कोरी अफ़वाह है कि दालों की स्टॉक सीमा हटा ली गयी है: केन्द्र सरकार

नये ‘आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020’ के प्रावधानों के अनुसार जब तक दालों का खुदरा बाज़ार भाव से साल भर पहले की तुलना में 50 प्रतिशत से ज़्यादा ऊपर नहीं चला जाता, तब तक सरकार ‘असाधारण मूल्य वृद्धि’ के नाम पर व्यापारियों पर स्टॉक सीमा नहीं थोप सकती है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, एक साल पहले के मुकाबले दालों के दाम में अभी तक जो बढ़ोत्तरी हुई है वो 22-23 प्रतिशत की है। इसका मतलब ये हुआ कि नया क़ानून व्यापारियों के प्रति बहुत ज़्यादा उदार है। इसीलिए किसान नेता इसे जन-विरोधी करार देते हैं और इसे वापस लेने की माँग कर रहे हैं।

कोरी अफ़वाह है कि दालों की स्टॉक सीमा हटा ली गयी है: केन्द्र सरकार - Kisan Of India

सोशल नेटवर्किंग एप WhatsApp के ज़रिये ये अफ़वाह फैलायी जा रही है कि 2 जुलाई से लागू दालों पर स्टॉक की सीमा को हटा लिया गया है। इसकी भनक लगते ही केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने साफ़ किया है कि दालों पर लागू स्टॉक सीमा न सिर्फ़ बाक़ायदा क़ायम है, बल्कि राज्यों सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वो इसे पूरी सख़्ती और मुस्तैदी से लागू करें।

राज्यों को हिदायत

केन्द्र सरकार की ओर से उन राज्यों को सतर्क भी किया गया है जहाँ दालों के स्टॉकिस्ट और आयातकों की ओर से घोषित स्टॉक और बैंकों से लिये गये कर्ज़ में दर्शायी गयी मात्रा में अन्तर है। उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से विकसित विशेष पोर्टल के ज़रिये  दालों के स्टॉक के ब्यौरे पर नियमित रूप से नज़र रखी जाती है। यहाँ दर्शायी जाने वाली जानकारी यदि बेमेल होती है तो राज्यों को फ़ौरन कार्रवाई के लिए हिदायत भी दी जाती है।

क्या है 2 जुलाई का आदेश?

2 जुलाई के आदेश के मुताबिक, केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने मूँग को छोड़कर सभी दालों के लिए स्टॉक होल्डिंग सीमालागू करने का आदेश जारी किया है। इसके अनुसार, दालों के थोक व्यापारियों के लिए स्टॉक रखने की सीमा 200 टन है तो आयातकों और खुदरा दुकानदारों के लिए 5 टन। दाल मिल मालिकों के लिए स्टॉक की सीमा उनके बीते तीन महीनों के औसत उत्पादन या उनकी सालाना स्थापित क्षमता के 25 प्रतिशत में से जो भी ज़्यादा हो, उतनी हो सकती है।

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स्टॉक सीमा का दिलचस्प पहलू

ग़ौरतलब है कि इस स्टॉक होल्डिंग सीमा का निर्धारण पुराने आवश्यक वस्तु क़ानून के तहत किया गया है, क्योंकि 27 सितम्बर 2020 से लागू नये आवश्यक वस्तु (संशोधन) क़ानून, 2020 को फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अपने 12 जनवरी 2021 के आदेश के ज़रिये निलम्बित कर रखा है। दरअसल, ये क़ानून उन तीनों विवादित कृषि क़ानूनों में शामिल है, जिसे वापस लेने की माँग को लेकर 26 नवम्बर 2020 से किसान आन्दोलन जारी है।

पुराना आवश्यक वस्तु क़ानून

इस सिलसिले में दिलचस्प बात ये है कि पुराने आवश्यक वस्तु क़ानून के तहत स्टॉक होल्डिंग सीमालागू करने का आदेश जारी करने का अधिकार सरकार के विवेकाधीन था। यानी, सरकार को जब भी ये लगे कि बाज़ार में ‘असाधारण मूल्य वृद्धि’ की वजह से किसी आवश्यक वस्तु का दाम बहुत बढ़ रहा है, वैसे ही वो जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी पर नकेल कसने के लिए स्टॉक होल्डिंग सीमालागू करने का आदेश जारी कर सकती है।

