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नई दिल्ली के कृषि भवन में भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक सफलतापूर्वक संपन्न हुई। इस बैठक में दोनों देशों ने कृषि क्षेत्र में सहयोग को और सशक्त बनाने पर सहमति जताई। यह बैठक दोनों देशों के बीच कृषि नवाचार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और किसान प्रशिक्षण के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर साबित हुई।
बैठक की सह-अध्यक्षता भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव (बागवानी) श्री प्रिया रंजन और नीदरलैंड के कृषि, प्रकृति एवं खाद्य गुणवत्ता मंत्रालय के श्री गीडो लैंडहियर ने की।
कृषि सहयोग को मिला नया आयाम
बैठक में भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने कृषि क्षेत्र की मौजूदा प्राथमिकताओं, चुनौतियों और नई पहलों पर विस्तार से विचार-विमर्श किया। दोनों देशों ने इस बात पर जोर दिया कि यह संयुक्त कार्य समूह (JWG) दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे कृषि सहयोग को और मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। इस बैठक ने न केवल पारंपरिक कृषि क्षेत्रों में बल्कि नई तकनीकों, फ़सल विविधीकरण और सतत खेती के लिए भी द्विपक्षीय सहयोग को एक नई गति दी है।
उत्कृष्टता केंद्रों की सफलता बनी प्रेरणा
बैठक में उन उत्कृष्टता केंद्रों (Centres of Excellence) की उपलब्धियों पर भी चर्चा हुई, जो भारत और नीदरलैंड के सहयोग से स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों ने आधुनिक तकनीक को किसानों तक पहुँचाने, उच्च गुणवत्ता वाले पौध सामग्री और बीज उत्पादन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अब तक हजारों किसान इन केंद्रों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों से लाभान्वित हो चुके हैं, जिससे फ़सलों की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार देखने को मिला है। दोनों देशों ने इस मॉडल की सफलता को देखते हुए इसे और अधिक राज्यों और बागवानी क्षेत्रों में विस्तारित करने पर सहमति जताई, ताकि अधिक किसान इससे लाभान्वित हो सकें।
नई संभावनाओं पर हुई चर्चा
भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक में कई नए सहयोग क्षेत्रों की संभावनाओं पर भी विचार किया गया। इनमें फाइटोसैनिटरी सहयोग (पौध संगरोध), बीज क्षेत्र विकास, पशुपालन और डेयरी, खाद्य प्रसंस्करण, खाद्य सुरक्षा, सर्कुलर एग्रीकल्चर, ग्रीनहाउस तकनीक, ज्ञान आदान-प्रदान और नवाचार को शामिल किया गया।
नीदरलैंड कृषि अनुसंधान और तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में विश्वभर में अग्रणी रहा है, जबकि भारत के पास विशाल कृषि संसाधन और विविध फ़सल प्रणालियां हैं। दोनों देशों का यह सहयोग कृषि उत्पादन को अधिक टिकाऊ, वैज्ञानिक और बाजारोन्मुख बनाने में सहायक होगा।
प्रतिनिधिमंडल और भागीदारी
इस अवसर पर नीदरलैंड के प्रतिनिधिमंडल में सुश्री मेरियन वैन शाइक, कृषि काउंसलर; सुश्री सारा विसर रविचंद्रन, वरिष्ठ नीति अधिकारी; और श्री श्रीतनु चटर्जी, नीति सलाहकार, दूतावास नीदरलैंड शामिल थे। भारत की ओर से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DA&FW), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI), पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। इन सभी प्रतिनिधियों ने भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक को दोनों देशों के बीच कृषि सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
सतत कृषि की दिशा में संयुक्त प्रयास
बैठक में यह भी चर्चा हुई कि भविष्य में दोनों देश मिलकर सर्कुलर एग्रीकल्चर (Circular Agriculture) की अवधारणा को अपनाएंगे, जिससे अपशिष्ट प्रबंधन, संसाधनों के पुनः उपयोग और जलवायु-अनुकूल खेती को बढ़ावा मिलेगा।
भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक ने यह स्पष्ट किया कि दोनों देश केवल तकनीकी सहयोग तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि किसानों को आधुनिक प्रशिक्षण, बीज नवाचार और उत्पादन तकनीकों के माध्यम से सशक्त बनाने का भी संकल्प रखते हैं।
सहयोग की नई दिशा
बैठक के अंत में दोनों पक्षों ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक के दौरान हुई चर्चाएं रचनात्मक और परिणामोन्मुखी रही हैं। दोनों देशों ने भविष्य में कृषि एवं उससे जुड़े क्षेत्रों में सहयोग को और मज़बूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
यह बैठक न केवल कृषि नवाचार और प्रौद्योगिकी साझेदारी का प्रतीक रही, बल्कि इसने यह भी दिखाया कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग से भारत जैसे कृषि प्रधान देश अपने किसानों के जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक से यह संदेश स्पष्ट हुआ है कि सतत, वैज्ञानिक और तकनीक-आधारित कृषि ही भविष्य का रास्ता है। इस सहयोग से दोनों देशों के किसान न केवल उत्पादन बढ़ा सकेंगे, बल्कि पर्यावरण-सुरक्षा और खाद्य गुणवत्ता जैसे वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति में भी योगदान देंगे।
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