Papaya Cultivation: पपीते की खेती से 35 लाख रुपये का मुनाफ़ा, मध्य प्रदेश के इस किसान ने अपनाई उन्नत किस्म और तकनीक

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले के रहने वाले मधुसूदन टोंपे आज की तारीख में पपीते की खेती के लिए जाने जाते हैं। आज जिस 6 एकड़ में वो पपीते की खेती करते हैं, वो ज़मीन पहले वीरान पड़ी थी। जानिए कौन सी किस्म का उन्होंने चुनाव किया और किन बातों का उन्होंने ख्याल रखा।

मध्य प्रदेश पपीते की खेती madhya pradesh papaya cultivation

पपीता भारत में उगाई जाने वाली व्यावसायिक फसलों में से एक है। उच्च पोषण मूल्य के कारण इसकी मांग भी अच्छी रहती है। भारत पपीते का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। विश्व के कुल पपीते के उत्पादन में भारत की 46 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बड़े स्तर पर पपीते की खेती होती है। 

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले के रहने वाले मधुसूदन टोंपे आज की तारीख में पपीते की खेती के लिए जाने जाते हैं। करीबन 20 साल से खेती करते आ रहे मधुसूदन टोंपे के पास बजरी मिट्टी युक्त 6 एकड़ की ज़मीन खाली पड़ी थी। इस ज़मीन से वो ऐसी उपज लेना चाहते थे जो बेहतर आय दे सके। इस बीच उन्हें  एक किसान मेले में भाग लेने का मौका मिला। इस मेले से उन्हें पपीते की खेती की उन्नत तकनीकों के बारे में जानकारी मिली।

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तस्वीर साभार: ICAR-IIHR

पपीते की ताइवान-786 किस्म को चुना

मधुसूदन टोंपे अपने ज़िले के कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे। यहाँ से उन्होंने पपीते की खेती की ट्रेनिंग ली। कृषि विज्ञान केंद्र के एक वैज्ञानिक ने उनके खेत का दौरा किया। हर संभव मदद की। कृषि वैज्ञानिक से सलाह के बाद उन्होंने अपने 6 एकड़ खेत में पपीते की ताइवान -786 किस्म (Taiwan-786 Papaya Variety) की बुवाई की। ये किस्म उनके क्षेत्र की जलवायु के लिए उपयुक्त थी। 

35 लाख रुपये का सीधा मुनाफ़ा, कई बड़े शहरों में खड़ा किया मार्केट

टोंपे ने 6 एकड़ क्षेत्र में पपीते की ताइवान -786 किस्म के 4800 पौधे लगाए। सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक अपनाई। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार पौधों का रखरखाव किया। इसमें उन्हें तकरीबन 6 लाख रुपये की लागत आई। रोज़ाना 4 टन फल का उत्पादन हुआ। पपीते की खेती से उन्हें करीबन 35 लाख रुपये का सीधा मुनाफ़ा हुआ। मार्केटिंग की बेहतरीन रणनीति का इसमें अहम रोल है। नागपुर, भोपाल, चंडीगढ़ और जम्मू जैसे बड़े शहरों में उन्होंने अपना मार्केट खड़ा किया है। 

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तस्वीर साभार: exportersindia & flixcart

Papaya Cultivation: पपीते की खेती से 35 लाख रुपये का मुनाफ़ा, मध्य प्रदेश के इस किसान ने अपनाई उन्नत किस्म और तकनीकताइवान-786 किस्म की ख़ासियत

ताइवान पपीते के बीज से डेढ़ से दो गुना अधिक पैदावार मिलती है। पूरे 8 महीने बाद फसल तैयार हो जाती है। ये किस्म  अंडाकार आकार, मीठे गूदे और कम बीजों वाली होती है। एक फल का वजन लगभग 1 से 3 किलो होता है। एक सीज़न में औसतन एक पेड़ पर 30 से 45 फल लगते हैं, जिनका कुल वजन 40-75 किलोग्राम होता है। इनकी सेल्फ लाइफ भी लंबी होती है यानी कि इस किस्म के फलों की भंडारण क्षमता भी ज़्यादा होती है। इस किस्म में नर (मेल) व मादा (फीमेल) के गुण एक ही पौधे में होते हैं। इससे पौधे से पूरी तरह उत्पादन मिलने की संभावना होती है।

कई पुरस्कारों से सम्मानित 

मधुसूदन टोंपे ने पपीते की खेती से लाभ तो कमा ही रहे हैं, साथ ही दिहाड़ी में 10 से 12 मजदूरों को रोज़गार भी दे रहे हैं। उनके प्रयासों को राज्य सरकार ने सराहते हुए उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया है। 

मधुसूदन टोंपे अपने साथी किसानों के लिए एक रोल मॉडल हैं। वो अपनी इस ज़िम्मेदारी को समझते हैं। वो कई सामाजिक गतिविधियों में शामिल हैं। साथ ही अन्य किसानों को खेती के गुर भी सिखाते हैं। 

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तस्वीर साभार: jawaharlal nehru krishi vishwavidyalaya

पपीते की खेती से जुड़ी कुछ अहम बातें 

  • लगभग 10 से 13 महीने में तैयार होने वाली पपीते की फसल का बीज (Papaya Seeds) जुलाई से सितंबर या फिर फरवरी-मार्च के बीच लगाया जाता है।
  • पपीते की खेती के लिए 6.5-7.5 पीएच मान वाली हल्की दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। साथ ही जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
  • जहां तापमान 10-26 डिग्री सेल्सियस तक रहता हो और पाला न पड़ता हो, वहाँ पपीते की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। पपीते के बीजों के अंकुरण के समय 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे अच्छा होता है।  ठंड में रात का तापमान 12 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर पौधों के विकास और उत्पादन में बुरा असर पड़ता है।
  • मिट्टी में सही नमी स्तर बनाए रखना भी बहुत ज़रूरी है। शरद के मौसम में 10-15 दिन के अंतर से और गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतराल पर ज़रूरत पड़ने पर सिंचाई करें। सिंचाई की आधुनिक ड्रिप तकनीक अपनाएं।
  • पपीते के बागान में मिश्रित फसल के रूप में मटर, मैथी, चना, फ्रेंचबीन और सोयाबीन की फसलें ली जा सकती हैं। वैज्ञानिकों की सलाह है कि पपीते के पौधों के बीच में मिश्रित फसल के रूप में मिर्च, टमाटर और बैंगन न लगाएं।। इससे पपीते के पौधे को नुकसान पहुंचता है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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