नया ‘आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020’

जबकि नये ‘आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020’ के प्रावधानों के अनुसार जब तक दालों का खुदरा बाज़ार भाव से साल भर पहले की तुलना में 50 प्रतिशत से ज़्यादा ऊपर नहीं चला जाता, तब तक सरकार ‘असाधारण मूल्य वृद्धि’ के नाम पर व्यापारियों पर स्टॉक सीमा नहीं थोप सकती है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, एक साल पहले के मुकाबले दालों के दाम में अभी तक जो बढ़ोत्तरी हुई है वो 22-23 प्रतिशत की है। इसका मतलब ये हुआ कि नया क़ानून व्यापारियों के प्रति बहुत ज़्यादा उदार है। इसीलिए किसान नेता इसे जन-विरोधी करार देते हैं और इसे वापस लेने की माँग कर रहे हैं।

जब और महँगाई का इन्तज़ार करना पड़ता

नये ‘आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020’ में ‘असाधारण मूल्य वृद्धि’ के अलावा युद्ध, अकाल और गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं की दशा में ही सरकार के पास स्टॉक होल्डिंग सीमा को तय करने का अधिकार है। इसीलिए स्टॉक होल्डिंग सीमातय करने के लिए सरकार को पुराने ‘आवश्यक वस्तु क़ानून’ का सहारा लेना पड़ा। नये क़ानून यानी आवश्यक वस्तु (संशोधन) क़ानून, 2020 के तहत स्टॉक होल्डिंग सीमातय करने के लिए सरकार को दालों के दाम और बढ़ने यानी पिछले साल के मुकाबले दालों के खुदरा बाज़ार भाव से 50 प्रतिशत या ज़्यादा ऊपर जाने तक इन्तज़ार करना पड़ता।

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क्या कहते हैं सरकारी आँकड़े?

केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय (DCA) के आँकड़ों के अनुसार, इस साल 2 जुलाई को चना दाल का अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 75 रुपये प्रति किलोग्राम था। जबकि पिछले साल इस समय ये 65 रुपये था। इसी तरह अरहर, उड़द, मूँग और मसूर दाल की खुदरा कीमतें क्रमशः 110 रुपये, 110 रुपये, 103.5 रुपये और 85 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। जबकि पिछले साल इनका दाम क्रमशः 90 रुपये, 100 रुपये, 105 रुपये और 77.5 रुपये प्रति किलोग्राम था। इस तरह, पिछले साल के मुक़ाबले किसी भी दाल के दाम में इज़ाफ़ा 22-23 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं हुआ।

सरकार के काम आया पुराना क़ानून

इतना ही नहीं, खाद्य तेलों के मामले में भी अभी सरकार नये आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020 के मुताबिक स्टॉक की सीमा में हस्तक्षेप नहीं कर सकती थी, क्योंकि इन्होंने भी अभी असाधारण मूल्य वृद्धिवाले 50 फ़ीसदी उछाल की सीमा को नहीं तोड़ा है। पॉम ऑयल का दाम अभी पिछले साल वाले 85 रुपये प्रति किलोग्राम के मुक़ाबले 135 रुपये है तो सोयाबीन का तेल भी अभी 100 रुपये से बढ़कर 157.5 रुपये और सूरजमुखी का तेल भी 110 रुपये से प्रति किलोग्राम से उछलकर 175 रुपये तक ही पहुँचा है।

एक और रोचक बात ये है कि पुराने क़ानून के जिन प्रावधानों के तहत सरकार ने अभी दालों की स्टॉक होल्डिंग सीमा को निर्धारित किया है उसे 17 मई 2017 को सरकार हटा चुकी थी। ज़ाहिर है, पुराने फ़ैसले के 4 साल बाद और ऐतिहासिककृषि क़ानूनों के लागू होने के महज 9 महीने बाद ही सरकार को पुराने क़ानूनों की जिस ढंग से ज़रूरत पड़ी, उससे साफ़ है कि सरकार कोरोना काल से चरमराई अर्थव्यवस्था के दौर में खाद्य मुद्रास्फीति का नया नया संकट नहीं चाहती है।

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