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जोहा चावल की खेती के साथ ही पपीते की खेती और सूअर पालन, असम की दीपिका ने मॉडर्न टेक्नोलॉजी अपनाई और कमाई बढ़ाई

सुपारी, पान, नारियल, असम नींबू, अनानास और अन्य देसी फलों की भी करती हैं खेती

असम के गोलपारा ज़िले की रहने वाली दीपिका राभा 12 बीघा ज़मीन पर सुगंधित जोहा चावल की खेती करती हैं। असम के जोहा चावल को GI टैग मिला हुआ है। इसको तैयार होने में 120 से 160 दिन का समय लगता है। 

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असम के गोलपारा ज़िले की रहने वाली दीपिका राभा एक प्रगतिशील किसान हैं। गोलपारा ज़िले के अंतर्गत पड़ने वाले आदिवासी गांव पश्चिम दर्रांग से वो आती हैं। 10वीं पास दीपिका अपनी पढ़ाई आगे तक ज़ारी नहीं रख पाई। आज की तारीख में उन्होंने आधुनिक खेती अपनाई हुई है। लीज़ पर ली हुई 12 बीघा ज़मीन पर वो सुगंधित जोहा चावल की खेती करती हैं।

GI टैग प्राप्त जोहा चावल की खेती

जोहा भारत में उगाई जाने वाली चावल की एक किस्म है, जो अपनी सुगंध और स्वाद के लिए जानी जाती है। असम इस चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। जोहा चावल असम की पहचान है। असम के जोहा चावल को GI टैग मिला हुआ है। GI टैग एक ऐसा मार्क होता है जिससे किसी जगह के उत्पाद को खास पहचान मिलती है और इससे इन उत्पादों की मार्केट में कीमत बढ़ जाती है।

जोहा चावल की खेती joha rice cultivation assam woman
तस्वीर साभार: krushi.world

कटाई के लिए 120 से 160 दिन में होती है तैयार

जोहा चावल की खेती खरीफ मौसम में होती है। जोहा चावल की प्रमुख किस्मों में कोला जोहा, केटेकी जोहा, बोकुल जोहा, कुंकुनी जोहा आते हैं। जोहा चावल को स्थानीय रूप से मि जाहा के नाम से भी जाना जाता है। जाहा चावल भी इसे कहा जाता है। इसको तैयार होने में 120 से 160 दिन का समय लगता है।

जोहा चावल की खेती joha rice cultivation assam woman
तस्वीर साभार: Assam Agricultural University

कई पोषक तत्वों से भरपूर जोहा चावल

जोहा चावल एल्ब्यूमिन, ग्लोब्युलिन जैसे प्रोटीन तत्वों, अमीनो एसिड, कैल्शियम, आयरन और वसा से भरपूर होता है, जो इसे एक पौष्टिक अनाज बनाता है।रक्‍तचाप की कारगर औषधि के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें ओमेगा सिक्‍स और थ्री के साथ ही फैटी ऐसिड का समुचित अनुपात पाया जाता है, जो किसी अन्‍य पौधे में नहीं मिलता है। इसके दाने का आकार छोटा होता है। जोहा चावल से पुलाव, खीर जैसे स्वादिष्ट व्यंजन बनाने जाते हैं।

असम के जोहा चावल को टैग मिलने से वहाँ इसकी खेती और बाज़ार के विस्तार की संभावनाएँ और मजबूत हुई हैं। जिन प्रोडक्ट्स को GI मार्क मिलता है उनकी मांग और कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में बढ़ जाती है, जिससे एक्सपोर्ट में फायदा होता है। ऐसे प्रोडक्ट्स की वजह से टूरिज्म भी बढ़ता है क्योंकि दुनियाभर से लोग ऐसी खास चीज़ें खरीदने आते हैं।

जोहा चावल की खेती joha rice cultivation assam woman
तस्वीर साभार: Assam Agricultural University

12 लाख रुपये से ऊपर सालाना आमदनी

दीपिका राभा को जोहा चावल के उत्पादन से सालाना करीबन 2 लाख 60 हज़ार की कमाई होती है। इसके अलावा, लीज़ पर ली गई पाँच बीघा ज़मीन पर वो पपीते की खेती भी करती हैं। इससे उन्हें करीब 6 लाख रुपये सालाना की आमदनी होती है। दीपिका अपने 14 बीघा बगीचे में खरीफ़ और रबी सीज़न की सब्जियों की खेती करती हैं। साथ ही सुपारी, पान, नारियल, असम नींबू, अनानास और अन्य देसी फलों की खेती भी करती हैं। इससे उन्हें एक लाख रुपये की कमाई होती है। उन्होंने वर्मीकम्पोस्ट यूनिट और ग्रीन हाउस भी लगा रखा है। इससे वो सालाना एक लाख 75 हज़ार के आसपास आमदनी हो जाती है। आधे बीघा ज़मीन पर उन्होंने सूअर पालन भी किया हुआ है। सालाना वो 20 से 25 व्यस्क सूअर बेचकर 1 लाख की कमाई कर लेती हैं।

जोहा चावल की खेती joha rice cultivation assam woman
तस्वीर साभार: agricoop

कृषि और इससे जुड़ी अन्य गतिविधियों में उनकी भागीदारी के चलते आज वो अपने क्षेत्र की महिला किसानों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। वो उनका मार्गदर्शन करती हैं। 2018 में दीपिका राभा को जिले की ‘सर्वश्रेष्ठ महिला प्रगतिशील किसान’ का सम्मान मिला। साथ ही 2018 में ही महिला किसान अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। 

ये भी पढ़ें: धान की फ़सल में चाहिए ज़्यादा कमाई तो करें ‘सुपर फूड’ काले चावल (Black Rice) की खेती

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