 से ज़्यादा क्लस्टर तालाबों में कॉमन कार्प, ग्रास कार्प और पंगास मछलियों का भी उत्पादन किया जा रहा है। इन प्रयासों से न केवल उत्पादन बढ़ा है बल्कि ग्रामीण युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर भी सृजित हुए हैं। चमोली में मत्स्य पालन अब गांव-गांव में लोगों के लिए नई आशा लेकर आया है।
मछली बीज और फीड उत्पादन से बढ़ी आमदनी
मत्स्य पालन को टिकाऊ बनाने के लिए विभाग ने ट्राउट हैचरी और बीज उत्पादन का कार्य भी शुरू कराया है। पिछले वर्ष करीब 4 लाख ट्राउट मत्स्य बीज का विपणन किया गया, जिससे किसानों ने 8 लाख रुपये से अधिक की आय अर्जित की। यह बीज अब न केवल चमोली बल्कि आसपास के जिलों में भी आपूर्ति किया जा रहा है।
साथ ही स्थानीय स्तर पर मत्स्य आहार (फीड) की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक फीड मील की स्थापना की गई है। इसके माध्यम से 40 टन से अधिक मत्स्य आहार का विपणन कर संचालकों ने लगभग 10 लाख रुपये की शुद्ध आमदनी प्राप्त की है।
सीमांत क्षेत्रों तक पहुंचा मत्स्य पालन का लाभ
मत्स्य पालन के विस्तार से सीमांत इलाकों में भी किसानों को नई पहचान मिल रही है। केंद्र सरकार की मदद से यहां के काश्तकारों ने आईटीबीपी और सेना को मछलियों की आपूर्ति की है, जिससे पिछले वर्ष लगभग 27 लाख रुपये की अतिरिक्त आय अर्जित की गई। यह सफलता दर्शाती है कि पहाड़ी इलाकों में मत्स्य पालन न केवल एक टिकाऊ आजीविका का ज़रिया है, बल्कि यह आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।
भविष्य के लिए नई उम्मीद
चमोली जिले की जलवायु और स्वच्छ जल-स्रोतों ने इस क्षेत्र को मत्स्य पालन के लिए उपयुक्त बनाया है। यहां के किसानों ने साबित किया है कि यदि सही तकनीक, सरकारी सहयोग और प्रशिक्षण मिले तो पहाड़ी क्षेत्र भी मत्स्य उत्पादन में देश को नई दिशा दे सकते हैं।
मत्स्य पालन ने चमोली के किसानों को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त किया है बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल आजीविका का एक प्रेरक उदाहरण भी बन गया है। आने वाले समय में यह जिला उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मत्स्य पालन के एक आदर्श मॉडल के रूप में अपनी पहचान बना सकता है।
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